तमाम दावों के बावजूद उत्तर प्रदेश में बिजली का संकट बढ़ता जा रहा है। भीषण गर्मी में बिजली की बढ़ती मांग से आपूर्ति व्यवस्था बेपटरी होती जा रही है। तय शेड्यूल के लड़खड़ाने से खासतौर से ग्रामीण इलाकों को 18 के बजाय 10 घंटे भी बिजली नहीं मिल रही है।
बुंदेलखंड और कस्बों में रातभर बिजली की अधाधुंध कटौती हो रही है। बड़े शहरों में अघोषित कटौती का सिलसिला भी नहीं थम रहा है। जबरदस्त बिजली कटौती से प्रदेशवासियों का हाल-बेहाल है। बिजली संकट से उद्योग-धंधे भी प्रभावित हो रहे हैं।
दरअसल, चढ़ते पारे ने राज्य में बिजली की मांग के पिछले चार वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया है। अप्रैल में ही बिजली की मांग लगभग 23 हजार मेगावाट तक पहुंच रही है लेकिन कोयले की कमी व अन्य तकनीकी कारणों से बिजली की उपलब्धता लगभग 19 हजार मेगावाट ही है।
प्रदेशवासियों को शेड्यूल से बिजली देने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अतिरिक्त बिजली जुटाने के निर्देश तो दिए हैं लेकिन एनर्जी एक्सचेंज से भी अतिरिक्त बिजली नहीं मिल पा रही है। ऐसे में तीन से चार हजार मेगावाट बिजली की कमी के चलते सबसे ज्यादा कटौती राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में की जा रही है।
शेड्यूल के मुताबिक गांवों को 18 घंटे बिजली मिलनी चाहिए लेकिन बिजली का संकट होने के कारण उन्हें 9-10 घंटे बिजली भी नहीं मिल पा रही है। बुंदेलखंड को भी 20 घंटे के बजाय 10 घंटे के आसपास ही बिजली आपूर्ति हो रही है।
जर्जर तार और ट्रांसफार्मरों की ओवरलोडिंग के चलते कई जगह तो 24 घंटे में पांच घंटे भी बिजली मिलना मुश्किल है। जहां तक तहसील मुख्यालयों की बात है तो उन्हें 21.30 घंटे के बजाय 15 घंटे भी बिजली आपूर्ति करना संभव नहीं हो पा रहा है। नगर पंचायत वाले कस्बों का भी हाल कुछ ऐसा ही है।
जिला मुख्यालय और महानगरों को कागजों पर बिजली कटौती से मुक्त रखा गया है लेकिन हकीकत में शहरवासियों को भी बिजली संकट और लो-वोल्टेज जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। पावर कारपोरेशन की फिलहाल कोशिश है कि औद्योगिक क्षेत्रों की बिजली न काटनी पड़े। कारण है कि उद्योगों से कारपोरेशन को कहीं ज्यादा विद्युत राजस्व मिलता है क्योंकि सर्वाधिक महंगी बिजली उद्योगों की ही है।
ऊर्जा मंत्री एके शर्मा का कहना है कि बिजली की उपलब्धता बढ़ाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। शुक्रवार को 781 मेगावाट बिजली की उपलब्धता बढ़ी है। एक मई से लगभग दो हजार मेगावाट और बिजली मिलने की उम्मीद है। शर्मा ने बताया कि किसी तरह के फाल्ट को जल्द से जल्द ठीक करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए गए हैं।
पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष एम देवराज का कहना है कि पिछली बार से 20 प्रतिशत ज्यादा बिजली दी जा रही है लेकिन मांग बढ़ने से बिजली आपूर्ति का शेड्यूल प्रभावित हुआ है। अध्यक्ष ने दावा किया है कि पहली मई से बिजली की आपूर्ति में सुधार हो जाएगा।
कोयले की कमी से 30 करोड़ यूनिट बिजली का नुकसान : कोयले की कमी से उत्तर प्रदेश में अप्रैल माह के दौरान ही लगभग 30 करोड़ यूनिट बिजली के उत्पादन का नुकसान हुआ है। पर्याप्त कोयला न होने से कई तापीय परियोजनाओं की या तो कुछ यूनिटें बंद रहीं या कम क्षमता पर ही उन्हें चलाया गया। पहली अप्रैल से 28 अप्रैल के दौरान विद्युत उत्पादन निगम की पारीछा परियोजना से लगभग 16.69 करोड़ यूनिट, हरदुआगंज से 10.99 करोड़ और ओबरा से 2.36 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन कोयले की कमी के चलते प्रभावित हुआ है। कोयले की कमी के चलते बजाज समूह की ललितपुर तापीय परियोजना की 660 मेगावाट क्षमता की एक यूनिट से बिजली का उत्पादन ठप है। इसी तरह 45-45 मेगावाट की आठ यूनिटों को भी कोयला न होने के कारण नहीं चलाया जा रहा है। तकनीकी कारणों से हरदुआगंज की 660 मेगावाट की यूनिट भी बंद है। पिछले 24 घंटों के दौरान बिजली की मांग 46.70 करोड़ यूनिट रही लेकिन उपलब्धता 43.75 करोड़ यूनिट ही रही।
कहीं चार-छह दिन तो कहीं एक दिन का ही कोयला : वैसे तो मानकों के अनुसार कोयले की खदानों के आसपास की तापीय परियोजनाओं के लिए 17 दिन और अन्य परियोजनाओं के लिए 26 दिन का कोयला होना चाहिए लेकिन वर्तमान में अनपारा के पास छह दिन का ही कोयला है। प्रतिदिन 40 हजार टन कोयले की जरूरत है लेकिन 32 हजार टन ही पहुंच रहा है। इसी तरह ओबरा(12500 के बजाय 7900 टन की आपूर्ति) हरदुआगंज(19000 के बजाय 3800 टन) के पास चार-चार दिन और पारीछा के पास सिर्फ एक दिन का कोयला है। मात्र एक दिन का कोयला रहने के कारण पारीछा की 15500 टन की जरूरत को देखते हुए अब 15 हजार टन कोयला दिया जा रहा है। विभागीय अफसरों का कहना है कि अब कोयले की उपलब्धता बढ़ी है इसलिए कोयले की कमी के चलते बंद यूनिटों को शुरू करने और अन्य सभी यूनिटों को पूरी क्षमता पर चलाया जा रहा है।
कहां से कितनी बिजली की उपलब्धता
- केंद्रीय सेक्टर – 8000 मेगावाट
- राज्य के अंदर
- निजी क्षेत्र – 5500 मेगावाट
- को-जेनरेशन – 500 मेगावाट
- उत्पादन निगम – 4344 मेगावाट
- हाइड्रो – 600 मेगावाट