धर्म

27 जुलाई 2018 का राशिफल: जानिए आज चंद्रग्रहण के दिन किन राशियों के रहेगा शुभ

27 जुलाई 2018 का राशिफल: जानिए आज चंद्रग्रहण के दिन किन राशियों के रहेगा शुभ

मेष: दिन मिश्रित फलदायी रहेगा। परिजनों के साथ बैठकर महत्वपूर्ण चर्चा करेंगे। ऑफिस या व्यवसाय के क्षेत्र में अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होगी। सरकारी लाभ मिलने की संभावना है। कार्यभार बढ़ सकता है। वृषभ: नए कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी और आप उन्हें प्रारंभ कर पाएंगे। व्यापार …

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जब राजा जगतसिंह की आराधना से प्रसन्न होकर सूर्य ने जनता को दिए दर्शन

राव जगतसिंह जोधपुर के पहले महाराजा जसवंतसिंह के वंशज थे और रिश्ते में भक्तिमयी मीराबाई के भतीजे लगते थे। वह बलूंदा रियासत के शासक भी थे साथ ही परम वैष्णव भक्त भी थे। वैष्णव रंग में रंगे होने की वजह से वह राजसी ठाठबाट छोड़कर सदैव भगवत भक्ति में लीन रहते थे। मेवाड़ में उन्होंने एक मंदिर का निर्माण भी करवाया था। एकबार वर्षाकाल का समय था। चारों और भयानक बारिश हो रही थी। चारों ओर घना अंधेरा छाया हुआ था। उस समय जोधपुर के लोगों ने सूर्य देवता के दर्शन कर व्रत खोलने का संकल्प ले रखा था। उन्हे जब सूर्य देवता के उदय की कोई उम्मीद नजर नहीं आई तो वह चिंतित हो गए। आखिर कुछ लोग जोधपुर नरेश के पास पहुंचे और उन्होंने महाराज से अनुरोध किया कि ' महाराज आप ही हमारे सूर्य हैं यदि आप हाथी पर सवार होकर नगर में लोगों को दर्शन दे देवें, तो आमजन भोजन ग्रहण कर लेंगे।' महाराज ने कहा कि ' आप लोगों की बात तो सही है, लेकिन व्रत तो मैने भी ले रखा है और मेरे लिए भी सूर्यनारायण के दर्शन करना आवश्यक है। उनके उदित नहीं होने से मैं किसके दर्शन करूं? ' अकस्मात उनको राव जगतसिंह का ख्याल आया और वह उनके पास गए। जगतसिंह उस समय श्रीकृष्ण की पूजा कर रहे थे। पूजा समाप्त होने पर जब जोधपुर नरेश ने उनको अपने आने का प्रयोजन बताया कि उनको सूर्यदेवता के समान सम्मान दिया गया है। भगवान की श्रेणी में अपनी गणना किया जाना जगतसिंह को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और सूर्य देवता से दर्शन देने के लिए विनती करने लगे। भगवान भास्कर ने उनकी विनती सुनी और बादलों को चीरकर प्रगट हो गए। राव जगतसिंह की प्रार्थना का असर देखकर लोग उनकी जय-जकार करने लगे।

राव जगतसिंह जोधपुर के पहले महाराजा जसवंतसिंह के वंशज थे और रिश्ते में भक्तिमयी मीराबाई के भतीजे लगते थे। वह बलूंदा रियासत के शासक भी थे साथ ही परम वैष्णव भक्त भी थे। वैष्णव रंग में रंगे होने की वजह से वह राजसी ठाठबाट छोड़कर सदैव भगवत भक्ति में लीन …

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गुरु पूर्णिमा : वो गुरु जिन्होंने देवताओं को दिया ज्ञान

गुरु पूर्णिमा : वो गुरु जिन्होंने देवताओं को दिया ज्ञान

सदी के सबसे बड़े चंद्रग्रहण के साथ ही गुरु पूर्णिमा का आगमान हो रहा है. शास्त्रों के मुताबिक़ दोपहर से पहले गुरु पूजन का समय शुभ बताया गया है. हजारों सालों से चली आ रही इस परंपरा के साथ इस बार भी गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पादुका पूजन करें. …

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शब्दों में नहीं किया जा सकता गुरु की महिमा का बखान

शब्दों में नहीं किया जा सकता गुरु की महिमा का बखान

आप सभी इस बात से बखूबी वाकिफ होंगे कि इस साल गुरु पूर्णिमा 27 जुलाई को मनाई जाने वाली है. यह त्यौहार उन सभी के लिए है जो अपने गुरु को मानते हैं. गुरु का अर्थ शास्त्रों में बहुत ही सुंदरता से बताया गया है. शास्त्रों में गु का अर्थ …

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भगवान शिव-पार्वती को खुश करेगा ये व्रत

धर्म के अनुसार आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी को हर साल जया-पार्वती का व्रत किया जाता है इससे व्यक्ति की सभी मनोकामना पूरी होती है. ये नाम से ही आप समझ सकते हैं ये व्रत पार्वती और भगवान शिव के लिए किया जाता है. इसके बारे में बता दें कि यह व्रत श्रावण माह शुरू होने से पहले आता है जिसे अपने आप में ही एक चमत्कारी माना जाता है. इस व्रत को मालवा के क्षेत्र में अधिक किया जाता है जिसका काफी महत्व भी है. आइये जानते हैं इसके बारे में और जानकारी. इसलिए किया जाता है जया-पार्वती व्रत जानकारी के लिए आपको बता दें ये जया पार्वती का व्रत श्रावण मास के पहले मनाया जाता है और इस बार ये 25 जुलाई 2018 को मनाया जायेगा. इस व्रत के बारे में भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को बताया था. ये व्रत भी उसी तरह होता है जैसे गणगौर, हरतालिका, मंगला गौरी होते हैं. सुहागिन महिलाएं इस व्रत को अपने सुहाग के लिए करती हैं. माना जाता है कि यह व्रत करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है. ये व्रत कहीं पर 1 दिन का होता है और कहीं पर इस व्रत को 5 दिनों माना जाता है. चातुर्मास में भगवान शिव ऐसे संभालेंगे सृष्टि का भार * इस व्रत में बालू रेत का हाथी बनाकर उन पर 5 प्रकार के फल, फूल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं. * सुबह जल्दी उठाकर स्नानकर माता पार्वती की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें. * भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति या फोटो को स्थापित कर उन्हें कुमकुम, कस्तूरी, अष्टगंध और फूल चढ़ाएं. * अब विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करें और माँ पार्वती से सुख शांति के लिए प्रार्थना करें. * पूजा के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण कर भजन कीर्तन करने से भगवान प्रसन्न करें.

धर्म के अनुसार आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी को हर साल जया-पार्वती का व्रत किया जाता है इससे व्यक्ति की सभी मनोकामना पूरी होती है. ये नाम से ही आप समझ सकते हैं ये व्रत पार्वती और भगवान शिव के लिए किया जाता है. इसके बारे में बता दें कि यह व्रत …

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इसलिए वर्षा ऋतु में ही मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा

इस साल गुरु पूर्णिमा जुलाई महीने की 27 तारीख को है इस दिन हर कोई अपने गुरु के प्रति मान सम्मान व्यक्त करते हैं और अपने गुरु को ख़ास तोहफे देकर उनके प्रति प्यार जताते हैं. दुनिया में सबसे ऊंचा स्थान ज्ञान देने वाले गुरु को ही दिया जाता हैं. हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है. लेकिन कभी आपने ये जानने कि कोशिश की आखिर गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में ही क्यों मनाई जाती है. अगर नहीं तो आज हम आपको बताएँगे कि आखिर ऐसा क्यों हैं. दरअसल वर्षा ऋतू में पूर्णिमा को आदि गुरु वेद व्यास का जन्म हुआ था. उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. भगवान शिव-पार्वती को खुश करेगा ये व्रत इसके अलावा बताया गया है कि इस महीने में परिव्राजक और साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर गुरु से ज्ञान की प्राप्ति करते हैं. ऐसा माना है कि मौसम के हिसाब से वर्षा ऋतु सबसे अनुकूल होती है इसलिए गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है. गुरु पूर्णिमा 2018 : अपनी राशि के अनुसार गुरु को भेंट करें ये चीजें बात करें प्राचीन काल की तो इस दौरान विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे. इसी श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर शिष्य अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते थे. यही वजह है कि गुरु पूर्णिमा को सबसे ख़ास माना जाता हैं.

इस साल गुरु पूर्णिमा जुलाई महीने की 27 तारीख को है इस दिन हर कोई अपने गुरु के प्रति मान सम्मान व्यक्त करते हैं और अपने गुरु को ख़ास तोहफे देकर उनके प्रति प्यार जताते हैं. दुनिया में सबसे ऊंचा स्थान ज्ञान देने वाले गुरु को ही दिया जाता हैं. …

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इसलिए भगवान शिव को पसंद हैं बिल्वपत्र

सावन का महीना जल्द ही शुरू होने वाला है और इस महीने को भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना बताया गया हैं, जिसमें उनकी ख़ास तरीके से पूजा की जाती है. आपने अक्सर देखा होगा कि ज्यादातर भगवान शिव के मंदिर में बिल्वपत्र ही चढ़ाये जाते हैं. लेकिन कभी अपने ये जानने की कोशिश की आखिर ऐसा क्यों होता है. अगर नहीं तो आज हम आपको बताएंगे कि भगवान शिव को बिल्वपत्र चढाने का रहस्य क्या है. शिव पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव से पार्वती ने पूछा कि स्वामी आपको बिल्व पत्र इतने प्रिय क्यों है?. इस दौरान शिव जी ने पार्वती को बड़े ही सहज अंदाज़ में कहा कि बिल्व के पत्ते उनकी जटा के समान हैं, उसका त्रिपत्र यानी 3 पत्ते ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद हैं. इसके अलावा शिव ने बताया कि स्वयं महालक्ष्मी ने शैल पर्वत पर बिल्ववृक्ष रूप में जन्म लिया था. कहा जाता है कि अगर कोई भक्त भगवान शिव के पास बिल्वपत्र चढ़ाता है उसे भगवान शिव सभी पापों से मुक्त करके अपने लोक में स्थान देते हैं, यही नहीं बल्कि उस व्यक्ति को स्वयं लक्ष्मीजी भी नमस्कार करती हैं. वर्षो से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार भगवान शिव की पूजा बिना बिल्वपत्र के पूरी नहीं मानी गई हैं. इसके अलावा भगवान शिव का दूध, दही, आंक के फूलों से अभिषेक किया जाता हैं. इस साल श्रावण महीने की शुरुआत 27 जुलाई से हो रही है और पहला सोमवार 30 जुलाई से शुरू होगा.

सावन का महीना जल्द ही शुरू होने वाला है और इस महीने को भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना बताया गया हैं, जिसमें उनकी ख़ास तरीके से पूजा की जाती है. आपने अक्सर देखा होगा कि ज्यादातर भगवान शिव के मंदिर में बिल्वपत्र ही चढ़ाये जाते हैं. लेकिन कभी अपने …

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मनचाहा फल के लिए इस विधि से करें भगवान शिव की पूजा

श्रावण मास शुरू होने वाला है और ऐसे में हर कोई भगवान शिव की ख़ास तरीके से पूजा के लिए जोरों शोरों से तैयारी में जुटे हुए हैं. हर कोई चाहता है कि उन पर भगवान शिव की असीम कृपा बनी रही लेकिन अनजाने में कई ऐसी गलतियां हो जाती हैं जिससे पूजा करने का पूरा फल नहीं मिल पाता है. श्रावण मास में राशि के अनुसार ऐसे करें भगवान शिव की पूजा बता दें कि सावन का महीना भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना होता हैं अगर इस महीने में आप भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करते हैं तो आपको आपकी इच्छानुसार फल मिलेगा लेकिन उससे पहले आपको इन बातों पर ध्यान देना होगा. भगवान शिव की पूजा बहुत कठिन मानी गई है. अगर आप पूरे विधि विधान के अनुसार शिव की पूजा करते हैं इसके लिए आपको कई सामग्री की आवश्यकता होगी जो इस प्रकार हैं. आखिर क्यों भगवान शिव ने पार्वती को सुनाई थी अमरकथा? दीपक, तेल या घी, फूल, चंदन का पेस्ट, सिंदूर, धूप, कपूर, विशेष व्यंजन, खीर, फल, पान के पत्ते और मेवा, नारियल. इसके अलावा शिव का अभिषेक के लिए इकट्ठा की गई सामग्री में पवित्र राख, ताजा दूध, दही, शहद, गुलाबजल, पंचामृत (शहद के साथ फल मिला हुआ), गन्ना का रस, निविदा नारियल का पानी, चंदन पानी, गंगाजल और अन्य सुगंधित पदार्थ को शामिल जरूर करना चाहिए. पूजा के दौरान शिवलिंग को उत्तर दिशा में रखना शुभ माना गया हैं और गंगा जल से शिव जी का अभिषेक किया जाता है और अंत में भगवान की आरती की जाती है.

श्रावण मास शुरू होने वाला है और ऐसे में हर कोई भगवान शिव की ख़ास तरीके से पूजा के लिए जोरों शोरों से तैयारी में जुटे हुए हैं. हर कोई चाहता है कि उन पर भगवान शिव की असीम कृपा बनी रही लेकिन अनजाने में कई ऐसी गलतियां हो जाती …

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गाय से जुड़े कुछ उपाय करने से दूर हो जाती हैं ये बड़ी मुसीबत

गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र जीव माना गया है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है गाय के शरीर पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है। …

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देवशयनी एकादशी पर ऐसे मिलेगा फल

हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है जिसमें देव चार माह के विश्राम के लिए चले जाते हैं और उन चार महीनों में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता. इस वर्ष 23 जुलाई को यह एकादशी मनाई जाएगी जिसमें भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर-सागर में शयन करते हैं और ये विश्राम उनका कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है. उसके बाद भगवान निद्रा से जागते हैं जिसके बाद सभी मंगल कार्य शुरू हो जाते हैं. इन चार महीने के वास चातुर्मास कहा जाता है. आइये बता देते हैं इस व्रत को करने का क्या फल मिलता है और क्या करना चाहिए इस व्रत पर. देवशयनी एकादशी पर इन चीज़ों का रखें ध्यान * देवशयनी एकादशी को सुबह जल्दी उठे और घर को स्वच्छ करें और उसके बाद आप घर में पवित्र जल छिड़कें. * घर के पूजा मन्दिर में श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें. * भगवान को शुद्ध जल से स्नान करा कर उन्हें वस्त्र से विभूषित करें. चातुर्मास में करें खाने की इन चीज़ों का त्याग * पूजा करके कथा सुनें और आरती के बाद प्रसाद वितरण करें * अंत में सफेद चादर से ढंके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए. इसी तरह भगवान विष्णु की पूजा कर उन्हें क्षीर सागर के लिए प्रस्थान कराएं और चार्तमास के लिए विश्राम करने के लिए छोड़. इस व्रत को करने से आपको सभी प्रकार के पुण्य मिलते हैं और कई पापों से मुक्ति मिलती है.

हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है जिसमें देव चार माह के विश्राम के लिए चले जाते हैं और उन चार महीनों में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता. इस वर्ष 23 जुलाई को यह एकादशी मनाई जाएगी जिसमें भगवान …

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