कहा जाता है कि दुनिया भर में 300 से ज्यादा रामायण प्रचलित है। इनमें भगवान राम से जुड़ी कहानियों को अलग-अलग वर्णन भी मिलता है। जैसे ‘दक्षिण रामायण’ के अनुसार भगवान राम के तीन भाईयों के अलावा उनकी एक बड़ी बहन भी थीं। राजा दशरथ और मां कौशल्या की संतान शांता को भगवान राम की बड़ी बहन माना गया है। शांता का थोड़ा सा उल्लेख महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ‘वाल्मीकि रामायण’में भी मिलता है।
ज्यादातर लोगों ने देवी शांता के बारे कम ही सुना है कि क्योंकि भारत में ज्यादा प्रचलित रामचरितमानस में उनका बारे में नहीं लिखा गया है। इसके अलावा 1990 के दशक में टेलिविजन पर मशहूर रामानंद सागर की सीरियल रामायण में भी उनके बारे में कुछ नहीं दिखाया गया।
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अपने मित्र को दिया वचन निभाया
शांता का लालन-पोषण अयोध्या में नहीं हुआ था। कहा जाता है कि अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी की कोई संतान नहीं थी। दुखी मन से दोनों अपने मित्र राजा दशरथ के पास अयोध्या आए। उन्होंने अपनी उदासी की वजह राजा दशरथ और माता कौशल्या के सामने रखी। राजा दशरथ ने उन्हें अपनी बेटी शांता को गोद देने का वचन दिया। हम सुनते आए हैं कि ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन ना जाई…’ राजा दशरथ ने अपना वचन निभाया और रोमपद-वर्षिणी को बेटी दे दिया। उन्होंने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य निभाए।
महान ऋषि श्रृंग के साथ हुआ शांता का विवाह
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि विभण्डक और अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे ऋषि श्रृंग। एक बार राजा रोमपद अपनी पुत्री शांता से बातें कर रहे थे तभी ऋषि श्रृंग वहां पहुंचे। उन्होंने खेतों की जुताई के लिए राजा रोमपद से सहायता मांगी लेकिन वार्ता में लीन रोमपद ने इसे अनसुना कर दिया। ऋषि श्रृंग को काफी दुख पहुंचा और रोमपद के राज्य अंग प्रदेश को छोड़कर चले गए।
वे इंद्र के भक्त थे। अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इंद्र देव राजा रोमपद पर क्रोधित हुए। उन्होंने अंग प्रदेश में पर्याप्त वर्षा नहीं की जिससे वहां खेतों में लगे फसल बर्बाद होने लगे। विपदा की घड़ी में राजा रोमपद ऋषि श्रृंग के पास गए और उनसे उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि वे इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करें। ऋषि ने यज्ञ किया और खेत-खलिहान पानी से भर गए। इसके बाद ऋषि श्रृंग का विवाह शांता से हो गया और वे दोनों साथ रहने लगे।
राजा दशरथ के पुत्रों के लिए ऋषि श्रृंग ने किया यज्ञ
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा दशरथ ने एक बार राजा रोमपद से कहा कि मैं पुत्रहीन हूं, आप शांता और उसके पति श्रृंग ऋषि को बुलवाइए। मैं उनसे पुत्र प्राप्ति के लिए वैदिक अनुष्ठान कराना चाहता हूं। दशरथ की यह बात सुन कर अंग के राजा रोमपाद ने हृदय से इसबात को स्वीकार किया और किसी दूत से श्रृंग ऋषि को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए बुलाया।
कहा जाता है कि जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाया था वह अयोध्या से लगभग 39 किमी पूर्व में था और वहां आज भी उनका आश्रम है। वहीं पर उनकी और उनकी पत्नी की समाधियां भी हैं।
आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में शृंग ऋषि का मंदिर भी है। कुल्लू शहर से इसकी दूरी करीब 50 किमी है। इस मंदिर में श्रृंग ऋषि के साथ देवी शांता की प्रतिमा विराजमान है। यहां दोनों की पूजा होती है और दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।