अश्विन माह में पितृ पक्ष के दौरान पितरों को पिंड का दान करते हैं और उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। पितरों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों और अपने घर के सदस्यों को भोजन कराते हैं। यह दो अक्तूबर को समाप्त होगा। कहा जाता है कि इन 15 दिनों में हिंद धर्म के अनुसार कोई शुभ कार्य नहीं हो सकते हैं सिर्फ पूवर्जों को याद किया जाता है। मंदिरों में पूजा पाठ संबंधी कर्मकांड भी इन दिनों कम हो जाते हैं। इन दिनों स्वर्गलोक से सभी पितर धरती पर अपने-अपने स्वजनों के यहां आते हैं और उनके यहां 15 दिनोंं तक सत्कार की आस रखते हैं। इसलिए इन दिनों अपने पितरों का अनादर नहीं करना चाहिए।
पूर्वजों को उनकी तिथि पर याद करें
भाद्रपद महीने में पूर्णिमा के दिन से पितृ पक्ष शुरू होता है और यह आश्विन माह की अमावस्या के दिन खत्म हो जाता है। इन 15 दिनों में लोग अपने पूर्वजों की निधन की तिथि के अनुसार तर्पण करते हैं। पूरे साल में किसी भी महीने में शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में निधन होता है तो उसी दिन की तिथि के हिसाब से पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक में उनकी पूजा होगी। पूर्णिमा के दिन उनका श्राद्ध होगा जिनका निधन पूर्णिमा के दिन हुआ हो। अमावस्या के दिन वे श्श्राद्ध करते हैं जिनको अपने पूर्वजों के निधन की तिधि पता न हो। अगर किसी की अप्राकृतिक मौत जैसे आत्महत्या या दुर्घटना में जान गई हो वे चतुर्दशी को श्राद्ध कर सकते हैं। कहा जाता है कि श्राद्ध पक्ष में अगर पूर्वजों को जल और भोजन अर्पण न किया गया तो वे अपने परिवार को कष्ट देते हैं।
GB Singh