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कोर्ट ने दी लालू को बड़ी राहत

देश के पूर्व रेल मंत्री, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद हाल ही में चारा घोटाला मामले में जेल और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने को लेकर मुश्किल में है. लेकिन हाल ही में झारखण्ड हाईकोर्ट में दायर एक याचिका के अनुसार लालू प्रसाद यादव को बड़ी राहत मिलती हुई दिखाई दे रही है. इससे पहले अभिषेक मनु सिंघवी और चितरंजन सिन्हा जो की लालू प्रसाद यादव के पक्ष को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए गए थे. इन वकीलों ने अपनी दलीलों में लालू प्रसाद यादव की स्वास्थ्य रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट दिखाते हुए तीन महीने की जमानत मांगी. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने इस जमानत याचिका को ख़ारिज कर दिया और 6 सप्ताह की बेल दे दी. कोर्ट ने 10 अगस्त को फिर से लालू प्रसाद यादव की मेडिकल रिपोर्ट पेश करने को लेकर आदेश दिया है. बता दें, इससे पहले सीबीआई के वकील राजीव सिन्हा ने अपना पक्ष रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट में कहा कि लालू प्रसाद यादव का इलाज रिम्स में भी हो सकता है इसलिए उनकी जमानत की अवधि न बढ़ाई जाए, लेकिन कोर्ट ने सिन्हा की इस दलील को भी खारिज कर दिया. यह पहला मौका नहीं है जब लालू प्रसाद यादव की जमानत की अवधि बढ़ाई गई है. इससे पहले भी उनकी जमानत की अवधि बढ़ाई गई थी.

देश के पूर्व रेल मंत्री, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद हाल ही में चारा घोटाला मामले में जेल और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने को लेकर मुश्किल में है. लेकिन हाल ही में झारखण्ड हाईकोर्ट में दायर एक याचिका के अनुसार लालू प्रसाद यादव को …

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राहुल गांधी को जूते मारो-संबित पात्रा

सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो बुधवार को सामने आया और इस पर तुरंत सियासी घमासान भी जारी है. मुद्दे पर बात करते हुए बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा सभी मर्यादाये भूल गए और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को जूते मारने की बात कर बैठे. सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर बहस के दौरान कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी ने रक्षा बजट कम करने को लेकर कहा कि बीजेपी वोट के लिए सर्जिकल स्ट्राइक का ढिंढोरा पीट रही है, जबकि कांग्रेस के शासनकाल में भी सर्जिकल स्ट्राइक हुई थीं, लेकिन सेना के नाम पर हमने राजनीति नहीं की. इसके जवाब में बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि अगर सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत न दो, तो कांग्रेस सवाल उठाती है और जब सबूत दिया जाता है, तो कहती है कि राजनीतिक फायदे के लिए वीडियो जारी किया जा रहा है. इससे भड़के बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने लाइव शो के दौरान ही कांग्रेस पार्टी हाय...हाय के नारे लगाने लगे और फिर कहा कि राहुल गांधी को जूते मारो. इसका राजीव त्यागी ने कड़ा विरोध किया. इस चर्चा में सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) केके सिन्हा और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) बिशंभर दयाल शामिल रहे. गौरतलब है कि सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी होने के बाद ही इस पर राजनीती शुरू हो गई है.

सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो बुधवार को सामने आया और इस पर तुरंत सियासी घमासान भी जारी है. मुद्दे पर बात करते हुए बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा सभी मर्यादाये भूल गए और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को जूते मारने की बात कर बैठे. सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर बहस के दौरान …

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जरुरी नहीं कि पूरा विपक्ष एक साथ चुनाव लड़े

कर्नाटक में हाल ही में सरकार कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज होने वाली जेडीएस के प्रमुख देवगौड़ा ने विपक्ष के एक साथ चुनाव लड़ने के प्लान के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि जरुरी नहीं कि सारे विपक्षी दल एक साथ मिलकर ही चुनाव लड़े. वहीं सिद्धारमैया के द्वारा सरकार चलने को लेकर दिए गए बयान को लेकर भी उन्होंने कहा कि यह उनकी अपनी सोच है. देवगौड़ा ने कहा कि "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से राज्यों में अपने कैडरों को साफ ‘‘संकेत ’ है कि वे जल्द ही नवंबर-दिसंबर में लोकसभा चुनावों के लिए तैयार रहें. उन्होंने कहा, ‘ये आवश्यक नहीं है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में शामिल होने वाली पार्टियां सभी राज्यों में मिलकर लड़ेंगी." वहीं हाल ही में कर्नाटक में कांग्रेस के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में एक बयान देते हुए कहा था कि "इस जेडीएस और कांग्रेस की सरकार का 2019 के बाद चलना मुश्किल है." सिद्धारमैया के द्वारा दिए गए इस बयान पर ज्यादा कुछ न बोलते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि "यह सिद्धारमैया की अपनी खुद की सोच है, हमारा इससे कोई लेना देना नहीं है."

कर्नाटक में हाल ही में सरकार कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज होने वाली जेडीएस के प्रमुख देवगौड़ा ने विपक्ष के एक साथ चुनाव लड़ने के प्लान के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि जरुरी नहीं कि सारे विपक्षी दल एक साथ मिलकर ही चुनाव लड़े. वहीं …

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2019 में कांग्रेस के साथ रहेंगे-देवगौड़ा

महागठबंधन को लेकर चल रही अटकलों के बीच जनता दल (एस) के प्रमुख एच डी देवगौड़ा ने लोकसभा चुनाव में सभी के साथ मिलकर लड़ने की संभावना पर संशय जताया है. उन्होंने कहा कर्नाटक के मुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह आये सभी दल साथ रहे जरुरी नहीं है. देवगौड़ा ने बीजेपी के खिलाफ तीसरे मोर्चे की भूमिका को भी दोहराया . देवगौड़ा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से राज्यों में अपने कैडरों को साफ ‘‘संकेत ’ है कि वे जल्द ही नवंबर-दिसंबर में लोकसभा चुनावों के लिए तैयार रहें. उन्होंने कहा, ‘ये आवश्यक नहीं है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में शामिल होने वाली पार्टियां सभी राज्यों में मिलकर लड़ेंगी.’ कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा, आप, माकपा और टीडीपी के शीर्ष नेता पिछले महीने बेंगलूरू में कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में शामिल हुए थे. देवगौड़ा ने कहा कि सपा और बसपा आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में चालीस-चालीस सीट साझा करने पर चर्चा कर रही हैं.उन्होंने कहा, ‘कर्नाटक में कांग्रेस के साथ कुछ मुद्दे होने के बावजूद हम उसके साथ मिलकर लड़ेंगे.' सीट बंटवारे पर उन्होंने कहा, ‘मुद्दे पर अब तक कोई चर्चा नहीं हुई है... कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और कुमारस्वामी चर्चा करेंगे और इसे अंतिम रूप देंगे.’

महागठबंधन को लेकर चल रही अटकलों के बीच जनता दल (एस) के प्रमुख एच डी देवगौड़ा ने लोकसभा चुनाव में सभी के साथ मिलकर लड़ने की संभावना पर संशय जताया है. उन्होंने कहा कर्नाटक के मुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह आये सभी दल साथ रहे जरुरी नहीं है. देवगौड़ा ने बीजेपी …

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नेतन्याहू से मुलाकात के बाद यहूदियों को अल्पसंख्यक दर्जा देने की घोषणा

बता दें, मुख्यमंत्री बनने के बाद विजय रुपाणी का यह पहला विदेशी दौरा है, जिसमें वो इजरायल आए है. यहाँ पर विजय रुपाणी आतंरिक सुरक्षा ,जल प्रबंधन और कृषि के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को लेकर बेंजामिन नेतन्याहू से बातचीत करेंगे. इससे पहले जब बेंजामिन नेतन्याहू भारत के दौरे पर थे, तब उन्होंने भी गुजरात का दौरा किया था.

हाल ही में कुछ महीनों पहले हुए चुनाव के बाद गुजरात के नए मुख्यमंत्री बने विजय रुपाणी अभी इजरायल दौरे पर है. विजय रुपाणी का मुख्यमंत्री बनने के बाद यह पहला विदेश दौरा है. इस दौरे पर विजय रुपाणी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात की, साथ ही …

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इतिहास के साथ फिर की मोदी ने बड़ी छेड़छाड़

नरेंद्र मोदी

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपनी एक रैली के दौरान इतिहास से छेड़छाड़ करते हुए एक ऐसा बयान दिया है, जो संभव ही नहीं हो सकता. हाल ही में संत कबीरदास जी 500 वीं पुण्यतिथि यूपी के मगर में पीएम मोदी ने कहा कि “मैं यहाँ …

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सरकारी मुकदमों की शुरू हुई ऑनलाइन निगरानी, जानिए कितने मुकदमे हैं लंबित

देश भर की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमें लंबित हैं और सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है। सरकारी मुकदमों का त्वरित निपटारा, मुकदमों की निगरानी की एकीकृत व्यवस्था और महत्वपूर्ण मुकदमों को खास तवज्जो सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी। लेकिन प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया मिशन को साकार करते हुए इसका हल तलाश लिया गया है। लीगल इन्फारमेशन मैनेजमेंट एंड ब्रीफिंग सिस्टम (एलआइएमबीएस) के जरिये सरकारी मुकदमों की चौबीस घंटे आनलाइन निगरानी हो रही है। सरकारी मुकदमों का ज्यादातर ब्योरा ऑनलाइन डाल दिया गया है। इतना ही नहीं कौन सा मुकदमा किस अदालत में किस स्तर पर लंबित है और फैसले के बाद आगे अपील की जाए या नहीं सब कुछ ऑनलाइन तय होगा। एसएमएस एलर्ट और महत्वपूर्ण मुकदमों पर खास ध्यान दिया जा रहा है। कानून मंत्रालय ने सरकारी मुकदमों के लिए आंतरिक ऑनलाइन निगरानी सिस्टम तैयार किया है जिसमें सभी मंत्रालय और विभाग शामिल हैं। कानून मंत्रालय के विधि सचिव सुरेश चंद्रा ने गुरुवार को पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन के जरिये एलआइएमबीएस की खूबियां और लाभ बताया। उन्होंने बताया कि एलआइएमबीएस सभी मंत्रालयों और सरकारी विभागों में सफलतापूर्वक लागू हो गया है। इसमें मंत्रालय के अधिकारी, नोडल आफीसर, वकील, कानून मंत्रालय के अधिकारी सभी शामिल हैं। इसके जरिये एक ही जगह सभी विभागों और मंत्रालयों के लंबित मुकदमों की जानकारी उपलब्ध है जिससे न सिर्फ मुकदमों का त्वरित निपटारा होगा बल्कि भ्रम की स्थिति और सरकारी खजाने पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ भी घटेगा। पिछले तीन सालों में 62 मंत्रालयों के 7800 यूजर्स ने 2.91 लाख मुकदमों को इस पर अपलोड किया है। इसके जरिये आसानी से मुकदमों की निगरानी हो सकेगी। इसमें एसएमएस एलर्ट की भी व्यवस्था है ताकि संबंधित अधिकारी और मंत्रालय सर्तक हो सकें और तत्काल जरूरी कदम उठा सकें। इसकी एक खासियत यह भी है कि इसमें यूनिक डिजिटल लाकर है जिसमें मुकदमें से संबंधित जरूरी दस्तावेज और सूचना (जवाब, प्रतिउत्तर, हलफनामा और फैसले) आदि अपलोड किये जा सकते हैं। इससे मुकदमें की सारी सूचना एक जगह एकत्रित रहेगी और उसे एकत्र करने में बेवजह का श्रम और समय नहीं लगेगा। फैसले के बाद अपील और विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने की भी समयबद्ध निगरानी की जा सकेगी। नोडल आफिसर और मंत्रालय महत्वपूर्ण मुकदमों को चिह्नित कर सकते हैं और महत्वपूर्ण मुकदमों को प्राथमिकता दी जाएगी। इस व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि महत्वपूर्ण मुकदमे के बारे में अनभिज्ञता के कारण देरी और लापरवाही की गुंजाइश नहीं रहेगी। एक ही मुकदमे की अलग-अलग विभागों में चल रही मुकदमेबाजी और अंतरमंत्रालय मुकदमेबाजी पर भी रोक लगेगी

देश भर की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमें लंबित हैं और सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है। सरकारी मुकदमों का त्वरित निपटारा, मुकदमों की निगरानी की एकीकृत व्यवस्था और महत्वपूर्ण मुकदमों को खास तवज्जो सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी। लेकिन प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया मिशन को साकार करते …

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गरीबों में राशन दुकानों से सस्ती दर पर दाल बांटने की तैयारी

गरीबों में राशन दुकानों से सस्ती दर पर दाल बांटने की तैयारी की जा रही है। इस बारे में उपभोक्ता व खाद्य मंत्रालय कैबिनेट नोट तैयार कर रहा है। सरकारी स्टॉक में फिलहाल 55 लाख टन दालें पड़ी हुई हैं, जिन्हें बाजार के हिसाब से अधिक मूल्य पर खरीदा गया है। अगर उसे खुले बाजार में बेचना पड़ा तो भारी घाटा उठाना पड़ेगा। घाटे के इस सौदे से बचने के लिए देश के 201 पिछड़े जिलों में सस्ती दर पर दालों को बेचने पर विचार किया जा रहा है। सरकारी स्टॉक की दालों को खपाने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में शुक्रवार को सचिवों की समिति की बैठक बुलाई गई है। बैठक में बफर स्टॉक की पुरानी पड़ी दालों के साथ मूल्य समर्थन योजना के तहत खरीदी दालों को पिछड़े जिलों में बांटे जाने पर कोई अहम फैसला लिया जा सकता है। महंगी दाल खरीद कर बाजार में निजी व्यापारियों को सस्ते में बेचना सरकार को भारी पड़ सकता है। दलहन फसलों की सरकारी एजेंसी नैफेड ने चालू सीजन में 43 लाख टन से अधिक की खरीद कर ली है। कई राज्यों में अभी भी खरीद चालू है। इनमें चना, अरहर, मसूर, उड़द और मूंग है। सारी दालें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदी गई हैं। जबकि खाद्य मंत्रालय के बफर स्टॉक में 12 लाख टन पुरानी दाल पड़ी हुई है। इसमें काफी दालें बाजार भाव पर खरीदी गई हैं। कुछ दालें आयातित हैं। देश के चिन्हित 201 पिछड़े जिले के उपभोक्ताओं को इसका लाभ दिया जाएगा। केंद्रीय उपभोक्ता मामले व खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने बताया कि इस बारे में विस्तृत विचार-विमर्श हो चुका है। इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी जल्द ही ले ली जाएगी। दलहन कारोबार के एक जानकार व्यापारी ने बताया कि अरहर को छोड़कर बाकी सभी दलहन फसलें साबुत भी खाई जाती हैं, इसलिए राशन प्रणाली के तहत उपभोक्ताओं को दालें बांटना बहुत आसान है। दालों में सबसे अधिक सरकारी खरीद चने की हुई है। यह 25 लाख टन से भी अधिक है। 20 लाख टन अरहर, चार लाख टन उड़द, तीन लाख टन मूंग और इतनी ही मात्रा में मसूर खरीदी गई है। मानसून के सक्रिय होने के साथ ही सरकारी खरीद ठप होने लगी है।

गरीबों में राशन दुकानों से सस्ती दर पर दाल बांटने की तैयारी की जा रही है। इस बारे में उपभोक्ता व खाद्य मंत्रालय कैबिनेट नोट तैयार कर रहा है। सरकारी स्टॉक में फिलहाल 55 लाख टन दालें पड़ी हुई हैं, जिन्हें बाजार के हिसाब से अधिक मूल्य पर खरीदा गया …

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नोटबंदी का साइड इफेक्ट? अचानक 50% बढ़ा स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी की ओर से विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने के लिए कई तरह के दावे किए जाते थे. सरकार बनने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में कई बार कहा कि ''पहले चर्चा होती थी, कितना गया.. लेकिन अब चर्चा होती है कितना आया.'' काले धन के खिलाफ अभियान चलाने की सरकार की कोशिशों को अब झटका लगा है. स्विस बैंक ने जो ताजा आंकड़े जारी किए हैं उसमें दिख रहा है कि पिछले एक साल में भारतीयों की जमा पूंजी में करीब 50% की बढ़ोतरी हुई है. पिछले तीन साल से ये आंकड़े लगातार घट रहे थे, लेकिन अचानक 2017 में इतनी लंबी छलांग मोदी सरकार के लिए चिंता बढ़ा सकती है. विपक्ष के अलावा कई साथियों ने भी इसको लेकर सरकार को घेरा है. नोटबंदी के बाद पहुंचा सबसे ज्यादा पैसा? दरअसल, ये आंकड़ा इसलिए भी चौंकाता है कि क्योंकि मोदी सरकार आने के बाद लगातार तीन साल कालेधन में कमी आई थी. लेकिन 2016 में नोटबंदी का फैसले के बाद इसमें अचानक बढ़ोतरी हुई. स्विस बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह 2017 के हैं और नोटबंदी 8 नवंबर, 2016 को लागू हुई थी. यानी साफ है कि नवंबर 2016 और 2017 के बीच सबसे ज्यादा पैसा स्विस बैंक पहुंचा. प्रधानमंत्री ने जब नोटबंदी का ऐलान किया था तब इसे कालेधन के खिलाफ सबसे बड़ी 'सर्जिकल स्ट्राइक' बताया गया था. कैसे बढ़ता गया इतना पैसा? # स्विस बैंक खातों में जमा भारतीय धन 2016 में 45 प्रतिशत घटकर 67.6 करोड़ फ्रैंक (लगभग 4500 करोड़ रुपए) रह गया था. बैंक की तरफ से 1987 में आंकड़े देने की शुरुआत के बाद से ये सबसे कम का आंकड़ा था. # लेकिन 2017 में जो आंकड़े जारी किए गए उसमें अब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. स्विस बैंक खातों में सीधे तौर पर रखा गया धन 2017 में लगभग 6891 करोड़ रुपए (99.9 करोड़ फ्रैंक) हो गया. इसके अलावा प्रतिनिधियों के जरिए रखा गया पैसा इस दौरान 112 करोड़ रुपए (1.62 करोड़ फ्रैंक) रहा. पहले क्या थी स्थिति? ऐसा नहीं है कि स्विस बैंक में पहली बार भारतीयों की जमा पूंजी में बढ़ोतरी आई हो. इससे पहले भी कई बार आंकड़ें भारतीयों को चौंकाने वाले ही रहे हैं. स्विस बैंक खातों में रखे भारतीयों के धन में 2011 में 12%, 2013 में 43%, 2017 में 50.2% की वृद्धि हुई थी. जबकि इससे 2004 में यह धन 56% बढ़ा था. 2007 तक भारत स्विस बैंक की जमा पूंजी की लिस्ट में टॉप 50 देशों में शामिल था, लेकिन अब वह ब्रिक्स देशों से भी नीचे चला गया है.2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी की ओर से विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने के लिए कई तरह के दावे किए जाते थे. सरकार बनने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में कई बार कहा कि ''पहले चर्चा होती थी, कितना गया.. लेकिन अब चर्चा होती है कितना आया.'' काले धन के खिलाफ अभियान चलाने की सरकार की कोशिशों को अब झटका लगा है. स्विस बैंक ने जो ताजा आंकड़े जारी किए हैं उसमें दिख रहा है कि पिछले एक साल में भारतीयों की जमा पूंजी में करीब 50% की बढ़ोतरी हुई है. पिछले तीन साल से ये आंकड़े लगातार घट रहे थे, लेकिन अचानक 2017 में इतनी लंबी छलांग मोदी सरकार के लिए चिंता बढ़ा सकती है. विपक्ष के अलावा कई साथियों ने भी इसको लेकर सरकार को घेरा है. नोटबंदी के बाद पहुंचा सबसे ज्यादा पैसा? दरअसल, ये आंकड़ा इसलिए भी चौंकाता है कि क्योंकि मोदी सरकार आने के बाद लगातार तीन साल कालेधन में कमी आई थी. लेकिन 2016 में नोटबंदी का फैसले के बाद इसमें अचानक बढ़ोतरी हुई. स्विस बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह 2017 के हैं और नोटबंदी 8 नवंबर, 2016 को लागू हुई थी. यानी साफ है कि नवंबर 2016 और 2017 के बीच सबसे ज्यादा पैसा स्विस बैंक पहुंचा. प्रधानमंत्री ने जब नोटबंदी का ऐलान किया था तब इसे कालेधन के खिलाफ सबसे बड़ी 'सर्जिकल स्ट्राइक' बताया गया था. कैसे बढ़ता गया इतना पैसा? # स्विस बैंक खातों में जमा भारतीय धन 2016 में 45 प्रतिशत घटकर 67.6 करोड़ फ्रैंक (लगभग 4500 करोड़ रुपए) रह गया था. बैंक की तरफ से 1987 में आंकड़े देने की शुरुआत के बाद से ये सबसे कम का आंकड़ा था. # लेकिन 2017 में जो आंकड़े जारी किए गए उसमें अब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. स्विस बैंक खातों में सीधे तौर पर रखा गया धन 2017 में लगभग 6891 करोड़ रुपए (99.9 करोड़ फ्रैंक) हो गया. इसके अलावा प्रतिनिधियों के जरिए रखा गया पैसा इस दौरान 112 करोड़ रुपए (1.62 करोड़ फ्रैंक) रहा. पहले क्या थी स्थिति? ऐसा नहीं है कि स्विस बैंक में पहली बार भारतीयों की जमा पूंजी में बढ़ोतरी आई हो. इससे पहले भी कई बार आंकड़ें भारतीयों को चौंकाने वाले ही रहे हैं. स्विस बैंक खातों में रखे भारतीयों के धन में 2011 में 12%, 2013 में 43%, 2017 में 50.2% की वृद्धि हुई थी. जबकि इससे 2004 में यह धन 56% बढ़ा था. 2007 तक भारत स्विस बैंक की जमा पूंजी की लिस्ट में टॉप 50 देशों में शामिल था, लेकिन अब वह ब्रिक्स देशों से भी नीचे चला गया है.

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी की ओर से विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने के लिए कई तरह के दावे किए जाते थे. सरकार बनने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में कई बार कहा कि ”पहले चर्चा होती थी, …

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लेटलतीफी से बचने के लिए रेलवे की चालाकी! बढ़ा दिया 185 ट्रेनों का अराइवल टाइम

लेटलतीफी से बचने के लिए रेलवे की चालाकी! बढ़ा दिया 185 ट्रेनों का अराइवल टाइम

पिछले कई महीनों से देश के करोड़ों यात्री रेलवे की लेटलतीफी से काफी परेशान हैं. हाल यह है कि कई ट्रेन ने 24 से 28 घंटे तक लेट होने का रिकॉर्ड ही बना दिया. लेकिन इनको सही समय पर चलाने में नाकाम रेलवे चालाकियों पर उतर आया है. ट्रेनों को …

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