पूरी दुनिया में प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। इसीलिए इसका उपयोग सीमित करने और कई प्रकार के प्लास्टिक पर प्रतिबंध की मांग उठती रही है। भारत में भी ऐसी ही मांग निरंतर होती रही है, किंतु तमाम प्रयासों के बावजूद ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसका अनुमान इन आंकड़ों से भी लगाया जा सकता है कि भारत में 1990 में पालीथीन की खपत करीब 20 हजार टन थी, जो अगले डेढ़ दशकों में बढ़कर तीन लाख टन से भी ज्यादा हो गई।
वर्ष 2017 में नेशनल ग्रीन टिब्यूनल ने एक अहम फैसले में दिल्ली में 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाली नान बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाते हुए सरकार को एक सप्ताह के भीतर ऐसे प्लास्टिक के सारे भंडार को जब्त करने का आदेश देते हुए कहा था कि दिल्ली में अगर किसी व्यक्ति के पास से प्रतिबंधित प्लास्टिक बरामद होते हैं तो उसे पर्यावरण क्षतिपूíत के रूप में पांच हजार रुपये की राशि भरनी होगी।
इस संदर्भ में दुनियाभर में हो रहे प्रयासों की बात की जाए तो आयरलैंड में प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल पर 90 फीसद टैक्स लगा दिया गया, जिसके चलते इनका इस्तेमाल बहुत कम हो गया। आस्ट्रेलिया में सरकार की अपील से ही वहां इन थैलियों के इस्तेमाल में 90 फीसद कमी आई। अफ्रीका के रवांडा में प्लास्टिक बैग बनाने, खरीदने और इस्तेमाल करने पर जुर्माने का प्रविधान है। फ्रांस ने 2002 में प्लास्टिक पर पाबंदी लगाने का अभियान शुरू किया और 2010 में इसे पूरी तरह से लागू कर दिया गया। अमेरिका के न्यूयार्क में रिसाइकिल नहीं हो सकने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा है। चीन, मलेशिया, वियतनाम, थाइलैंड, इटली इत्यादि देशों ने प्लास्टिक कचरे के आयात पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए हैं। चीन विश्व का सबसे बड़ा प्लास्टिक कचरा आयातक देश रहा है, लेकिन उसने भी कुछ समय पहले 24 श्रेणियों के ठोस प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
प्लास्टिक पर पाबंदी के लिए चरणबद्ध तरीके से भारत में भी इसी प्रकार के सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। हालांकि वर्ष 2022 तक देश को ‘सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त’ बनाने की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए एक जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाए जाने का निर्णय लिया जा चुका है, लेकिन फिलहाल तो भारत न केवल दुनिया के सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा आयात करने वाले देशों में शामिल है, बल्कि यहां प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्र में प्लास्टिक कचरा भी उत्पन्न होता है।
हालांकि भारत द्वारा भी ‘खतरनाक अपशिष्टों के प्रबंधन और आयात से जुड़े नियम 2015’ में संशोधन करते हुए एक मार्च 2019 को ठोस प्लास्टिक के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, किंतु इन नियमों में कुछ खामियों के चलते अभी भी देश में प्लास्टिक कचरे के आयात को छूट मिल रही है और इसी का फायदा उठाकर प्लास्टिक की खाली बोतलों को महीन कचरे के रूप में आयात किया जा रहा है। भारत में प्रतिवर्ष 1.21 लाख टन से भी ज्यादा प्लास्टिक कचरा अमेरिका, पश्चिम एशिया तथा यूरोप से आयात किया जाता है। इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर के आंकड़ों के अनुसार 2017 के मुकाबले 2018 में भारत में प्लास्टिक आयात करीब 16 फीसद बढ़ गया था, जो 15 अरब डालर को भी पार कर गया था।
चिंता की बात यह है कि प्रतिदिन निकलने वाले प्लास्टिक कचरे का लगभग आधा हिस्सा या तो नालों के जरिये जलाशयों में मिल जाता है या गैर-शोधित रूप में किसी भू-भाग पर पड़ा रहकर धरती और वायु को प्रदूषित करता है। देशभर में सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्य कर रहे हैं, किंतु वे अपने कार्य के प्रति कितने संजीदा हैं, यह जानने के लिए इतना जान लेना ही पर्याप्त होगा कि 2017-18 में इनमें से सिर्फ 14 बोर्ड ही ऐसे थे, जिन्होंने अपने यहां प्लास्टिक कचरे के उत्पादन के बारे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जानकारी उपलब्ध कराई।
स्पष्ट है कि केंद्र सरकार और एनजीटी दोनों को प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए इन सभी बोर्डो की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी और प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए जागरूकता बढ़ाने के साथ अदालती निर्देशों का सख्ती से पालन भी सुनिश्चित करना होगा।
 TOS News Latest Hindi Breaking News and Features
TOS News Latest Hindi Breaking News and Features
				 
		
		 
						
					 
						
					