परशुराम जयंती का जानिए शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में पौराणिक कथाएं बहुत सारी हैं और परशुराम जयंती की बात करें तो हिंदू धर्म में परशुराम जयंती का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है पर्व माना जाता है। बता दें कि इस बार 14 मई को परशुराम जयंती मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के मुताबिक वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन परशुराम जयंती मनाने की प्रक्रिया चली आ रही है। यह भगवान परशुराम का जन्मोत्सव का पावन दिन है हिंदू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान परशुराम सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के छठे अवतार कहे जाते हैं और इस दिन उनकी विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है।

पूजा का मुहूर्त

परशुराम जयंती मनाने का शुभ मुहूर्त तृतीय तिथि से शुरू होगा जो कि 14 मई सुबह 5:38 पर मनाई जाएगी और तृतीय तिथि 15 मई सुबह 7:59 तक मनाई जाएगी।

भगवान परशुराम की पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में हर पर्व का अपना अलग महत्व होता है और इसी महत्व में परशुराम जयंती मनाई जाती है हमारे भारत में।

पुराणों में परशुराम के बारे में उल्लेख किया गया है। भगवान परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्म तिथि और वह ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। ऋषि जमदग्नि भगवान परशुराम के पिता सप्तर्षियों में से एक थे और कहा जाता है कि भगवान परशुराम का जो जन्म था वह ग्रहों के युग में हुआ था जिसके कारण वह तेजस्वी ओजस्वी और पराक्रमी योद्धा थे। ब्राह्मण कुल में जन्मे भगवान परशुराम का चरित्र चित्रण अगर किया जाए तो क्षत्रिय की भांति उनका ओजस बाहर आता था। भगवान परशुराम आज्ञाकारी पुत्र थे एक बार उन्होंने अपने पिता की आज्ञा पर अपनी माता का सिर काट दिया था और बाद में मां को पुनः जीवित करने के लिए उन्होंने अपने पिता से आग्रह किया था और उनसे यह वरदान मांग लिया था जिसके तहत परशुराम भगवान ने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करते हुए अपनी माता को पुनः जीवित कर लिया था।

छत्रिय वंश को नाश करने के लिए परशुराम ने ली प्रतिज्ञा

सहस्त्रार्जुन (हैहय वंश के राजा) अपने बल का बड़ा घमंड था और घमंड के कारण ही लगातार वह ब्राह्मणों पर और ऋषि मुनियों पर अत्याचार कर रहा था जिसके तहत भगवान परशुराम क्रोधित हो गए और उन्होंने क्षत्रिय वंश का विनाश करने के लिए प्रतिज्ञा ले ली। परशुराम की पौराणिक कथा में ही कामधेनु गाय का उल्लेख किया गया है। कामधेनु गाय समस्त सैनिकों के और लोगों का पेट पालन करती थी गाय का चमत्कार इतना ज्यादा प्रभावित था कि सहस्त्रार्जुन के सैनिकों के मन में लालच पैदा हो गया। और उन्होंने ऋषि कामधेनु गाय को जमदग्नि से बलपूर्वक छीनने का प्रयास किया और जब यह बात भगवान परशुराम को पता चली तो क्रोध में आकर सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया।

—-वंदना

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