मूर्ति देखी है न। उसे हिलाने-डुलाने के लिए लोगों की जरूरत पड़ती है। खिसकाने के लिए ताकत लगती है। लेकिन अगर कोई इंसान मूर्ति जैसा हो जाए? सोचिए वह हिल न सके। ठीक से रोजमर्रा के काम न कर सके तो कैसी जिंदगी होगी। ऐसी ही जिंदगी झेल रही हैं …
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