Congress leader priyanka gandhi campaing at amethi . TOI Lucknow Photo

Politics: कहीं उत्सुकता है तो आशंका के बादल भी हैं छाए!

आरबी सिंह  
पहले कयास इस बात पर लगाए जाते थे कि प्रियंका गांधी राजनीति में सक्रिय रूप से क्यों नहीं आ रहीं और आएगी तो कब आएंगी। अब जब कांग्रेस की राष्टï्रीय महासचिव व पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बन कर वह आ गयी हैं तो बहस इस बात की ओर मुड़ गयी है कि उनके इस समय राजनीति में आने का मकसद क्या है और उनके आने का क्या प्रभाव पड़ेगा।

जाहिर है कि आम जनमानस में अगर प्रियंका के प्रभाव को लेकर उत्सुकता है तो कांग्रेस के विरोधी इसी बात को लेकर आशंकित हैं। अलग.अलग खेमे उनके प्रभाव का आकलन उत्सुकता अथवा आशंका के दृष्टिकोण से कर रहे हैं। जैसा कि पिछले तीन दशक से देखा जा सकता है उत्तर प्रदेश एक राजनीतिक प्रयोगशाला बनी हुयी है और तमाम तरह के प्रयोग इससे निकल कर सफल और असफल होते देखे जा चुके हैं। इनमें सत्ता संचाालन के लिए हुए प्रयोग भी शामिल हैं और सत्ता पाने के लिए चुनाव पूर्व हुए गठबंधन भी इसका हिस्सा रहे हैं।

इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में उतार कर एक प्रयोग किया है। प्रियंका का प्रयोग संभावनाओं के साथ.साथ जोखिम भी लिए हुए है और यह कांग्रेस के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर लागू होता है। कांग्रेस में जो लोग यह समझ या समझा रहे हैं कि प्रियंका के पदार्पण से चुनाव की जमीनी हकीकत बदल जाएगी वे उसी तरह के गुमान में हैं जिसमें वे बीते तीन दशक से पड़े हैं।

कांग्रेस की मुश्किल यह है कि 1989 के चुनाव में पराजित होने के साथ ही उसका वोट तीन दिशाओं में चला गया। अनुसूचित जाति का अधिकांश वोट बसपाए सवर्ण का भाजपा में गया तो मुस्लिम पहले जनता दल व प्रकरांतर से सपा व बसपा जैसे दलों की पहली व दूसरी पसंद बनता गया और इसके बाद कहीं जाकर कांग्रेस का नंबर लगा जो न लगने के बराबर था।

किसी एक के पास से अपना वोट बैंक वापस लाना अपेक्षाकृत आसान होता है लेकिन तीन स्थानों से उसे एक ही वक्त में वापस लाना मुश्किल होता है और कांग्रेस की मौजूदा हालत इसे स्वयंमेव सिद्घ करता है। एक अहम वजह यह भी है कि इनमें से हर वोट यह इंतजार करता है बाकी के दो घर वापसी करें तो वह भी करे अन्यथा अकेले उसके लौटने से जीत होगी नहीं और यूं उसकी घर वापसी बेकार चली जाएगी। राजनीति का अभिन्न अंग बन चुकी चाटुकारिता के प्रवाह में कांग्रेसियों को प्रियंका में इंदिरा गांधी दिखें या कोई और लेकिन सच यही है कि प्रियंका गांधी के पास कोई ऐसा राजनीतिक यंत्र या उपाय नहीं है कि वह कांग्रेस के तीन दिशाओं में जा चुके वोट बैंक को एक झटके में वापस ला सकें।

इस बात की थोड़ी बहुत संभावना हो सकती है कि प्रियंका के आने से कांग्रेस के वोट में आंशिक वृद्घि हो जाए लेकिन यह परिणाम बदलने वाला परिवर्तन हो पाएगा इसकी संभावना नगण्य है। इस बात पर तर्क वितर्क किया जा सकता है कि वोटों की यह आंशिक बढ़ोत्तरी सपा.बसपा के संयुक्त खाते से निकलेगी या भाजपा के लेकिन यह कांग्रेस का खेल बनाने में कदाचित निर्णायक नहीं होगी।

प्रियंका का असर बाहरी ही नहीं बल्कि भीतरी तौर पर भी हो सकता है भले ही यह फौरी तौर पर न हो लेकिन प्रकरांतर से इसका प्रभाव पडऩा लाजिमी है। कांग्रेस में राहुल व प्रियंका के रूप में दो रेखाओं का लंबे समय तक समानांतर चलते रहना संभव नहीं है। आखिर जो कार्यकर्ता प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं क्या वे पूर्वी उत्तर प्रदेश की 30.32 लोक सभा सीटों तक ही उनकी सक्रियता से संतुष्ट हो जाएंगे। नहींए ऐसा नहीं होने वाला।

जाहिर है कि अगर प्रियंका गांधी अपनी सक्रियता बनाए रखती हैं तो लोकसभा चुनाव के परिणामों से इतर आगे वह चाहे अनचाहे किसके वर्चस्व को चुनौती देगी यह बिना नाम लिए भी हर कोई समझ सकता है। वैसे भी ऐसे राजनीतिक प्रेक्षकों की कमी नहीं है जिनका मानना है कि कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष एक अनिच्छुक राजनतिज्ञ हैं। ऐसे में आगे चलकर दस.बरह साल की कश्मकश के बाद राजनीति में उतरीं प्रियंका और अनिच्छुक कांग्रेस अध्यक्ष के बीच की परोक्ष प्रतिस्पर्धा भी दिलचस्प होगी। कुल मिलाकर प्रियंका की आमद में उम्मीदों के साथ हीे जोखिम भी जुड़ा है।

आरबी सिंह पिछले 27 वर्षो से हिंदी और अग्रेेंजी पत्रकारिता में सक्रिय हैं। पानियरए जागरण एवं गण्डीव जैसे प्रमुख दैनिक में काम करने का अनुभव है।

English News

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com