केंद्र सरकार अक्सर कहती है कि उसके दो मंत्र हैं- सुशासन और विकास. हालांकि, पीएनबी का महाघोटाला सामने आने के बाद इस पर सवालिया निशान लग गए हैं कि क्या मोदी सरकार का सुशासन का मंत्र सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर बेअसर है?
ऐसा कहने की वजह है कि 2014 के बाद से बैंक बोर्ड में अधिकारियों और कर्मचारियों के डायरेक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है. कर्मचारियों का डायरेक्टर बैंक बोर्ड में एक वॉचडॉग की तरह काम करता है.
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफडरेशन (AIBOC) अक्सर भारत सरकार पर इन नियुक्तियों में हीलाहवाली का आरोप लगाता रहा है. संगठन का आरोप है कि सरकार जानबूझकर इन अहम पदों पर नियुक्ति नहीं कर रही है.
अधिकारियों के संगठन ने कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को इस बारे में चिट्ठी लिखी. संगठन ने इस मामले को महत्ता के साथ उठाया था, लेकिन सरकार पदाधिकारियों का कहना है कि उन्हें इस मामले पर सरकार की ओर से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला.
इस संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि इन नियुक्तियों में देर होने से बैंकों की पारदर्शिता प्रभावित हो रही है. संगठन की मांग है कि बैंक ब्यूरो बोर्ड को बंद किया जाए. सरकार ने दो साल पहले इसका गठन कर पूर्व कैग विनोद राय को इसका प्रमुख बनाया था.
बैंक ब्यूरो बोर्ड बैंकों में शीर्ष स्तर के पदाधिकारियों की नियुक्तियों पर सलाह देता है. देखें, इस संगठन का पीएम मोदी को लिखा गया खत-
इसी बीच पीएनबी महाघोटाले को अंजाम देने वाले नीरव मोदी ने पीएनबी को एक चिट्ठी लिखकर कह दिया है कि वह अब बैंक के पैसे नहीं चुका सकता है. उसने कहा है कि लगातार हुई कार्रवाई से उसकी कंपनी को नुकसान हुआ है, इसलिए अब वह पैसे चुकाने में सक्षम नहीं है. बता दें कि पीएनबी का महाघोटाला सामने आने के बाद सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के कई ठिकानों पर रेड डाल रहे हैं.