55 लाख आबादी फिर भी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियन बन गया ये देश, जानें वजह

न्युजीलैंड महज 55 लाख आबादी वाला देश है लेकिन ये देश क्रिकेट के मामले में बड़े देशों को पीछे छोड़ रहा है। हाल ही में टेस्ट में वर्ल्ड नंबर वन बनी न्यूज़ीलैंड टीम ने अपना पहला आईसीसी खिताब आखिरकार जीत ही लिया। बता दें कि इस टीम को लगातार 2015 और 2019 के वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में पहुंच कर भी खाली हाथ लौटना पड़ा था। लेकिन 144 साल के इतिहास में खेला गए सबसे बड़े टेस्ट मुकाबले को जीत कर इस छोटे से देश ने बड़े-बड़े देशों को पटखनी दे दी है। इंग्लैंड के सॉउथैम्पटन में खेले गए आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल मुकाबले में न्युजीलैंड इंडिया को 8 विकेट से मात देकर पहला वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप जीतने वाला देश बन गया है। तो चलिए जानते हैं उन वजहों को जिनके कारण इस छोटे से देश ने ये ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।

अनुभवी खिलाड़ियों को दिया मौका
न्यूज़ीलैंड ने युवा खिलाड़ियों के साथ अनुभवी खिलाड़ियों का एक अच्छा कॉम्बिनेशन तैयार किया है। टीम में युवा डेविड कॉनवे और अनुभवी रॉस टेलर ने इस ऐतिहासिक जीत में बड़ा योगदान दिया है।

बोर्ड देता है खिलाड़ियों को पूरी छूट
अगर न्यूज़ीलैंड क्रिकेट बोर्ड की सालाना कमाई की बात करें तो महज ये 285 करोड़ रुपये है। बता दें कि इससे ज़्यादा कमाई आईपीएल की सिर्फ एक ही टीम सालाना कर लेती है। जिस वजह से बोर्ड खिलाड़ियों को दुनिया में हो रही लीग्स में खेलने से नहीं रोकता। जिस वजह से इनके खिलाड़ी दुनिया भर में क्रिकेट खेल कर वहां के कंडीशंस को अच्छे से जानते हैं।

प्लानिंग थी मजबूत
न्यूज़ीलैंड टीम ने वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप से पहले इंग्लैंड के साथ दो टेस्ट मैचों की सीरीज खेली थी। जिस वजह से उनको वहां की कंडीशंस और ड्यूक बॉल से प्रैक्टिस करने का अच्छा मौका मिला और वे बेहतर प्लानिंग को अंजाम दे पाए।

इंटरनेशनल क्रिकेट का लोड कम
न्यूज़ीलैंड क्रिकेट बोर्ड अपने खिलाड़ियों का लोड मैनेजमेंट काफी अच्छे से मैनेज करता है। जिस वजह से उनके खिलाड़ियों में चोट की समस्या बहुत कम देखने को मिलती है। इसके अलावा उनके खिलाड़ी बाकि देशों खिलाड़ियों से ज़्यादा फ्रेश रहते हैं।

क्रिकेट इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत होना
न्यूज़ीलैंड डोमेस्टिक लेवल पर खिलाड़ियों को तैयार करने का अच्छा काम करता है। न्यूज़ीलैंड में खिलाड़ियों को घरेलु लेवल पर कई चुनौतियां पार करके ही टीम में जगह मिलती है। इसके अलावा भारत के नेशनल क्रिकेट अकडेमी से ज़्यादा सुविधाएं न्यूज़ीलैंड अपने यंग टैलेंट को देता है।

आक्रामक रवैया कम ही रखते हैं
न्यूज़ीलैंड के कप्तान से लेकर अन्य खिलाड़ियों को शायद ही हम मैदान में उलझते हुए देखें। वो स्लेजिंग जैसी हरकतों से दूर ही रहते हैं। उनका मानना है की ज्यादा आक्रामकता से उनका फोकस खराब होता है। उन्हें संतुलित रहना ज़्यादा पसंद है।

ऋषभ वर्मा

 

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