अतुल चंद्रा
प्रियंका वाड्रा गाँधी के कांग्रेस की महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने से प्रदेश और देश की राजनीति में एक नया आयाम जुड़ गया है। प्रियंका के आने के बाद ना केवल भारतीय जनता पार्टी बल्कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को भी लोक सभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति में संशोधन करना ज़रूरी हो गया है।
प्रियंका का सक्रिय राजनीति में पदार्पण ऐसे समय हो रहा है जब कांग्रेस तीन प्रदेशों के चुनाव जीत कर पहले से ही उत्साहित है। उत्तर प्रदेश ही एक ऐसा प्रदेश था जहां कांग्रेस के बचे हुए कार्यकर्ता किसी ऐसे सहारे की तलाश में थे जो पार्टी में नई जान फूंक सके।निर्णय के परिणाम 2019 में कम और 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में ज़्यादा देखने को मिले। इसका मूल उद्देश्य भी शायद यही है क्योंकि दिसंबर 1989 के बाद से कांग्रेस प्रदेश की सत्ता से बाहर है। निश्चित ही ये कदम राहुल गाँधी द्वारा भारतीय जनता पार्टी पर लगातार किये जा रहे हमलों को और पैनापन देगा।
लेकिन वोट बैंकों और वोटों की दुनिया में इसका कांग्रेस को तुरंत कितना फायदा होगा ये कह पाना मुश्किल है क्योंकि कांग्रेस का दलितए ओबीसीए मुस्लिम और ब्राह्मण वोटों पर पहले जैसा आधिपत्य नहीं रहा। ये वोट बैंक अब समाजवादी पार्टीए बहुजन समाज पार्टीए और 2014 के लोकसभा तथा 2017 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की तरफ खिसक गया है। कांग्रेस के पुनरुत्थान के लिए इस वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करना एक बड़ी चुनौती रहेगीए विशेषकर पूर्वांचल में जहां का कार्यभार उन्हें सौंपा गया हैण् 2022 तक ज़मीन तैयार करने में बहुत मुश्किल नहीं होनी चाहिए।
इसमें दो राय नहीं कि राहुल गाँधी की तुलना में प्रियंका ज़्यादा लोकप्रिय रही हैं। उसका कारण लोगों का उनमे इंदिरा गाँधी की छवि दिखाई देना कहा जाता हैण् लेकिन उनकी ये लोकप्रियता अभी तक अमेठी और रायबरेली संसदीय सीटों पर ही कमाल दिखा पाई है। पहली बार वे चुनावी रणभूमि में पूर्वांचल को सम्हालने की जि़म्मेदारी के साथ उतर रही हैं। जाति समीकरण की दृष्टि से ये क्षेत्र अमेठी और रायबरेली से अलग है।
उससे ज्यादा अहम् है इस क्षेत्र में योगी आदित्यनाथ का दबदबा।में गोरखपुर की सीट जीतने के बाद बसपा और सपा के भी हौसले इस क्षेत्र को लेकर बुलंद हैं। चुनावी गणित से अलग प्रियंका को रोबर्ट वाड्रा से अलग करके नहीं देखा जा सकता है। और ना ही इस संभावना से इनकार किया जा सकता है कि कांग्रेस में आगे चल कर गुटबाज़ी की शुरुआत होगी। रोबर्ट वाड्रा के खिलाफ पहले से ही कई आरोप हैं। आने वाले समय में जैसे.जैसे प्रवर्तन निदेशालय का शिकंजा उनके ऊपर कसेगाए प्रियंका गाँधी के ऊपर भी हमले तेज़ होंगे।
व्यवसायी रोबर्ट वाड्रा अपनी पत्नी के राजनैतिक जीवन में कितना हस्तक्षेप करेंगे या उसका आर्थिक लाभ उठाएंगे इस आधार पर ही प्रियंका के राजनीतिक जीवन में सफलताध्असफलता तय होगी। यद्यपि फिलहाल भाई राहुल और बहन प्रियंका की जोड़ी मिलकर प्रचार करेगीए लेकिन जिन कांग्रेसियों को राहुल के दरबार में न्याय नहीं मिलेगा वे निश्चित ही प्रियंका का दरवाज़ा खटखटाएंगे।
कुछ रोबर्ट वाड्रा को प्रियंका पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए प्रियंका गाँधी को इंदिरा गाँधी मान कर उम्मीदें कर लेना जल्दबाज़ी होगी। राजनीति संभावनाओं का खेल है अत: इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रियंका की वजह से 2019 में यदि कांग्रेस गठबंधन की सरकार बना भी लेती है तो रोबर्ट वाड्रा की भूमिका नुकसानदेह साबित हो सकती है।
संभावनाएं तो भविष्य के गर्भ में हैंण् इतना ज़रूर है कि प्रियंका को लाकर कांग्रेस ने एक और फ्रंट खोल दिया है जिसके लिए भाजपा तैयार नहीं थी। राहुल गाँधी के बदले हुए तेवर से वो पहले ही चिंतित थी। दलितों और किसानों की नाराजगी ऊपर से। कुल मिलाकर चुनाव से ठीक पहले प्रियंका को उतारकर हवा का रुख बदलने का कांग्रेस का प्रयास पार्टी के लिए उम्मीदों से भरा है।
अतुल चंद्रा उत्तर प्रदेश के जाने माने पत्रकार है। वह पूर्व में दस वर्षो से अधिक तक टाइम्स आफ इण्डिया के स्थानीय सम्पादक रहे हैं।