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15 अगस्त नहीं, करोड़ों भारतीयों के लिए आज है स्वतंत्रता दिवस

भारत का स्वतंत्रता दिवस कब है? इसका आसान सा जवाब है 15 अगस्त, जो 15 दिन पहले बीत चुका है। अगर हम आपसे कहें कि करोड़ों भारतीयों के लिए आज (31 अगस्त) स्वतंत्रता दिवस है। आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा, लेकिन ये सच है। दरअसल, 1947 को भारत तो आजाद हो गया, लेकिन इसकी 190 जनजातियों के करोड़ों नागरिकों को पांच साल बाद 31 अगस्त, 1952 को असली आजादी मिली। इसे ये लोग इस तारीख को विमुक्ति दिवस के तौर पर भी मनाते हैं। अंग्रेजों ने इन करोड़ों लोगों को एक खास अधिनियम के तहत 180 साल तक उनके घरों में ही कैद कर दिया था। अब ये आजादी से घूम सकते हैं। लेकिन अब भी अंग्रेजों द्वारा इन पर लगाया गया दाग, समाज में इन्हें वो स्थान और सम्मान नहीं देता जो इनका हक है और आजाद भारत का नागरिक होने के नाते मिलना चाहिए। EXCLUSIVE: 15 अगस्त नहीं, करोड़ों भारतीयों के लिए आज है स्वतंत्रता दिवस यह भी पढ़ें क्यों विमुक्ति दिवस मनाती हैं 190 जनजातियां देश की 190 जनजातियां 31 अगस्त को क्यों विमुक्ति दिवस या दूसरा स्वतंत्रता दिवस मनाती हैं। इसका जवाब जानने के लिए आपको गुलाम भारत के इतिहास में जाना होगा। जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। वर्ष 1871 में अंग्रेजों ने 'आपराधिक जनजाति अधिनियम' लागू करके देश की कई जनजातियों को जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया था। जानिये- 3 साल में कितना बदल गए केजरीवाल, 'आप' में भी नहीं रही वो बात यह भी पढ़ें 1857 के विद्रोह से घबराकर अंग्रेजों ने उठाया था कदम इसकी एक बड़ी वजह अंग्रेजों के खिलाफ हुआ 1857 का विद्रोह भी माना जाता है। जानकारों का मानना है कि 1857 के विद्रोह में बहुत सी जनजातियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। विद्रोह से घबराए अंग्रेजों ने भारतीयों पर नज़र रखने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए दर्जनों कानून बनाए थे। हालांकि इन कानूनों से उन जनजातियों पर नियंत्रण पाना बहुत मुश्किल था, जिनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं था। पढ़ें- रूह कंपा देने वाली मर्डर मिस्ट्री का सच, जिसने करोड़ों लोगों के उड़ाए थे होश यह भी पढ़ें ये घुमंतु जनजातियां थीं, जो एक शहर से दूसरे शहर में ठिकाना बदलती रहती थीं। ऐसी जनजातियों को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेजों ने उन्हें सूचीबद्ध कर 1871 में उन पर 'आपराधिक जनजाति अधिनियम' लागू कर दिया। इस अधिनियम के तहत इन जनजातियों के सभी सदस्यों को अपराधी घोषित कर दिया गया। मणिपुर के मुख्यमंत्री को धमकी देने वाला शख्स दिल्ली में गिरफ्तार यह भी पढ़ें बच्चा पैदा होते ही अपराधी मान लिया जाता था ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ में शामिल जनजातियों के यहां बच्चा पैदा होते ही उस पर अपराधी का ठप्पा लग जाता था। करीब 180 सालों तक देश ने इन जनजातियों को कानूनी तौर पर जन्मजात अपराधी माना। इसके चलते धीरे-धीरे हमारे भारतीय समाज ने भी इन जनजातियों को अपराधी मान लिया। बस्ती बनाकर कैद कर दिया गया था इन्हें अंग्रेजों के बनाए इस अधिनियम में समय-समय पर संशोधन हुए। इन संशोधनों के तहत अधिनियम में सुधार की जगह धीरे-धीरे 190 जनजातियों को इसके दायरे में लाकर अपराधी घोषित कर दिया गया। इसके बाद पुलिस में भर्ती होने वाले जवानों को इनके बारे में पढ़ाया जाने लगा। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें बताया जाता था कि ये जनजातियां पारंपरिक तौर से अपराध करती आई हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि इन जनजातियों के लोगों को हर जगह अपराधियों के तौर पर देखा जाने लगा। साथ ही पुलिस को उनका शोषण करने करने के लिए अपार शक्तियां दे दी गईं। देशभर में लगभग 50 ऐसी बस्तियां भी बनाई गईं जिनमें इन जनजातियों को जेल की तरह कैद कर दिया गया। इन बस्तियों की चारदीवारी के बाहर हर वक्त पुलिस का पहरा लगता था। बस्ती के बच्चों से लेकर हर सदस्य को बाहर आते-जाते वक्त पुलिस को अनिवार्य रूप से सूचना देनी होती थी या उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती थी। आजादी के पांच साल बाद खत्म हुआ अधिनियम 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया। बावजूद 1871 में अपराधी घोषित हुईं जनजातियों की स्थिति नहीं सुधरी। देश की आजादी के पांच साल बाद 31 अगस्त 1952 को इन जनजातियों को अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ से आजादी (विमुक्ति) मिली। इसीलिए इन जनजाति के लोगों ने 31 अगस्त को 'विमुक्ति दिवस' के रूप में मनाना शुरू कर दिया और इसे दूसरे स्वतंत्रता दिवस के तौर पर देखा जाने लगा। आजाद भारत में भी इन जनजातियों के प्रति सोच नहीं बदली देश आजाद होने और अधिनियम खत्म होने के बावजूद आज भी हमारा समाज इन जनजातियों को अपराधी मानता है। यही वजह है कि वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश के घाट अमरावती गांव में पारधियों के दस घर फूंके गए दिए गए थे। वर्ष 2007 में जिला वैशाली बिहार में नट जनजाति के दस लोगों को भीड़ ने चोर होने के संदेह में पीट-पीट कर मार डाला था। सितंबर 2007 में ही बैतूल जिला मध्य प्रदेश के चौथिया गांव में पारधियों के 350 परिवारों के घर जला दिए गए थे। इस घटना के बाद चौथिया गांव के जिला पंचायत सदस्य ने बयान दिया था कि 'कुछ भी करना पड़े, किसी भी स्तर तक जाना पड़े, पर इन कुत्ते हरामजादे पारधियों को यहां बसने नहीं देना चाहिए।' दरअसल उन्होंने ये बयान इस जनजाति को अपराधी मानते हुए दिया था। आज भी पुलिस इन जनजातियों को अपराधी मानती है ये महज कुछ बड़ी घटनाएं ही हैं। इन जनजातियों पर होने वाले अत्याचार की दर्जनों घटनाएं हर साल पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज होती हैं। बहुत सी घटनाओं में तो शिकायत ही नहीं की जाती है या पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है। घुमंतू जनजातियों के साथ आज भी समाज ही नहीं बल्कि पुलिस, प्रशासन और व्यवस्था द्वारा भी ऐसा ही सौतेला व्यवहार होता है। आज भी पुलिस इन जनजातियों को जन्मजात अपराधी मानती है। लिहाजा इन्हें किसी भी मामले में गिरफ्तार कर लिया जाता है। सरकारी नौकरी पर भी बावरिया के बेटे को नहीं मिला एजुकेशन लोन पुलिस उत्पीड़न के अलावा भी इन लोगों को कई मोर्चों पर अपनी जनजातीय पहचान का नुकसान भुगतना पड़ता है। गुड़गांव जिले के नरहेड़ा गांव निवासी छन्नूराम बावरिया जन स्वास्थ्य विभाग में सरकारी नौकरी करते हैं। कई साल की सरकारी नौकरी के बाद उन्होंने जब अपने बेटे की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बैंक से एजुकेशन लोन मांगा तो उन्हें मना कर दिया गया। उन्होंने अपने घर के पेपर तक गिरवी रखने की बात आवेदन पत्र में लिखी, बावजूद उन्हें लोन नहीं दिया गया। छन्नूराम के अनुसार बैंक ने उन्हें केवल इसलिए लोन नहीं दिया क्योंकि वह उस बावरिया समाज से हैं, जिस पर अपराधी होने का ठप्पा लगा है। अब इन्हें आदतन अपराधी मान लिया गया है 1952 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ तो खत्म कर दिया गया, लेकिन इससे पहले ही 1950 के दशक में ‘हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट’ (आदतन अपराधी अधिनियम) बना दिया गया। ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ खत्म होने के बाद धीरे-धीरे इन जनजातियों को ‘हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट’ में शामिल कर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इस कानून को रद्द करने के लिए कई बार भारत सरकार को कह चुके हैं, लेकिन इस दिशा में अभी तक कुछ नहीं किया गया। शिकारी जनजाति बावरिया अब खुद हो रही शिकार अक्सर बड़ी घटनाओं और निर्मम हत्या में बावरिया गिरोह के शामिल होने की आशंका जताई जाती हैं। ऐसी खबरें मीडिया और समाज में जबरदस्त चर्चा बटोरती हैं। आम धारणा है कि बावरिया गिरोह बहुद निर्दयी होता है। इनकी पूरी जनजाति को गिरोह मान लिया जाता है। माना जाता है कि ये लोग अपराध करने से पहले भगवान की पूजा करते हैं। ये लोग महिलाओं और बच्चों के साथ वारदात करते हैं। जनजातियों के उत्थान को आयोग तो बना पर काम नहीं हुआ वर्ष 2005 में तत्कालीन सरकार ने ‘विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों’ के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया था। आयोग के अध्यक्ष बालकृष्ण रेनके ने 2008 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। रिपोर्ट में इन जनजातियों के इतिहास से लेकर इनकी वर्तमान चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों का जिक्र किया गया था। लगभग 150 पन्नों की इस रिपोर्ट में बावरिया जनजाति के बारे में बताया गया है कि वह कई पीढ़ियों से जंगली जानवरों के शिकार का काम किया करती थी। ‘फॉरेस्ट एक्ट’ और ‘वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट’ जैसे कानूनों ने बावरिया लोगों का जंगल से रिश्ता खत्म कर दिया। ऐसे कानून बनाते समय जंगल पर ही आश्रित जनजातियों के पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की गई। प्रमुख जनजातियां - हबूडा, भांतु, धतुरिया, पारधी, नट, बावरिया, कंजर, सांसी, छारा, मदारी आदि। भारत में जनजातीय स्थिति और विकासात्मक पहल - वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी में आदिवासियों की संख्या 8.61% है जो लगभग 104.28 मिलियन् है और देश के क्षेत्रफल का लगभग 15% भाग पर स्थापित है। - आदिवासी जनसंख्या की 52 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है और कारण क्या है कि 54 प्रतिशत आदिवासियों के पास यातायात एवं दूर संचार के रूप में आर्थिक संपत्तियाँ उपयोग के लिए नहीं हैं। - देश में जनजातियों की कुल आबादी करीब 14 करोड़ है। यहां बसाई गईं थीं बस्तियांः कानपुर में 159 एकड़ में अंग्रेजों ने 1992 में क्रिमिनल ट्राइब सेटलमंट प्लान के तहत सीटीएस कॉलोनी बसाई थी। इसके अलावा मुरादाबाद, गोरखपुर और पालिया आदि शहरों में भी इन जनजातियों को कैद करने के लिए अंग्रेजों द्वारा बस्तियां बसाई गईं थीं। ये कॉलोनियां इन जनजातियों के लिए एक खुली जेल की तरह थीं।

भारत का स्वतंत्रता दिवस कब है? इसका आसान सा जवाब है 15 अगस्त, जो 15 दिन पहले बीत चुका है। अगर हम आपसे कहें कि करोड़ों भारतीयों के लिए आज (31 अगस्त) स्वतंत्रता दिवस है। आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा, लेकिन ये सच है। दरअसल, 1947 को भारत तो …

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अखिलेश यादव की गैर मौजूदगी में मुलायम सिंह सपा कार्यालय में सक्रिय

भाई शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने के बाद समाजवादी पार्टी के सरंक्षक मुलायम सिंह यादव अब पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी में सक्रिय हो गए हैं। कल के बाद आज वह फिर अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी में समाजवादी पार्टी के कार्यालय पहुंचे। अखिलेश यादव आज इटावा में हैं। उनकी गैर हाजिरी में आज मुलायम सिंह यादव विक्रमादित्य मार्ग पर सपा के कार्यालय पहुंचे। कल मुलायम सिंह यादव राज्यसभा के पूर्व सांसद बाबू दर्शन सिंह के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। भाई शिवपाल यादव के समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने और लोकसभा की सभी 80 सीटों पर चुनाव लडऩे के ऐलान के बाद आज मुलायम सिंह यादव यहां समाजवादी पार्टी मुख्यालय पर पहुंचे। मुलायम सिंह ने पार्टी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। उन्होंने आज भी सपा ऑफिस में करीब एक घंटा का वक्त गुजारा। उन्होंने राजनीति पर बात करने से साफ मना कर दिया था, लेकिन उनके दफ्तर पहुंचने के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं। इंटरनेट-सोशल नेटवर्किंग साइट्स का बढ़ रहा एडिक्शन, खतरे समझ लें फिर बच्चों को दें मोबाइल यह भी पढ़ें अखिलेश यादव के पार्टी अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद काफी लंबे समय से मुलायम सिंह यादव यहां समाजवादी पार्टी के दफ्तर नहीं आ रहे थे। समाजवादी कुनबे की रार एक बार फिर सामने आने के मुलायम सिंह का लगातार समाजवादी पार्टी कार्यालय में आने से अटकलों का बाजार तेज है। अभी तक मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव के मोर्चा बनाने पर कोई बयान नहीं दिया है। बीते 48 घंटों में सपा के कई दिग्गज नेता उनसे मिल चुके हैं। इनमें सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी, आजम खान, संजय सेठ और सुनील सिंह साजन समेत कई अन्य दिग्गज नेता भी हैं।

भाई शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने के बाद समाजवादी पार्टी के सरंक्षक मुलायम सिंह यादव अब पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी में सक्रिय हो गए हैं। कल के बाद आज वह फिर अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी में समाजवादी पार्टी के कार्यालय पहुंचे। अखिलेश यादव आज इटावा …

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कामाख्या देवी का मंदिर, जहां प्रसाद में मिलता है रक्त से भीगा हुआ कपड़ा

असम के गुवाहाटी शहर के पास देवी सती का ये मंदिर 52 शक्ति पीठों में से एक है। कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत पर स्थित है। मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर किसी को जाने की इज़ाजत नहीं, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं। मंदिर का इतिहास पुरानी कथाओं के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ किया। जिसमें देवी सती के पति भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। यह बात सती को बुरी लग गई और अपने पति का अपमान सह नहीं सकीं। इसके चलते नाराज होकर अग्‍निकुंड में कूदकर उन्‍होंने आत्‍मदाह कर लिया। जिसके बाद शिव जी ने सती का शव उठा कर भयंकर तांडव किया, जिससे चारों ओर हाहाकार मच गया। इसे शांत कराने के लिए भगवान विष्‍णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के कई सारे टुकड़े कर दिए। देवी के अंगों के ये टुकड़े अलग-अलग जगहों पर जा गिरे। जहां-जहां ये गिरे वो जगह शक्‍तिपीठ कहलाए। कामाख्‍या मंदिर में देवी सती की योनि और गर्भ गिरा थे, ऐसा कहा जाता है कि जून के महीने में इससे रक्त का प्रवाह होता है। इस दौरान यहां ब्रह्मपुत्र नदी पूरी लाल हो जाती है। इस दौरान अम्बुवाची मेला चलता है। मंदिर में देवी की अनुमानित योनि के पास पंडित जी नया साफ-स्वच्छ कपड़ा रखते हैं। जो मासिक धर्म के दौरान ‘खून’ से भीग जाता है। फिर यह कपड़ा भक्तों को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। मां के रज से भीगा कपड़ा प्रसाद में मिलना किस्मत वालों को नसीब होता है। ट्रैवलिंग के दौरान प्लास्टिक से फैलने वाली गंदगी को ऐसे कर सकते हैं कम यह भी पढ़ें क्या है अंबुवाची पर्व कामाख्या देवी का मंदिर, जहां प्रसाद में मिलता है रक्त से भीगा हुआ कपड़ा यह भी पढ़ें अंबुवाची पर्व का सीधा संबंध मां कामाख्या के प्रजनन धर्म से है। कहा जाता है कि इस पर्व के दौरान मां रजस्वला होती हैं। जिसमें मंदिर के पट तीन दिनों के लिए बंद रहते हैं। चौथे दिन कपाट खुलने पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। मां के रज से भीग कपड़ा बहुत ही पवित्र और शक्ति का स्वरूप माना जाता है। एडवेंचर के साथ बर्फबारी का मजा लेना हो तो साच पास है बहुत ही खूबसूरत जगह यह भी पढ़ें कैसे पहुंचे हवाई मार्ग- गुवाहाटी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, कामाख्या मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है जहां से मंदिर की दूरी 20 किमी है। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई जैसे सभी बड़े शहरों से यहां के लिए फ्लाइट्स अवेलेबल हैं। नेपाल जाकर इन 10 डिशेज़ को बिल्कुल भी न करें मिस यह भी पढ़ें रेल मार्ग- वैसे तो नार्थ इस्ट इंडिया के लिए हर एक शहर से ट्रेनें चलती हैं जिससे आप यहां तक पहुंच सकते हैं। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर उतरकर वहां से कामाख्या के लिए ट्रेन ले सकते हैं या फिर स्टेशन से ही ऑटो या टैक्सी लेकर डायरेक्ट मंदिर पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग- गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से कामाख्या मंदिर की दूरी 8 किमी है। स्टेशन से बाहर निकलकर आपको ऑटो-रिक्शा, टैक्सी और बसें मिल जाएंगी

असम के गुवाहाटी शहर के पास देवी सती का ये मंदिर 52 शक्ति पीठों में से एक है। कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत पर स्थित है। मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है पहला …

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एक्साइटिंग और खतरनाक दोनों तरह के एक्सपीरियंस के लिए यहां का रोड ट्रिप करें प्लान

साल 2013 में आई रोहित शेट्टी की मूवी 'चेन्नई एक्सप्रेस' तो आपको याद ही होगी जिसमें राहुल(शाहरूख खान) अपने दादा जी अस्थियों को रामेश्वरम में बहाता है। ऊपर नीला आकाश नीचे नीले समुद्र का ये नजारा सिर्फ मूवी में ही नहीं असल में ही इतना ही खूबसूरत है। और अगर कहीं आप यहां रोड ट्रिप का प्लान कर रहे हैं तो यकीन मानिए इससे बेहतरीन नजारा आपने पहले शायद कभी नहीं देखा होगा। पामबन आइलैंड तक पहुंचने के लिए आपको पामबन ब्रिज से गुजरना पड़ता है। मुंबई ब्रांदा कुर्ला पुल से पहले पामबन ब्रिज इंडिया का सबसे लंबा सी ब्रिज हुआ करता था। तमिलनाडु में स्थित यह इंडिया का ऐसा पुल है जो समुद्र के ऊपर बना हुआ है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां से गुजरना कितना एक्साइटिंग और अलग एक्सपीरियंस होता होगा। यह नेचर और तकनीक का बेजोड़ मेल है। जो उच्च तीव्रता वाले भूंकप से भी नहीं हिल सकता। पामबन ब्रिज का रोड ट्रिप –– ADVERTISEMENT –– तमिलनाडु का यह पुल रामेश्वरम से पामबन द्वीप को जोड़ता है। ऐसे में अगर आप रामेश्‍वरम जाना चाहते हैं तो अपने सफर को रोमांचक बनाने के लिए पामबन पुल से होकर जा सकते हैं। समुद्र की लहरों के बीच सफर के बारे में सोचकर ही एक्साइटमेंट होने लगती है। पुल पर रुककर आप इसके खूबसूरत नजारों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। रोड ट्रिप और भी ज्यादा एक्साइटिंग होती है अगर आपके साथ कंपनी अच्छी हो लेकिन यहां अकेले आकर भी आप बोर या अकेला फील नहीं करेंगे। ट्रैवलिंग के दौरान प्लास्टिक से फैलने वाली गंदगी को ऐसे कर सकते हैं कम यह भी पढ़ें पामबन पुल का ब्रैकग्राउंड कामाख्या देवी का मंदिर, जहां प्रसाद में मिलता है रक्त से भीगा हुआ कपड़ा यह भी पढ़ें पामबन पुल को ब्रिटिश रेलवे द्वारा 1885 में शुरू किया गया था। ब्रिटिश इंजीनियरों की टीम के निर्देशन में गुजरात के कच्छ से आए कारीगरों की मदद से इसे खड़ा किया गया था और 1914 में ये बनकर पूरा हुआ था। फरवरी 2016 में इसने अफना 102 साल पूरा किया। इतना पुराना होने के बावजूद भी ये आज ज्‍यों का त्‍यों बना हुआ है। एडवेंचर के साथ बर्फबारी का मजा लेना हो तो साच पास है बहुत ही खूबसूरत जगह यह भी पढ़ें पामबन पुल की बनावट यह पुल बीच में खुलता भी है। हालांकि कंक्रीट के 145 खंभों पर टिके इस पुल को समुद्री लहरों और तूफानों से ख़तरा बना रहता है। पहले यह देश का सबसे बड़ा समुद्र पुल हुआ करता था जिसकी लम्‍बाई 2.057 किमी. है।

साल 2013 में आई रोहित शेट्टी की मूवी ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ तो आपको याद ही होगी जिसमें राहुल(शाहरूख खान) अपने दादा जी अस्थियों को रामेश्वरम में बहाता है। ऊपर नीला आकाश नीचे नीले समुद्र का ये नजारा सिर्फ मूवी में ही नहीं असल में ही इतना ही खूबसूरत है। और अगर …

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रेस्टोरेंट में खाना खाने पहुँचा शख्स, लौटा तो ऐसा पाया खुद को

कई बार हमे ख़ुशी के मौके पर बाहर खाना खाने का प्लान बनाते हैं और कई बार मूड भी हो जाता है कि हम बाहर खा लेते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि कोई चीज़ें हमें सूट नहीं करती और हमें उसके बारे में बाद में पता चलता है. ऐसा ही एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जायेंगे. आइये आपको भी बता देते हैं. Video: बुजुर्ग दम्पति ने ऐसा काम कर उड़ाए सबके होश दरअसल, ये मामला दक्षिण कोरिया का है जहां पर एक शख्स को बाहर खाना महंगा पड़ गया. 71 वर्षीय ये शख्स जब एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गया लेकिन जब घर आया तो कुछ घंटों बाद उसकी हालत खराब थी जिसे देखकर वो भी हैरान था. घर लौटने के 12 घंटे बाद उसके हाथ की चमड़ी जैसे सड़ने लगी और देखते ही देखते उसके हाथ पर फोड़े पड़ गए जिससे उसे असहनीय दर्द होने लगा. इस फोड़े से उसकी चमड़ी भी सड़ने लगी. इसी को देखते हुए उसने डॉक्टर को दिखाया जो पता चला कि मांस खाने वाले बैक्टेरिया विब्रियो की वजह से ऐसा हुआ है, डॉक्टर ने उसके हाथ से पस निकाला लेकिन डॉक्टर ने बताया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. Video: यहाँ तभी जाना जब जीवन बीमा करवा लो डॉक्टर ने बताया वो शख्स मधुमेह से पीड़ित था और उसे किडनी की बीमारी भी थी जिससे वो डायलिसिस पर था. डॉक्टरों ने उसे इंट्रावेनस एंटीबायोटिक्स दिया. आपको बता दें, ऐसी हालत में मधुमेह वाले लोगों को और भी तकलीफ होने लगती है और उनकी ये बीमारी ठीक होने में काफी समय लग जाता है. लेकिन डॉक्टर को मजबूरन उसका हाथ काटना पड़ा जिससे उसके बाद उसकी हालत में सुधार देखा गया.

कई बार हमे ख़ुशी के मौके पर बाहर खाना खाने का प्लान बनाते हैं और कई बार मूड भी हो जाता है कि हम बाहर खा लेते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि कोई चीज़ें हमें सूट नहीं करती और हमें उसके बारे में बाद में पता …

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आखिर 362 किलो नींबू का क्या करना चाहता था ये 69 साल का अनोखा चोर

आपको नींबू का अचार पसंद है तो आप एक बाद में कितना अचार बनायेंगे आैर खायेंगे। एक किलो का, दो किला या हद से हद दस किलो का, पर आप सौ किलो नींबू का अचार तो नहीं खा सकते एेसे में सोचिए कोर्इ इंसान 362 किलो नींबू चुरा कर क्यों ले जायेगा आैर उनका करेगा क्या। आखिर अगर वो नियमित व्यापारी नहीं है तो कितना नींबू बेच लेगा। एेसे में समाचार एजेंसियों में एक खबर आर्इ है कि पिछले दिनों अमेरिका में एक शख्स 362 किलोग्राम के नींबू चुराकर भाग रहा था। इस नींबू चोर की उम्र भी हैरान करने वाली है ये एक 69 साल का बुजुर्ग है। इस शख्स को पुलिस ने कार सहित पकड़ लिया। कार में उसके चुराए हुए सारे नींबू रखे थे। हैरानी की बात ये है कि चुराए हुए नींबू ताजा थे। नहीं पता क्यों चुराए नींबू खबरों के मुताबिक बीते सप्ताह शुक्रवार सुबह स्थानीय ट्रैफिक पुलिस ने फियर्रोस नाम के एक शख्स को एक रेड लाइट पर रोका। जब इसकी गाड़ी की तलाशी ली गर्इ तो उसमें से चुराए हुए नींबू का ढेर मिला। पुलिस का कहना है कि फिलहाल इस शख्स से इस बात की कोर्इ जानकारी नहीं मिली है कि उसने ये नींबू कहां से आैर क्यों चुराए। साथ ही उससे इस बात का भी कोर्इ स्पष्टीकरण नहीं मिल सका है कि आरोपी उसका क्या करना चाहता था। ये घटना पता चलते ही लोगों ने इसे सोशल मीडिया पर शेयर करना शुरू कर दिया आैर इसके बाद काफी सारे मीम्स आैर जोक्स भी सामने आ रहे हैं। मेहमानों ने कैश गिफ्ट देने से किया इंकार तो दुल्हन ने तोड़ दी बचपन के प्यार से शादी यह भी पढ़ें आैर भी मिले हैं एेसे मामले वैसे ये किस्सा अपने आप में पहला आैर अकेला नहीं है। पहले भी इस तरह की चोरियों की बात सामने आर्इ है। इस इलाके के खेतों से लगातार फल-सब्जियों की चोरी की घटनायें दर्ज की गर्इ हैं। जिसके चलते पुलिस काफी सतर्क हो गर्इ है आैर इसी क्रम में नींबू चोर तक वे पहुंच सके। फिलहाल चोरी के आरोप में इस शख्स को इंडियो जेल भेज दिया गया है। इसी तरह स्पेन में भी इसी साल पुलिस ने एक कार से चोरी के 4000 किलो संतरे बरामद किए थे। पकड़े जाने के बाद इस मामले में कार चालक का कहना था कि वह बहुत दूर से आ रहा है और उसने संतरे कई जगहों से खरीदकर इकट्ठा किए हैं।

आपको नींबू का अचार पसंद है तो आप एक बाद में कितना अचार बनायेंगे आैर खायेंगे। एक किलो का, दो किला या हद से हद दस किलो का, पर आप सौ किलो नींबू का अचार तो नहीं खा सकते एेसे में सोचिए कोर्इ इंसान 362 किलो नींबू चुरा कर क्यों …

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Big News: धारा 35ए की सुनवाई टली, अब जनवरी में होगी अगली सुनवाई!

नई दिल्ली: कश्मीर में लागू धारा 35ए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई एक बार फिर टल गई है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 19 जनवरी 2019 में होगी। केंद्र ने घाटी में होने वाले पंचायत चुनाव और सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देते हुए सुनवाई टालने की …

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चीन से लगती उत्तर कोरिया की सीमा पर अब भी मौजूद है वो रहस्यमयी लाल इमारत

चीन से लगती उत्तर कोरिया की सीमा पर अब भी मौजूद है वो रहस्यमयी लाल इमारत

अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के प्रमुख किम जोंग उन के बीच सिंगापुर में हुई वार्ता को लगभग तीन माह हो चुके हैं, लेकिन चीन से लगती उत्तर कोरिया की सीमा पर लाल इमारत का रहस्‍य अब भी जस का तस है। यह रहस्‍यमयी लाल इमारत करीब पांच …

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ट्रंप की धमकी, शर्तें नहीं मानी तो WTO से बाहर हो जाएगा US

ट्रंप की धमकी, शर्तें नहीं मानी तो WTO से बाहर हो जाएगा US

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक इंटरव्यू के दौरान धमकी देते हुए कहा है कि अमेरिका वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) से बाहर निकल सकता है. ट्रंप के इस बयान के बाद दुनियाभर से प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं. ब्लूमबर्ग न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि अगर WTO हमारी शर्तों पर खरा …

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इमरान ख़ान ने पाकिस्तान की जनता की आंखों में धूल झोंकी!

इमरान ख़ान ने पाकिस्तान की जनता की आंखों में धूल झोंकी!

क्या आपने किसी ऐसे प्रधानमंत्री का नाम सुना है, जो हर रोज़ अपने घर से प्रधानमंत्री कार्यालय के बीच की 15 किलोमीटर की दूरी, सड़क पर गाड़ी से तय करने के बजाए, Helicopter से तय करे ? और इसके लिए वो हर रोज़ क़रीब 4 लाख 90 हज़ार रुपये से ज़्यादा …

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