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क़ुरान में पर्दा करने को क्यों दी जाती है अहमियत

क़ुरान में परदे को को खास स्थान दिया गया है. पराई स्त्री और पराये धन की तरफ नज़र जाने को भी इस्लाम में पाप समझा जाता है.अदब को क़ुरान में बेहद जरूरी बताया गया है. मुस्लिम धर्म में किसी स्त्री को बिना सिर पर परदे के नहीं रहना होता है. इस नियम का वर्णन क़ुरान में भी किया गया है. यह नियम मुस्लिम धर्मगुरु हज़रत मुहम्मद साहब जी के द्वारा बनाया गया है. यह नियम स्त्रियों की अस्मिता और लज्जापूर्ण स्वाभाव को व्यक्त करने वाली तहज़ीब का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ऐसा कहा जाता है कि मुस्लिम पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहेब के परिवार में स्त्रियों का रहन-सहन और स्वभाव ऐसा था कि उनके पूरे जीवन में कभी भी किसी ने उनकी परछाई तक नहीं देखीं .उनका यह आचरण, धीमी और आदर से भरपूर आवाज़ के साथ बेहतरीन सलीके के लिए पूरे मक्का में प्रसिद्द था. वहीं से मुस्लिम समाज में परदे को अदब जताने का सलीका मानते हुए अपनाया गया. मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार अरब के रेगिस्तान के एक शहर मक्काह में 570 ईस्वी में इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद का जन्म हुआ माना जाता है.इन्हे इस्लाम के सबसे महान नबी(रसूल) और खुदा के आख़िरी सन्देशवाहक के रूप में जाना जाता है.

क़ुरान में परदे को को खास स्थान दिया गया है. पराई स्त्री और पराये धन की तरफ नज़र जाने को भी इस्लाम में पाप समझा जाता है.अदब को क़ुरान में बेहद जरूरी बताया गया है. मुस्लिम धर्म में किसी स्त्री को बिना सिर पर परदे के नहीं रहना होता है. …

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