चंद्रमा में आज भी क्यों है दाग, जाने इसका रहस्य क्या कहते हैं पुराण

चांद पर दाग की कहावतें आपने आए दिन सुना होगा और आम  बोल चाल में हम लोग चांद में दाग होने की उदाहरण भी पेश करने लगते हैं। इसके पीछे पौराणिक कहानी भी है जो यह दर्शाती है कि चांद में दाग क्यों है।

पौराणिक कथा के अनुसार अहिल्या जो सती सावित्री कहीं जाती थी वह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी। ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया तो एक स्त्री को उन्होंने निर्मित किया इससे वह अहिल्या के नाम से पुकारते थे। अहिल्या सौंदर्यवान और रूपवान थी। अहिल्या को यह वरदान प्राप्त था कि मैं आजीवन यौवन अवस्था में ही रहेगी और उनकी सुंदरता के आगे स्वर्ग की अप्सरा कम नजर आती थी। इतनी रूपवान की सभी देवता उन्हें पाने की इच्छा रखने लगी थी।
अहिल्या शादी के योग्य हुई तो ब्रह्मा जी ने अहिल्या की शादी के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया और जो विजेता होगा उसके साथ अहिल्या का विवाह करने का प्रस्ताव रखा। इस आयोजन में सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया इसके साथ ही सभी देवताओं ने परीक्षा में हिस्सा लिया। समारोह में देवता सहित ऋषि मुनि भी उपस्थित हुए और इस प्रस्ताव को महेश जी गौतम ऋषि ने स्वीकार किया और उन्होंने इस परीक्षा को सफल कर लिया। तब अहिल्या का विवाह महर्षि ऋषि गौतम के साथ संपन्न हुआ।

वही देव लोगों में अहिल्या की सुंदरता के चर्चे अभी भी हो रहे थे और देवराज इंद्र उनकी सुंदरता से अत्यधिक मोहित हो चुके थे एक दिन काम इच्छा के अधीन होकर अहिल्या से मिलने आए गौतम गौतम ऋषि के चलते इंद्रदेव ने यह दुस्साहस नहीं किया।
तब इंद्रदेव ने अहिल्या से मिलने के लिए एक योजना बनाई और उस योजना को क्रियान्वित करने के लिए चंद्रमा को शामिल किया उन्होंने कहा कि जब ऋषि गौतम प्रातः काल स्नान करने के लिए चले जाएं तब वह उसका लाभ उठाकर अहिल्या को प्राप्त कर लेंगे।
योजना के अनुसार चंद्र देव ने अर्धरात्रि में भी मुर्गे की बांग सुनानी शुरू कर दी तो महर्षि गौतम ने समझा कि सुबह हो गई है और वह तुरंत उठकर गंगा तट पर स्नान करने के लिए चले गए।

जैसे ही महर्षि गौतम गंगा तट पर पहुंचे तो माता गंगा ने उन्हें कहा जिन्हें ऋषि अभी अर्धरात्रि है आपको किसी ने भ्रम में डाला है।

वही उधर इंद्रदेव ने महर्षि गौतम का रूप धारण करके अहिल्या के पास पहुंचे और अहिल्या कुकृत्य भावना से अहिल्या की तरफ से और वही चंद्रमा द्वार पर पहरा दे रहे थे इसके बाद जैसे ही महर्षि आए उनका क्रोध आसमान छू रहा था इसी के चलते उन्होंने गुस्से में आकर चंद्रमा को श्राप दे दिया और उनके चेहरे पर आज भी दाग है।

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