धर्म

पहली बार जा रहे वैष्णों देवी, तो इन बातों का जान लेना बहुत जरूरी है

हिन्दू धर्म में तीर्थ यात्रा पर जाना पाप मुक्त के समान माना गया है। इसलिए हर इंसान तीर्थ यात्रा पर जरूर जाता है और उसे जाना चाहिए। लेकिन अगर आप पहली बार वैष्णों देवी के दर्शन के लिए जा रहे हैं, तो इसके लिए जरूरी है कि आप पूरी विधि-विधान के साथ माता के दर्शन करें तभी आपको इसाक पूरा फायदा होगा। आज हम आपको इसी विषय से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे आप जानकर अगर पहली बार वैष्णों देवी के दर्शन के लिए जा रहे है। तो आपको भी माता का आशीर्वाद निश्चित ही प्राप्त होगा। तो चलिए जानते हैं कौन सी वह बातें हैं, जो माता के दर्शन से पहले जान लेना जरूरी है? माता वैष्णो देवी मंदिर- माता वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा का पहला पड़ाव जम्मू में होता है। यहां तक आप ट्रेन, बस या फिर हवाई जहाज से पहुंच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन द्वारा जुड़ा है। हमारी आपको हिदायत है कि आप मंदिर तक अपनी टैक्सी कर के या फिर बस से जाएं क्योंकि गर्मी में भक्तों की यहां काफी भीड़ हो जाती है जिससे ट्रेन काफी भरी होती है। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है। शुरुआत कटरा से- अगर बात की जाए वैष्णों देवी भवन की तो उसकी शुरुआत कटरा से होती है। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 50 किमी है। जम्मू से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुंचा जा सकता है। यहां आपको बता दें कि जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है जिससे 2 घंटे में आसानी से कटरा पहुंचा जा सकता है। माता वैष्णो देवी मंदिर यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है, इसलिए कटरा पहुंचकर थोड़ी देर आराम कर लें। क्योंकि इसके बाद आपको वैष्णो देवी की चढ़ाई शुरू करनी है। आप पूरे दिन में कभी भी मां वैष्णों देवी की चढ़ाई शुरू कर सकती हैं। 6 घंटे में दिखानी होती है पर्ची- वैष्णों देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको पर्ची कटवानी पड़ेगी, जिसे आपको 6 घंटे के अंदर ही फर्स्ट चेकिंग पॉइंट पर दिखानी होती है। कटरा से लगभग 14 मीटर खड़ी चढ़ाई के बाद ही मां के भवन के दर्शन होते हैं। आप यहां तक घोड़े और पालकी की सहायता से भी जा सकते हैं। इसके लिए आपको 1000 और 2000 तक पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं। अब करें भैरव दर्शन- वैष्णो देवी के बाद भैरव दर्शन जरूर करें। क्योंकि यहां कि मान्यता है कि यदि आप पहली बार वैष्णों देवी गए हैं, तो भैरव मंदिर के दर्शन करने के बाद ही आपकी मुराद पूरी होगी। भैरव मंदिर, वैष्णो देवी के भवन से लगभग 3 किलोमीटर दूरी स्थित है। वैसे कई भक्त जब-जब मां वैष्णों देवी के दर्शन करने आते हैं तब-तब भैरव के दर्शन करने भी जरूर जाते हैं।

हिन्दू धर्म में तीर्थ यात्रा पर जाना पाप मुक्त के समान माना गया है। इसलिए हर इंसान तीर्थ यात्रा पर जरूर जाता है और उसे जाना चाहिए। लेकिन अगर आप पहली बार वैष्णों देवी के दर्शन के लिए जा रहे हैं, तो इसके लिए जरूरी है कि आप पूरी विधि-विधान …

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आज भी इस जगह पर माता सीता की मौजूदगी के सक्ष्य निर्मित हैं

रामायण काल की अगर बात करें, तो आज के समय में इसकी जानकारी हमें धर्म ग्रंथों मे ही सुनने को मिलती हैं। वंही अगर साक्ष्य की बात करें, तो यह भी धर्म ग्रन्थों में ही देखने को मिलते हैं। भारत में इस प्रकार की कोई भी वस्तु अब तक मौजूद नहीं है, जो यह साबित करे की भगवान राम और सीता इस धरती पर थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि, यह धरती पर नहीं थें? क्योंकि भले भारत में इनके साक्ष्य नहीं मिलते लेकिन भारत के बाहर एक जगह ऐसी भी हैं, जहां भगवान राम और माता सीता की आज भी कुछ जरूरी चीजें संभाल कर रखी गई हैं। जिनके बारे में आज हम आपसे यहां पर चर्चा करेंगे। यह चीजें कंही और नहीं बल्कि भारत के ही पड़ोसी देश श्रीलंका में मौजूद है, तो चलिए जानते हैं इसके बारे में.... सीता टीयर तालाब- ये सीता जी के आंसुओं से बना है, कैंडी से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित नम्बारा एलिया मार्ग पर एक तालाब मौजूद है, जिसे सीता टियर तालाब कहते हैं। इसके बारे कहा गया है कि बेहद गर्मी के दिनों में जब आसपास के कई तालाब सूख जाते हैं, तो भी यह कभी नहीं सूखता। आसपास का पानी तो मीठा है, लेकिन इस का पानी आंसुओं जैसा खारा है। कहते हैं कि रावण जब सीता माता को हरण करके ले जा रहा था, तो इसमें सीता जी के आंसू गिरे थे। आज भी इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है. पुष्पक विमान स्थल- लंका में आज भी कुछ ऐसी जगह मौजूद है, जिनका संबंध रामायण काल से माना जाता है. सिन्हाला शहर में वेरागनटोटा नाम की एक जगह है, जिसका मतलब ‘विमान उतरने की जगह’ होता है। कहते हैं कि यही वो जगह है, जहां रावण का पुष्पक विमान उतरता था। अशोक वाटिका- इसे हर भारतीय याद करता है, क्योंकि माता सीता को रावण ने यहीं रखा था। भगवान राम की याद में माता सीता ने एक पेड़ के नीचे न जानें कितने दिन गुज़ार दिए थे। अशोक वाटिका वो जगह है, जहां रावण ने माता सीता को रखा था। आज इस जगह को सेता एलीया के नाम से जाना जाता है, जो की नूवरा एलिया नामक जगह के पास स्थित है। यहां आज सीता का मंदिर है और पास ही एक झरना भी है, कहते हैं देवी सीता यहां स्नान किया करती थीं। इस झरने के आसपास की चट्टानों पर हनुमान जी के पैरों के निशान भी मिलते हैं।

रामायण काल की अगर बात करें, तो आज के समय में इसकी जानकारी हमें धर्म ग्रंथों मे ही सुनने को मिलती हैं। वंही अगर साक्ष्य की बात करें, तो यह भी धर्म ग्रन्थों में ही देखने को मिलते हैं। भारत में इस प्रकार की कोई भी वस्तु अब तक मौजूद …

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एक अद्भुत मंदिर जहां हवन में किया जाता है मिर्ची का उपयोग

भारत में मंदिरो की बहुलता देखी जा सकती है, दुनिया मेें भारत ही एक ऐसा देश है, जहां पर सबसे ज्यादा मंदिर मौजूद है और इसलिए इसे देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है। इन अद्भुत मंदिरों की वजह से ही भारत को दुनिया में एक अलग ही दर्जा मिलता है। आज हम आपसे एक ऐसे ही मंदिर के बारे में चर्चा करने वाले हैं, जो अपने आप में एक अद्भुत मंदिर है। यह मंदिर अद्भुत इसलिए हैं, क्योंकि यहां पर माता के हवन के दौरान मंदिर में मिर्च का उपयोग किया जाता है। जानकर आपको भी यकीन नहीं होता होगा लेकिन आपको बतादें कि यह बात बिलकुल सच है। तो चलिए जानते है इस मंदिर से जुड़ी अद्भुत चीजों के बारे में.... मां बमलेश्वरी मंदिर – हिंदू धर्म में मां दुर्गा के 51 शक्तिापीठ हैं, छत्तीसगढ़ राज्य का डोंगरगढ़ मंदिर भी कुछ ऐसा ही है। मां बमलेश्वरी मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को हज़ार से भी ज्याबदा सीढियां चढ़नी पड़ती हैं। वैसे तो इस मंदिर में सालभर ही भक्तोंन की भीड़ रहती है, लेकिन नवरात्र के दिनों में इस मंदिर की रौनक कुछ अलग ही होती है। हवन की अनूठी विधि- मां बमलेश्वरी मंदिर में हवन की विधि बहुत अनूठी है। यहां पर हवन सामग्री में लाल मिर्च का प्रयोग किया जाता है। किवदंती है कि लाल मिर्च शत्रुओं का नाश करती है, इसलिए यहां पर हवन सामग्री में लाल मिर्च का प्रयोग किया जाता है, ताकि हवन करवाने वाले व्योक्ति के सभी शत्रुओं का नाश हो जाए।

भारत में मंदिरो की बहुलता देखी जा सकती है, दुनिया मेें भारत ही एक ऐसा देश है, जहां पर सबसे ज्यादा मंदिर मौजूद है और इसलिए इसे देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है। इन अद्भुत मंदिरों की वजह से ही भारत को दुनिया में एक अलग ही …

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तो इस वजह से चढ़ाया जाता है शनि देव को तेल

न्याय के देवता माने जाने वाले शनि देव जिनकी दृष्टि से हर इंसान बचना चाहता है। क्योंकि इनकी दृष्टि जिस भी इंसान पर पड़ती है, उसकी किस्मत उससे ऐसे दूर भागती है, जैसे उसकी किस्मत बनी ही नहीं। शनिदेव की इसी दृष्टि से बचने के लिए लोग उन्हे खुश रखने की कोशिश करते हैं और उन्हे तेल अर्पित करते हैं। माना जाता है कि शनिदेव को तेल अर्पित करने से वह जल्द ही प्रसन्न होते हैं। लेकिन ऐसा क्या कारण है, जिस वजह से शनिदेव को तेल प्रिय है। अगर आप भी कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं, तो यहां पर आज हम आपसे इससे ही जुड़ी बातों पर चर्चा करने वाले हैं, जहां पर हम जानेंगे कि आखिर शनिदेव को तेल क्यों प्रिय है? पौराणिक कथाओं में वर्णन किया गया है, कि जब अहंकार में चूर रावण ने अपने बल से सभी गृहों को बंदी बना लिया था,तब शनिदेव को भी उसने बंदीगृह में उल्टा कर लटका दिया था। जब हनुमानजी, प्रभु राम के दूत बनकर लंका पहुंचे, तो रावण ने उनकी पूंछ में भी आग लगवा दी। रावण की इस हरकत से क्रोधित होकर हनुमानजी ने पूरी लंका जला दी और सारे गृह आजाद हो गए, लेकिन उल्टा लटका होने के कारण शनि के शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी और वह दर्द से कराह रहे थे। तब शनि के दर्द को शांत करने के लिए हुनमानजी ने उनके शरीर पर तेल से मालिश की थी। उसी समय शनि ने कहा, कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से उन पर तेल चढ़ाएगा उसे सारी समस्याेओं से मुक्ति मिलेगी। और तभी से शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई थी।

न्याय के देवता माने जाने वाले शनि देव जिनकी दृष्टि से हर इंसान बचना चाहता है। क्योंकि इनकी दृष्टि जिस भी इंसान पर पड़ती है, उसकी किस्मत उससे ऐसे दूर भागती है, जैसे उसकी किस्मत बनी ही नहीं। शनिदेव की इसी दृष्टि से बचने के लिए लोग उन्हे खुश रखने …

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क्या अस्त ग्रह फल भी देते हैं, जानें कैसे करें उन्हें बलशाली

मल्टीमीडिया डेस्क। आकाश मंडल में कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दूरी के अंदर आ जाता है, तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपनी शक्ति खोने लगता है। इसे ही ग्रह का अस्त होना माना जाता है। जब कोई ग्रह अस्त हो जाता है, तो उसके फल देने की स्थिति में कमी आ जाती है। यानी यदि वह शुभ फल देने वाला है, तो पूर्ण शुभ फल नहीं दे पाता है। यदि अशुभ फल देने वाला है, तो उसके अशुभ फल देने में कमी आ जाती है। सूर्य के समीप आने पर छहों ग्रह अस्त हो जाते हैं, लेकिन राहु और केतु कभी अस्त नहीं होते हैं। इतने करीब होने पर होते हैं अस्त ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, चंद्रमा सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक करीब आने पर अस्त माने जाते हैं। वहीं, सूर्य के दोनों ओर 11 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर गुरू अस्त माने जाते हैं। शुक्र, सूर्य के दोनों ओर 10 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। वक्री शुक्र यदि सूर्य के दोनों ओर 8 डिग्री या इससे अधिक करीब हो, तो अस्त माना जाता है। सूर्य के दोनों ओर 14 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर बुध अस्त माने जाते हैं। वक्री बुध यदि सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक करीब हो, तो अस्त माने जाते हैं। सूर्य के दोनों ओर 15 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर शनि अस्त माने जाते हैं। अतिरिक्त बल देने की जरूरत अस्त ग्रहों सही फल दें, इसके लिए उन्हें अतिरिक्त बल देने की जरूरत होती है। कुंडली के आधार पर यह निर्णय किया जाता है कि अस्त ग्रह को अतिरिक्त बल कैसे प्रदान किया जा सकता है। यदि वह ग्रह शुभ फल देने वाला है, तो उसे अतिरिक्त बल प्रदान करना चाहिए। इसके लिए जातक को संबंधित ग्रह का रत्न धारण करवाया जाता है। हालांकि, यदि किसी अस्त ग्रह अशुभ फल देने वाला है या अकारक है, तो उसे अतिरिक्त बल नहीं देना चाहिए। इस स्थिति में संबंधित ग्रह का रत्न नहीं पहनाना चाहिए। इस स्थिति में उस ग्रह के मंत्र, बीज मंत्र या सामान्य पूजा से उसे ठीक करना चाहिए।

 आकाश मंडल में कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दूरी के अंदर आ जाता है, तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपनी शक्ति खोने लगता है। इसे ही ग्रह का अस्त होना माना जाता है। जब कोई ग्रह अस्त हो जाता है, तो उसके फल देने की …

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अक्षय तृतीया से फिर बजेंगी शहनाई, दिसंबर तक 41 विवाह मुहूर्त

भोपाल। 14 मार्च को खरमास लगने के साथ ही शादियों समेत अन्य शुभ कार्यों पर लगा विराम 14 अप्रैल को खत्म होने जा रहा है। इसके बाद 18 अप्रैल से सर्वार्थ सिद्धि योग में आ रही अक्षय तृतीया के अबूझ मुहूर्त से एक बार फिर शहनाइयां बजना शुरू होंगी। 14 अप्रैल के अगले तीन दिन तक विवाह के श्रेष्ठ मुहूर्त नहीं हैं, इसलिए विवाह कार्य 18 अप्रैल से ही शुरू हो रहे हैं। गौरतलब है कि 14 अप्रैल तक मीन संक्रांति का खरमास होने से शादियों एवं अन्य शुभ कार्य के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त नहीं मना जाता है। अप्रैल से जुलाई तक इस बार विभिन्न तारीखों में शादी के लिए कई श्रेष्ठ मुहूर्त आएंगे। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 18 अप्रैल को अक्षय तृतीया से पहले एक भी श्रेष्ठ मुहूर्त नहीं है। पंडित रामजीवन दुबे के मुताबिक अक्षय तृतीया भी खास है, क्योंकि इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6.06 से रात 8.10 बजे तक रहेगा। इसमें शादियां ही नहीं बाजार से खरीदारी भी शुभ रहेगी। सूर्य-चंद्रमा का उच्च राशि होना भी शुभता का प्रतीक है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस साल अप्रैल से दिसंबर तक कुल 41 विवाह मुहूर्त ही बन रहे हैं। 16 मई से 13 जून तक फिर लगेगा विवाहों पर विराम 16 मई से 13 जून तक अधिकमास में शादियों पर एक बार फिर विराम लग जाएगा। अगस्त, सितंबर, अक्टूबर से लेकर 18 नवंबर तक शादियां बंद रहेंगी। देव उठनी एकादशी 19 नवंबर को भी शादियों का मुहूर्त नहीं रहेगा। नवंबर माह में शुक्र मार्गी होकर पुनः अस्त हो जाएगा। 21 जुलाई भड़ली नवमी एवं 23 जुलाई को देव शयनी एकादशी को शादियां नहीं होंगी। इन तारीखों में गूंजेगी शहनाई अप्रैल- 18, 19, 20, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 18 अप्रैल अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त है। - मई- 1, 2, 3, 4, 5, 6, 11, 12, 13 (16 मई से 13 जून तक अधिमास में शादियां बंद रहेंगी) - जून - 14, 18, 20, 21, 23, 25, 27, 28, 29, 30 विवाह मुहूर्त। - जुलाई - 4, 5, 6, 9, 10, 11, 15, 16 (21 भड़ली नवमी एवं 23 जुलाई से देवशयनी एकादशी) - नवंबर- शादियां नहीं होंगी - दिसंबर-8, 10, 11, 15 विवाह मुहूर्त। - अबूझ मुहूर्त में होंगे सैंकड़ों विवाह 18 अप्रैल को अक्षय तृतीया व अबूझ मुहूर्त पर शहर में विभिन्ना समाजों द्वारा सामूहिक विवाह सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। इनमें सैंकड़ों जोड़ों का विवाह संपन्ना होगा। एयरपोर्ट रोड स्थित आसाराम बापू आश्रम में ब्राह्मण समाज समिति द्वारा सर्व ब्राह्मण समाज का विवाह सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें 51 जोड़ों का विवाह होगा। विवाह सम्मेलन के अध्यक्ष गौरी शंकर काका व रमेश विरथरिया होंगे। पंडित जगदीश शर्मा ने बताया कि अबूझ मुहूर्त में शहर में सैंकड़ों शादियां होने जा रही हैं, जिसके कारण विवाह संपन्ना कराने वाले वैदिक ब्राह्मणों को अन्य जिलों से आमंत्रित किया जा रहा है। कोलार रोड स्थित पाहाड़ा वाली माता पर भी विवाह सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। इसके साथ ही श्यामला हिल्स स्थित टैगोर छात्रावास खेल मैदान में भी सामूहिक विवाह सम्मेलन होगा। उमाशंकर गुप्ता के संरक्षण व नया भोपाल क्षेत्र जनकल्याण समिति के तत्वावधान में यह सम्मेलन होगा, जिसमें 51 सर्वजातीय जोड़ों का विवाह कराया जाएगा। विवाह सम्मेलन संयोजक शैलेन्द्र निगम ने बताया कि सम्मेलन से एक दिन पूर्व सभी कन्याओं की हल्दी, तेल, महंदी रस्म पूरी की जाएगी व महिला संगीत का आयोजन भी किया जाएगा। 18 अप्रैल सुबह 10 बजे सभी 51 दूल्हे सजकर घोड़ी पर सवार होंगे। जो पालीटेक्निक चौराहा स्थित गांधी भवन बारात लेकर सम्मेलन स्थल पर पहुंचेंगे। इसके अलावा रातीबड़, करोंद सहित कई कई समाजों के विवाह सम्मेलन अबूझ मुहूर्त में आयोजित किए जाएंगे।

 14 मार्च को खरमास लगने के साथ ही शादियों समेत अन्य शुभ कार्यों पर लगा विराम 14 अप्रैल को खत्म होने जा रहा है। इसके बाद 18 अप्रैल से सर्वार्थ सिद्धि योग में आ रही अक्षय तृतीया के अबूझ मुहूर्त से एक बार फिर शहनाइयां बजना शुरू होंगी। 14 अप्रैल …

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जानें कैसे फल देते हैं कुंडली में अस्त होने पर ग्रह

मल्टीमीडिया डेस्क। आकाश मंडल में कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दूरी के अंदर आ जाता है, तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपनी शक्ति खोने लगता है। इसे ही ग्रह का अस्त होना माना जाता है। जब कोई ग्रह अस्त हो जाता है, तो उसके फल देने की स्थिति में कमी आ जाती है। यानी यदि वह शुभ फल देने वाला है, तो पूर्ण शुभ फल नहीं दे पाता है। यदि अशुभ फल देने वाला है, तो उसके अशुभ फल देने में कमी आ जाती है। सूर्य के समीप आने पर छहों ग्रह अस्त हो जाते हैं, लेकिन राहु और केतु कभी अस्त नहीं होते हैं। जानें कैसे फल देते हैं अस्त ग्रह... जानें कौन सा ग्रह देता है कैसे फल चन्द्र ग्रह- जब चंद्रमा अस्त होता है, तो तो व्यक्ति के जीवन में अशांति बनी रहती है। मां से संबंध खराब हो जाते हैं, मां का स्वास्थ ठीक नहीं रहता। यहि अस्त चन्द्रा अष्टम भाव या अष्टमेश के साथ हो, तो व्यक्ति को काफी मानसिक त्रास होता है। एनीमिया, फेफड़ों के रोग, मानसिक तनाव, डिप्रेशन और अस्थमा जैसे रोग हो सकते हैं। मंगल ग्रह- मंगल साहस और पराक्रम का कारक है। इसके अस्त होने पर साहस में कमी, क्रोध में वृद्धि, छोटे भाईयों से तनाव, भूमि विवाद, नसों में दर्द, दुर्घटना, कोर्ट कचेहरी के चक्कर, पत्नी को शारीरिक कष्ट जैसी परेशानियां होती हैं। यदि मंगल छठवें भाव में पापी ग्रहों से साथ हो या दृष्टि संबंध बना रहा हो तो दुर्घटना और बीमारियों की आशंका होती है। छठे भाव से मंगल का संबंध व्यक्ति को कर्ज में डाल देता है। 12वें भाव में अस्त मंगल व्यक्ति को नशे का लती बना देता है। बुध ग्रह- व्यापार और वाणी का कारक बुध यदि अस्त हो, तो बुद्धि सही से काम नहीं करती। वाणी खराब हो जाती है। जातक में विश्वास की कमी, शरीर में ऐंठन, श्वास, चर्म रोग और गले आदि के रोग हो जाते है। 12वें भाव के स्वामी के साथ अस्त बुध संबंध बनाने पर नशे का लती बना देता है। गुरु ग्रह- देवगुरु बृहस्पति वैसे तो शुभ ग्रह हैं। मगर, इनके अस्त हो जाने पर गुरु से मिलने वाले शुभ प्रभाव कम हो जाते हैं। गुरू के अस्त होने से सन्तान उत्पन्न में बाधा आती है, बुर्जुगों को कष्ट होगा, शिक्षा में रुकावटें आती हैं और व्यक्ति नास्तिक हो जाता है। बृहस्पति की अन्तर्दशा में अस्त गुरु लीवर का रोग, टाइफाइड ज्वर, मधुमेह, साइनस की समस्या, कोर्ट कचेहरी, शिक्षकों से मतभेद, पढ़ाई में अरुचि जैसी समस्या देता है। शुक्र ग्रह- भोग-विलास और ऐश्वर्य का कारक शुक्र अस्त होने पर विवाह में समस्या, महिलाओं को गर्भाशय के रोग, नेत्र रोग, किडनी रोग, गुप्त रोग देता है। यह चरित्र को बुरी तरह प्रभावित करता है। राहु-केतु से संबंध होने पर मान-सम्मान कम कर देता है। अस्त शुक्र छठवें भाव के स्वामी के साथ संबंध बनाए, तो किडनी, मू़त्राशय व यौन अंगों के विकार देता है। शनि ग्रह- न्याय के देवता माने जाने वाले शनि कर्म प्रधान ग्रह हैं। इनके अस्त होने पर नौकरी या व्यापार में परेशानी, वरिष्ठ अधिकारियों से अनबन, सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी, नशीले पदार्थों की लत लग जाती है। कमर दर्द, पैरों में दर्द, स्नायु तंत्र के रोग हो जाते हैं। अस्त शनि अगर का छठवें भाव के स्वामी के साथ संबंध रीढ़ की हड्डी में दर्द देता है।

मल्टीमीडिया डेस्क। आकाश मंडल में कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दूरी के अंदर आ जाता है, तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपनी शक्ति खोने लगता है। इसे ही ग्रह का अस्त होना माना जाता है। जब कोई ग्रह अस्त हो जाता है, तो उसके फल देने …

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शनि होंगे वक्री, बढ़ेंगी दुर्घटनाएं, राशियों पर होगा ये असर

ग्वालियर। 18 अप्रैल अक्षय तृतीय से शनि धनु राशि में रहते हुए अपनी वक्रगति से चलना प्रांरभ कर देंगे। वहीं 18 अप्रैल को ही परशुराम जयंती भी है। शनि का यह वक्री काल 6 सितम्बर तक रहेगा। ज्योतिषाचार्य पं. सतीश सोनी के अनुसार शनि का वक्री काल 18 अप्रैल को सुबह 7.17 मिनट से प्रांरभ हो जाएगा। गुरु और शनि के वक्रगति होने से एवं शनि मंगल का शुक्र के साथ षड़ाष्टक योग से अपराधों में वृद्वि और दुर्घटनाओं में इजाफा होगा। साथ ही महंगाई भी बढ़ने की भी संभावना है। इन राशियों पर रहेगा ये प्रभाव - मेष : न्याय क्षेत्र में लाभ - वृषभ : कष्टों से सामना - मिथुन : व्यापार से लाभ - कर्क : शत्रु होंगे परास्त - सिंह : संतान से कष्ट - कन्या : पारिवारिक कलेश - तुला : स्थान परिवर्तन - वृश्चिक : नया समाचार मिलेगा। - धनु : चोट का भय रहेगा। - मकर : धन की हानि - कुंभ : धन लाभ - मीन : उच्च पद की प्राप्ति यह करें उपाय शनि देव को प्रसन्न और शांत रखने के लिए दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करें। हनुमान जी को चोला चढ़ाएं। सरसों के तेल का दान करें।

 18 अप्रैल अक्षय तृतीय से शनि धनु राशि में रहते हुए अपनी वक्रगति से चलना प्रांरभ कर देंगे। वहीं 18 अप्रैल को ही परशुराम जयंती भी है। शनि का यह वक्री काल 6 सितम्बर तक रहेगा। ज्योतिषाचार्य पं. सतीश सोनी के अनुसार शनि का वक्री काल 18 अप्रैल को सुबह …

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बरुथनी एकादशी व्रत, करोड़ों सालों की तपस्या का देता है फल

मल्टीमीडिया डेस्क। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरुथनी एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 12 अप्रैल को है। विष्णु पुराण के अनुसार बरुथनी एकादशी का व्रत सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व होता है। जो यह व्रत करता है उसके सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन जरुरतमंद को दान देने से करोड़ों वर्ष तक तपस्या करने और कन्यादान के भी फलों से बढ़कर फल मिलता है। बरूथनी एकादशी व्रत कथा पद्म पुराण के अनुसार, प्राचीन समय में नर्मदा तट पर मांधाता राजा राज्य सुख भोग रहा था। राजकाज करते हुए भी वह अत्यन्त दानशील और तपस्वी था। एक दिन जब वह तपस्या कर रहा था, तब एक जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा। थोड़ी देर बाद वह राजा को घसीट कर वन में ले गया। तब राजा ने घबरा गया, लेकिन तपस्या धर्म के अनुकुल क्रोध न करके भगवान श्री विष्णु से प्रार्थना की। भक्तों को संकट से बचाने वाले श्री विष्णु वहां प्रकट हुए़ और भालू को चक्र से मार डाला। राजा का पैर भालू खा चुका था, जिससे राजा शोकाकुल था। तब भगवान विष्णु ने उसको दु:खी देखकर कहा कि कि तुम मथुरा में मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा बरूथनी एकादशी का व्रत करके करो। ट्रेन जैसा दिखता है अलवर का यह सरकारी स्कूल, बरामदा प्लेटफॉर्म जैसा इसके प्रभाव से तुम पुन: अंगों वाले हो जाओगे। भालू ने तुम्हारा जो अंग काटा है, वह अंग भी ठीक हो जाएगा। यह तुम्हारा पैर पूर्वजन्म के अपराध के कारण भालू खा गया था। राजा ने इस व्रत को पूरी श्रद्वा से किया और वह फिर से सुंदर अंगों वाला हो गया। इस व्रत में इन कार्यों से बचें एकादशी से एक दिन पहले से ही कांसे के बर्तन में भोजन, मांस, मसूर की दाल, चने, शाक, शहद और पान आदि का सेवन न करें। किसी दूसरे के अन्न, दूसरी बार भोजन न करें। मन को पवित्र बनाएं, जुआ न खेलें, रात्रि को शयन न करें, निंदा, क्रोध और झूठ न बोलें।

मल्टीमीडिया डेस्क। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरुथनी एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 12 अप्रैल को है। विष्णु पुराण के अनुसार बरुथनी एकादशी का व्रत सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस …

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इन गलतियां की वजह से हमेशा आपके करीब आती हैं बुरी आत्माएं…

इन गलतियां की वजह से हमेशा आपके करीब आती हैं बुरी आत्माएं...इन गलतियां की वजह से हमेशा आपके करीब आती हैं बुरी आत्माएं...

हर एक इंसान के जीवन में कभी अच्छा समय चलता है तो कभी बुरा समय। वातावरण में दो तरह की  शक्तियां काम करती हैं एक सकारात्मक और दूसरी नकारात्मक शक्ति। सकारात्मक शक्तियां आस पास होने से मनुष्य के दिमाग पर अच्छा प्रभाव पड़ता है जबकि नकारात्मक शक्तियां हावी होने पर …

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