PM मोदी को इस मासूम ने लिखा दुःखभर खत- 'बेटियों को पढ़ाने के लिए मेरे शहर को राजधानी बना दीजिए'

PM मोदी को इस मासूम ने लिखा दुःखभर खत- ‘बेटियों को पढ़ाने के लिए मेरे शहर को राजधानी बना दीजिए’

उत्तराखंड के जनपद रुद्रप्रयाग में कक्षा सात में पढ़ने वाली 13 वर्षीय बच्ची आकांक्षा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक चिट्ठी लिखी है. इस चिट्ठी में उसने पहाड़ी इलाके में रहने वाले लोगों के जीवन और उससे जुड़ी समस्याओं के बारे में बताया है. साथ ही उसने पीएम से उत्तराखंड से करीब 250 किलोमीटर दूर स्थित नगर पंचायत गैरसैंण को राजधानी बनाने की विनती की है. इस चिट्ठी में बच्ची ने शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदा, जंगली जानवरों के आतंक जैसी गंभीर मुद्दों पर सवाल किए हैं. बच्ची ने अपने पत्र में ये सवाल भी किया है कि यदि पहाड़ों की इन परेशानियों के कारण लड़कियां पढ़ने ही नहीं जा सकेंगी तो उनका बेटियां बचाओ-बेटियां पढ़ाओ का सपना कैसे पूरा होगा.PM मोदी को इस मासूम ने लिखा दुःखभर खत- 'बेटियों को पढ़ाने के लिए मेरे शहर को राजधानी बना दीजिए'

नमस्ते, मैं पहाड़ के एक छोटे से नगर रुद्रप्रयाग में रहती हूं. पहले अपने गांव राजकीय प्राथमिक विद्यालय कनकचौरी, पोखठाद्ध में पढ़ती थी लेकिन वहां न तो छात्र थे और न ही अध्यापक. मेरी छोटी बहन कक्षा तीन में पढ़ती है जबकि भाई दूसरी कक्षा में है. गांव में पढ़ने की अच्छी सुविधा नहीं थी. स्कूल भी दूर था तो मेरे पिता मुझे मेरी बहन व भाई को लेकर रुद्रप्रयाग आ गए. अब मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ रही हूं. मैं बड़ी होकर जज बनना चाहती हूं. 

महोदय मुझे बहुत अच्छा लगता है कि आपने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया. लेकिन जब मैं अपनी सहेली तनुजा के बारे में सोचती हूं तो दुख होता है. वो पढ़ने में होशियार है, लेकिन जिस सरकारी स्कूल में वह पढ़ती है वो गांव से बहुत दूर है. हाई स्कूल तो और भी दूर है. गांव के कई बच्चों को नदी पार करनी होती है. जब केदारनाथ आपदा आई थी तो झूला पुल बह गया था. वो पुल अब भी नहीं बना है. गांव के बच्चे नदी पार करते समय ट्रॉली को भी हाथों से खींचते हैं. ट्रॉली खींचते समय कई बच्चों की उंगलियां कट जाती हैं.

स्कूल में न अध्यापक न सुविधाएं
प्रधानमंत्री जी मैं आपको यह भी बताना चाहती हूं कि गांवों के अधिकांश स्कूलों में न तो अध्यापक हैं और न ही अन्य सुविधाएं. कई स्कूलों में तो शौचालय और पीने का पानी भी नहीं है, जिससे हम लड़कियों को ज्यादा समस्या होती है. मिडिल के बाद हाई स्कूल और इंटर कॉलेज बहुत दूर हैं. ऐसे में गांव की लड़कियों को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ जाती है क्योंकि माता-पिता अपनी बेटियों को गांव से अधिक दूर पढ़ने के लिए नहीं भेजते हैं. ऐसे में बेटियां कैसे पढ़ेंगी?

हमारे पहाड़ का जीवन बहुत कठिन होता है. सर, यहां कई समस्याएं हैं सड़क, स्वास्थ्य, जंगली जानवर का भय और उससे भी अधिक भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ का भय. मेरी मां को आज भी घास-लकड़ी लेने जंगल जाना होता है और वहां हमेशा गुलदार या भालू का भय होता है.

गैरसेंण को राजधानी बना दीजिए
मोदी सर, आपने श्रीनगर गढ़वाल में पिछले साल भाषण में गढ़वाली में दो शब्द कहे तो मुझे बहुत अच्छा लगा था. मेरे पिता कहते हैं कि यदि राजधानी गैरसैंण होती तो गांव में ये समस्याएं नहीं होती. नेता और अधिकारी पहाड़ में हमारी तरह रहते तो हमारा दर्द समझ पाते. यदि राजधानी गैरसैंण होती तो लोग पहाड़ छोड़कर मैदानों की ओर नहीं जाते. 

मेरे पिता कहते हैं कि उन्हें और बड़े लोगों को देहरादून आने-जाने में भी परायापन का अहसास होता है. यदि गैरसैंण स्थायी राजधानी होती तो पहाड़ के लोगों को अधिक सुविधा होती, अपनेपन का अहसास होता. मोदी जी आपने कहा था कि पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी पहाड़ों के काम ही आएगा. ऐसा कब होगा?

अधिक कुछ नहीं कहती हूं. आपसे विनती है कि यदि आप सच्चे दिल से चाहते हैं कि बेटियां बचाओ-बेटियां पढ़ाओ तो मेरा कहना है कि आप हमारे पहाड़ को बचा लो. यदि पहाड़  बचाना है और यहां की बेटियों को पढ़ाना है तो यहां हम लोगों को मूलभूत सुविधाएं चाहिए. आपसे विनती है प्लीज गैरसैंण राजधानी बना दो. प्लीज प्लीज.   

पहाड़ की बेटी,
आकांक्षा नेगी.
कक्षा सात
नालंदा पब्लिक स्कूल, रुद्रप्रयाग.

 
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