
अस्पताल ले जाने से पहले उनका निधन हो चुका था। आधुनिक हिन्दी साहित्य के लेखक मनु शर्मा हिंदी की खेमेबंदी से दूर रहे। उन्होंने साहित्य की हर विधा में लिखा। बेहद अभावों में पले-बढ़े मनु शर्मा ने घर चलाने के लिए फेरी लगाकर कपड़ा और मूंगफली तक बेची।
बाद में बनारस के डीएवी कॉलेज में अदेशपालक की नौकरी की। उनके गुरु कृष्णदेव प्रसाद गौड़ उर्फ ‘बेढ़ब बनारसी’ ने उन्हें पुस्तकालय में काम दिया। पुस्तकालय में पुस्तक उठाते-उठाते उनमें पढ़ने की ऐसी रुचि जगी।
उन्होंने अपनी कलम से पौराणिक उपन्यासों को आधुनिक संदर्भ दिया है। मनु शर्मा ने बनारस से निकलने वाले ‘जनवार्ता’ में प्रतिदिन एक ‘कार्टून कविता’ लिखी। यह इतनी मारक होती थी कि आपात काल के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
जयप्रकाश नारायण ने कहा था – यदि संपूर्ण क्रांति को ठीक से समझना हो तो ‘जनवार्ता’ अखबार पढ़ा करो। भारतीय भाषाओं में उनकी कृति ‘कृष्ण की आत्मकथा’ है। 8 खंडों और 3000 पृष्ठ वाले ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक कालजयी कृति है।
मनु शर्मा को गोरखपुर वि.वि. से डी.लीट. की मानद उपाधि, उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘लोहिया साहित्य सम्मान’, केंद्रीय हिंदी संस्थान के ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया था।
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