उत्तर प्रदेश में दो ऐसे मंदिर हैं जहां सावन के दौरान पड़ने वाले नागपंचमी के त्योहार पर भक्तों की काफी भीड़ लगती है। एक मंदिर प्रयागराज में है और दूसरा मंदिर बाराबंकी में। प्रयागराज में मंदिर नगवासुकि ंमंदिर कहलाता है। यह मंदिर कब बना इसको लेकर कोई प्रमाण भी नहीं मिलता है। इसमें नागवासुकि की आदमकद प्रतिमा लगाई गई है। वहीं बाराबंकी में साक्षात नाग की पूजा की जाती है। इसे नरगनदेवता मंदिर कहते हैं। आइए जानते हैं दोनों मंदिर के बारे में।
नागवासुकि मंदिर में कालसर्प दोष का निवारण
नागपंचमी का त्योहार आज है। इस दिन सभी मंदिरों में भगवान शिव की पूजा हो रही है साथ ही नाग के ऊपर भी दूध से अभिषेक किया जा रहा है। इस दौरान नागपंचमी पर प्रयागराज में दारागंज ऐसा इलाका है जहां नागवासुकि है। यह मंदिर भक्तों की भीड़ से जुटी हुई है। यहां दर्शन करने से पाप कम होते है। कालसर्प का दोष यहां आने से कट जाता है। यहां सिर्फ नागपंचमी पर विशेष मेला लगता है। मंदिर में पूर्व द्वार की देहली पर शंख बजाते हुए दो कीचक भी हैं। यह मंदिर गंगा के तट पर है। कहा जाात है कि यहां दर्शन करने से काल सर्प दोष मिट जाता है और बाधा दूर होती है। वैसे काल सर्प त्र्यबंकेश्वर, उज्जैन, वाराणसी और उज्जैन में दर्शन से भी कटता है।
नरगनदेवता मंदिर बाराबंकी
लखनऊ से कुछ 40 किलोमीटर के दायरे में ही बाराबंकी का एक गांव है जहां नरगनदेवता मंदिर है। कहा जाता है कि यह मंदिर पहले सांप की बांबी हुआ करता था, जहां ढेरों सांप थे। यहां लोग आते थे और पूजा करते थे दूध चढ़ाते थे। लेकिन अब यहां मंदिर बन चुका है। यहां लोग अपने मस्सों और तिल को जो शरीर पर निकलते हैं उनको ठीक करने की प्रार्थना करने आते हैं। और यह ठीक भी होता है। यहां दूध चढ़ाने के बाद लोग उसकी छोटी मटकी को साथ ले जाते हैं और घरों पर टांगते हैं। कहते हैं कि इससे सांप घर में प्रवेश नहीं करते। यहां भी नागपंचमी पर भीड़ होती है।
GB Singh