लखनऊ: वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव को लिए सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है। भाजपा से लेकर कांग्रेस और यूपी की समाजवादी पार्टी, बहुजन पार्टी व अन्य क्षेत्रीय दलों में भी अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। इस बार 2019 में होना वाला चुनाव बहेद की अहम होने वाला है। इसके पीछे कारण है कि सत्ता की शीर्ष पर मौजूद भारतीय जनता पार्टी के विरोध में सभी विपक्षी पार्टियां एक जुट होने की बात कह रहीं है। वहीं भाजपा की राहें भी इस चुनाव में आसान नहीं दिख रही हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं इस बार चुनाव में जहां भाजपा के सामने अपनी सत्ता पर काबिज रहने की चुनौती है, वहीं विपक्षी दलों का मकसद सिर्फ और सिर्फ दिल्ली की सत्ता से भाजपा को दूर रखने का है।
एक तरफ भाजपा अपने ही कुछ साथियों की नाराजगी से परेशान हैं। वहीं संत समाज भी अध्योध्या में राम मंदिर को जल्द बनवाने की मांग को लेकर अड़ा हुआ है। चंद रोज पहले यूपी के कई संतों ने सूबे के सीएम योगी आदित्यानाथ ने मिलकर चुनाव से राम मंदिर मुद्दे को लेकर अपना पक्ष साफ करने के लिए कहा है। यहां तक कि संत समाज ने इस बात की भी चेतावनी दी है कि अगर जल्द राम मंदिर का निमार्ण नहीं शुरू हुआ तो 2019 के चुनाव में इसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ेगा।
वहीं कनार्टक में सरकार न बना पाने के गम और यूपी के गोरखपुर, फूलपुर, कैराना और नूरपुर की सीटें हार के बाद भाजपा ने अपनी रणनीति को बदल दिया है। अब भाजपा फिर से दलित व मुस्लिम वोट बैंक को अपनी तरफ खीचने का काम कर रही है। भाजपा ने समर्थन फार स्पोर्ट अभियान पूरे देश में चला रखा है। इस अभियान के तहत भाजपा के राष्टï्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर तमाम बड़े नेता रोज किसी न किसी बड़ी हस्ती से मिल रहे हैं और समर्थन की मांग कर रहे हैं।
वहीं कर्नाटक में मिली जीत के बाद कांग्रेस पार्टी में नई जान डाल दी है। अब कांग्रेस अपनी खोई हुई राजनैतिक जमीन तलाशने के लिए क्षेत्रीय दलों का सहारा ले रही है। कर्नाटक फार्मूले पर कांग्रेस अन्य राज्यों में भी इलाके की पार्टियों से गठबंधन कर सकती है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की हमेशा से अहम भूमिका रही है।
कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी के गलियारों से होकर गुजरता है। वर्ष 2019 में होने वाले चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी, बहुजन पार्टी, लोकदल और अन्य पाॢटयों ने अपनी तैयारियां शुरु कर दी हैं। इस बार यूपी में समाजवादी पार्टी और बहजुन पार्टी में गठबंधन हो सकता है। जानकार बताते हैं कि दोनों पार्टियां 50-50 प्रतिशत सीटों के बंटवारों पर सहमत हो सकती हैं।
इस गठबंधन ने कांग्रेस और लोकदल भी शामिल हो सकती है, पर अभी यह तय नहीं है कि लोकदल और कांग्रेस को कितनी सीट मिल सकती है। उधर पूर्व सीएम अखिलेश यादव और मायावती केन्द्र व प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ कोई भी मौका छोडऩा नहीं चाहते हैं। एक तरफ मायावती भाजपा को दलित विरोधी पार्टी बता रही है तो समाजवादी पार्टी भाजपा पर विकास को छोड़ हिन्दुतव की राजनीति करने का आरोप लगा रही है।
वहीं प्रदेश की भाजपा सरकार में गुटबाजी अपने चरम पर पहुंच चुकी है। यूपी के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने अपने बयानों से यूपी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रखा है। वहीं यूपी के बहराइच जनपद से सांसद सावित्री बाई फूले में भी पार्टी के लिए कई बार मुश्किले खड़ी की हैं।
भाजपा सरकार पश्चिमी यूपी में अपनी कमजोर पड़ रही पकड़ को मजबूत करने में लगी है, पर कैराना और नूरपुर की हार वर्ष 2019 चुनाव पर खासा असर डाल सकते हैं। फिलहाल अभी लोकसभा चुनाव में एक साल का वक्त बाकी है, पर इस बार यह चुनाव हर माने में अहम होंगे। एक तरफ भाजपा फिर से जीत हासिल करने की कोशिश कर रही है तो बाकी पार्टियां किसी भी हाल में भाजपा को अब सत्ता में देखना नहीं चाहती हैं।