जब जब भक्तों पर संकट आता है तब तब स्वयं भगवान धरती पर अवतरित होते हैं और ऐसा ही कुछ पौराणिक कथाओं में कहा गया है। जब भक्त प्रहलाद को एक खंभे से बांध दिया गया था तब उस समय भगवान नरसिंह देव ने खम्मा फाड़ कर के अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए स्वयं प्रकट हुए थे।
भगवान विष्णु दशावतार में यह इनका चौथा रूप है। इसी रूप में उन्होंने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी और हिरण्यकश्यप को मारने के लिए स्वयं धरती पर अवतरित हुए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान नरसिंह भगवान ने खंभे को चीर कर प्रकट हुए थे। हिंदू पंचांग के अनुसार इस दिन को नरसिंह जयंती के रूप में भी मनाते हैं। जिस भी दिन त्रयोदशी और चतुर्दशी साथ में हो उस दिन इस व्रत को धारण करने से अत्यंत शुभ कार्य फल प्राप्त होता है। भगवान विष्णु का नरसिंह रूप के धारण करने को लेकर कई सारी कथाएं भी हैं और कई सारी पूजन पाठ और विधियां भी है। भगवान नरसिंह देव का व्रत हर कोई रख सकता है। व्रत करते समय सुबह के समय स्नान ध्यान करके वैदिक मंत्रों का उच्चारण करें और भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा अर्चना करें। भगवान नरसिंह अत्यंत दयालु है और अपने भक्तों पर करुणा और दया रखते हैं।
जब नरसिंह देव ने खंभा फाड़कर भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए प्रकट हुए थे तब उसी दौरान उन्होंने पहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को याद दिलाया था कि उनकी मृत्यु ना दिन में हो रही है और ना रात में हो रही है और ना घर में हो रही है और ना बाहर हो रही है नरसिंह देव ने यह भी कहा कि हे हिरण्याकश्यप तुम्हारे मांगे गए वरदान में देखो सारा कुछ पूरा हो रहा है। तुम ना धरती में हो ना अंबर में हो तुम सिर्फ मेरी गोद में हो तुम ना अंदर हो ना बाहर हूं तुम देहरी में हो। तुम्हारी दिन में ना तो और ना ही रात में तुम्हारी मौत हो रही है यह संध्या बेला है जब दिन और सांस का मिलन होता है। इस तरह से भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप को सारे वचन को याद दिलाते हुए सही साबित करते हुए उनको परमधाम की ओर भेज देते हैं। और प्रहलाद को उनका राज्य पाठ शॉप देते हैं।
कहां है भगवान नरसिंह का मंदिर
भगवान नरसिंह देव का मंदिर उत्तराखंड में स्थित है जो कि भगवान नरसिंह को समर्पित है। भगवान नरसिंह के अवतार को भगवान विष्णु का चौथा अवतार माना गया है। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित है और इसे धार्मिक आस्था के केंद्रों में गिना जाता है। मान्यता के अनुसार सर्दी के दिनों में इस मठ में इस मंदिर में बद्रीनाथ रहा करते थे इसके कारण इस मंदिर को नारसिंह बद्री या नरसिम्हा बद्री भी कहा जाता है।