देश में केरल राज्य शिक्षा के साथ मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को लेकर शीर्ष पर आ गया है। केरल राज्य में देश में सबसे कम मातृ मृत्यु अनुपात है। राज्य में (Maternal Mortality Ratio) 30 प्रति एक लाख जीवित जन्म दर्ज किया गया है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2017-19 की अवधि के लिए भारत का मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) सुधर कर 103 हो गया है। केरल का मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) 42 से गिरकर 30 हो गया है। केरल ने वर्ष 2020 में ही एमएमआर के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों को हासिल कर लिया है। मातृ मृत्यु अनुपात को प्रति 1,000,00 जीवित जन्मों पर मातृ मृत्यु की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है। ऐसे में सवाल उठता कि देश के अन्य राज्यों में मातृ मृत्यु अनुपात क्या है। देश के वह पांच राज्य जिन्होंने इस दिशा में बेहतरीन काम किया है। इसके साथ यह भी जानेंगे कि कौन से राज्य इस लक्ष्य को हासिल करने में अभी पीछे रह गए हैं। किन कारणों से ये राज्य मातृ मृत्यु अनुपात में पीछे रह गए हैं।
1- केरल, तेलंगाना और महाराष्ट्र भारत में सबसे कम एमएमआर वाले शीर्ष तीन राज्यों में शामिल हैं। पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में मातृ मृत्यु अनुपात खराब हो गया है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में काफी सुधार हुआ है। सतत् विकास लक्ष्य हासिल करने वाले राज्यों की संख्या अब पांच से बढ़कर सात हो गई है। इसमें प्रमुख रूप से केरल (30), महाराष्ट्र (38), तेलंगाना (56), तमिलनाडु (58), आंध्र प्रदेश (58), झारखंड (61) और गुजरात (70) है। केरल ने सबसे कम एमएमआर दर्ज किया है, जो केरल को राष्ट्रीय एमएमआर 103 से आगे रखता है। केरल के मातृ मृत्यु दर में 12 अंक की गिरावट आई है।
2- देश में अब नौ राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति द्वारा निर्धारित एमएमआर लक्ष्य को हासिल कर लिया है, जिसमें उपरोक्त सात और कर्नाटक (83) एवं हरियाणा (96) शामिल हैं। उत्तराखंड (101), पश्चिम बंगाल (109), पंजाब (114), बिहार (130), ओडिशा (136) और राजस्थान (141) में एमएमआर 100-150 के बीच है, जबकि छत्तीसगढ़ (160), मध्य प्रदेश ( 163), उत्तर प्रदेश (167) तथा असम (205) का एमएमआर 150 से ऊपर है।
मातृ मृत्यु दर के ताजा आंकड़े
उत्तर प्रदेश मातृ मृत्यु दर के मामले में दूसरे पायदान पर है। यहां 2017-19 के बीच एमएमआर 167 रही है। वहीं 2016-18 में मातृ मृत्यु दर 197 थी, जबकि 2015-17 में मातृ मृत्यु दर 229 थी। मध्य प्रदेश में मातृ मृत्यु दर 2017 से 2019 तक 163 रही। वहीं 2016 से 2018 तक 173 और 2015 से 2017 तक 188 है। छत्तीसगढ़ में मातृ मृत्यु दर 2017-2019 तक 160, 2016 से 2018 तक 159 और 2015 से 2017 तक 141 तक रही है। राजस्थान में मातृ मृत्यु दर 2017 से 2019 तक 141, 2016 से 2018 तक 164 और 2015 से 2017 तक 186 रही है। बिहार में मातृ मृत्यु दर 2017 से 2019 तक 130, 2016 से 2018 तक 149 और 2015 से 2017 तक 165 रही। पंजाब में मातृ मृत्यु दर 2017 से 2019 तक 114, 2016 से 2018 तक 129 और 2015 से 2017 तक 122 रही। उत्तराखंड में मातृ मृत्यु दर 2017 से 2019 तक 101, 2016 से 2018 तक 99 और 2015 से 2017 तक 89 रही। हरियाणा में मातृ मृत्यु दर 2017 से 2019 तक 99, 2016 से 2018 तक 91 और 2015 से 2017 तक 98 रही।
क्या है विशेषज्ञों की राय
1- डा. सची सिंह (प्रसूति विज्ञानी एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, प्रकाश हास्पिटल, नोएडा ) ने कहा कि देश के विभन्न राज्यों में मातृ मृत्यु अनुपात एक लंबी खाई है। उन्होंने कहा कि जहां कुछ राज्यों ने इस दिशा में बेहतर कार्य किया है, वहीं कुछ राज्य पीछे रह गए हैं। डा. सची सिंह ने कहा कि यह कई बातों पर निर्भर करता है। मसलन उस राज्य के शिक्षा के स्तर क्या है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों ने इस लक्ष्य को हासिल करने में सफलता पाई है। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य आधार शिक्षा है। उन्होंने कहा कि एक शिक्षित समाज में जागरूकता का स्तर बड़ा होता है, इसका असर मातृ मृत्यु दर पर पड़ता है।
2- उनका कहना है कि यह लक्ष्य कठिन जरूर है पर संभव है। मोदी सरकार जिस संकल्प से काम कर रही है, उससे वह दिन दूर नहीं जब हम अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल होंगे। उनका मानना है कि मोदी सरकार के आने के बाद वर्ष 2016 के बाद इस दिशा में विशेष कदम उठाए गए। 2016 में शुरू किया गया प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) के बाद वर्ष 2017 में लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव शुरू की गई। इसका मकसद लेबर रूम में मैटरनिटी आपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है। इसके जरिए गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान और तत्काल बाद की अवधि में सम्मानजनक और गुणवत्तायुक्त देखभाल उपलब्ध है।