अभी-अभी: ISRO के सपने को लगा बड़ा झटका, नैविगेशन सैटलाइट IRNSS-1H की लॉन्चिंग फेल

अभी-अभी: ISRO के सपने को लगा बड़ा झटका, नैविगेशन सैटलाइट IRNSS-1H की लॉन्चिंग फेल

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को बृहस्पतिवार को तब बड़ा झटका लगा, जब उसका नेविगेशन सेटेलाइट लांच असफल हो गया। इसरो ने पहली बार निजी क्षेत्र द्वारा तैयार नेविगेशन सेटेलाइट को शाम के 7 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-39 रॉकेट के जरिए लांच किया था, लेकिन कक्षा में स्थापित होने से पहले ही इसमें कुछ तकनीकी समस्या आ गई थी।अभी-अभी: ISRO के सपने को लगा बड़ा झटका, नैविगेशन सैटलाइट IRNSS-1H की लॉन्चिंग फेलसबसे बड़ी खबर: अभी-अभी महेन्द्र नाथ पाण्डेय को बनाया भाजपा प्रदेश अध्यक्ष

देश की जीपीएस क्षमता में वृद्धि कर सकने वाले इस नेविगेशन उपग्रह ‘आईआरएनएसएस-1एच’ को पूरी तरह से बंगलूरू स्थित अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी ने निर्मित किया था। ‘नाविक’ श्रृंखला के तहत तैयार किया गया यह पहला उपग्रह था। ऐसा बताया जा रहा है कि उपग्रह से हीटशील्ड अलग नहीं हो पाया जिसकी वजह से वह चौथे चरण को पार नहीं कर सका।

पिछले 30 साल में पहली बार इसरो ने नेविगेशन उपग्रह बनाने का मौका निजी क्षेत्र को दिया था। बंगलूरू में स्थित रक्षा उपकरण आपूर्तिकर्ता अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजिज ने इस पर आठ महीने काम किया था।

इसरो के अध्यक्ष किरण कुमार ने कहा कि हीट सिंक के अंदर से सैटेलाइट को अलग नहीं किया जा सका जिसकी वजह से मिशन असफल हो गया। उन्होंने आगे कहा कि सी-39 लांच रॉकेट में कुछ तकनीकी समस्या आ गई थी जिसकी वजह से हीटशील्ड अलग नहीं हो सका। इसका पता लगाने के लिए हम पूर्ण विश्लेषण करेंगे।

बता दें कि इसरो द्वारा लांच किया गया यह आठवां नेविगेशन उपग्रह था जिसे इसरो ने निजी क्षेत्र के साथ मिलकर निर्मित किया था। हालांकि उन्होंने कहा कि हीटशील्ड के अलग न हो सकने के अलावा अन्य सभी गतिविधियां बहुत ही आराम से हुईं।

सफल होता तो …
देश के आठवें नेविगेशन सैटेलाइट ‘आईआरएनएसएस-1एच’ की सफल लांचिंग देश के अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ सकती थी। इसका कारण है कि पहली बार निजी क्षेत्र ने पूरी सक्रियता के साथ सैटेलाइट के निर्माण और परीक्षण में हिस्सा लिया जबकि इससे पहले निजी क्षेत्र की भूमिका केवल कल-पूर्जों की आपूर्ति तक सीमित थी।

किस तरह की सेवाएं दे सकता था नाविक?
नाविक श्रृंखला के इस पहले सैटेलाइट के सफल होने से देश के साथ इसकी सीमा से बाहर 1,500 किमी तक उपयोगकर्ताओं को सटीक वास्तविक समय स्थिति और समय की सेवाएं मिलतीं।

दरअसल नाविक हमें दो तरह की सेवाएं उपलब्ध करा सकता है। दूसरी तरह से यह अपनी स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सेवा में यह सभी उपयोगकर्ताओं को प्रतिबंधित सेवा उपलब्ध कराता है। इसमें एन्क्रिप्टेड डाटा को केवल सेना और सुरक्षा एजेंसियों जैसे अधिकृत उपयोगकर्ताओं तक ही भेजा सकता है।

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