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विश्वकर्मा ने देवताओं के भवनों का निर्माण किया
उस समय में विश्वकर्मा ही सभी देवताओं और बड़े राजाओं के भवनों का निर्माण करने के लिए आते थे। उन्होंने सभी युग में नगरों को बसाया। महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ जो पांडवों का राज्य था उसे ही विश्वकर्मा ने ही बसाया था। इसके अलावा सोने की लंका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने किया था। साथ ही इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक और जगन्नाथपुरी का निर्माण भी विश्वकर्मा के हाथों हुआ।
देवताओं के अस्त्र व शस्त्र भी इन्हीं ने दिए
मान्यता है कि देवताओं को अस्त्र और शस्त्र भी विश्वकर्मा की ओर से भेंट किए गए। जैसे भगवान शिव का त्रिशूल और विष्णु का सुदर्शन चक्र भी विश्वकर्मा की ओर से बनाए गए। उनकी सोच ने उस समय के आधुनिक निर्माण को जन्म दिया। हालांकि उनके निर्माण से जुड़ी चीजें पृथ्वी पर आए तमाम बदलावों में छिपती चली गई लेकिन पुराणों में उनकी गाथा विद्यमान है। अब कलयुग में लोग विश्वकर्मा को अपने कारोबार, कारखाने और कलपुर्जों के रूप में पूजते हैं।
पूजा का मुहूर्त और तरीका
शुक्रवार को 17 सितंबर के दिन सुबह छह बजे से लेकर 18 सितंबर को साढ़े तीन बजे तक पूजा का मुहूर्त रहेगा। राहुकाल के समय पूजा नहीं कर सकते। राहुकाल 17 सितंबर को सुबह साढ़े 10 बजे से 12 बजे तक लग रहा है। बाकी समय पूजा कर सकते हैं। कुछ प्रतिष्ठानों में मूर्ति स्थापना होती है तो कुछ जगह तस्वीर के साथ पूजा करते हैं। इस दौरान उनके मंत्रों का जाप कर सकते हैं। पूजा के दिन कारखाने को बंद करने और मशीनों व उपकरणों की पूजा करने से समृद्धि की बात कही गई है।
GB Singh