सरकारी बैंकों की मौजूदा समस्याओं हल इन बैंकों का निजीकरण नहीं है। बल्कि कुछ कारोबारी विशेषज्ञों के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बोर्ड को सक्षम बनाने की जरूरत है जो राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त माहौल में पूरी क्षमता से काम करने के लिए आजाद हो।
सरकारी बैंकों की फिलहाल है जरूरत
इन्फोसिस के पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) वी बालाकृष्णन ने सरकारी बैंकों की कार्यप्रणाली और उनके निजीकरण की जरूरत पर चल रही बहस के बीच कहा कि ग्लोबल ट्रस्ट बैंक जब असफल हुआ था, तब वह एक निजी बैंक था।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही एक ऐसे देश में जहां बैंकिंग सुविधा से वंचित लोगों की एक विशाल आबादी है, आपको बैंकों की पहुंच बढ़ाने तथा सामाजिक लक्ष्य पूरा करने दोनों ही वजहों से सरकारी बैंकों की जरूरत है।
बालाकृष्णन ने कहा कि भारत में बचत की दर बहुत ऊंची है और सरकारी बैंक बचत कर्ताओं को जरूरी सुरक्षा तंत्र तथा सुविधा उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने कहा कि बैंक्स ब्यूरो बोर्ड को सीईओ का चुनाव करने में, उन्हें दिए जाने वाल वेतन और भत्तों को तय करने में, उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में और बोर्ड के स्वतंत्र सदस्यों को नियुक्त करने में प्रभावी बनाया जाना चाहिए।
बालाकृष्णन ने खास तौर से कहा कि बैंकों को राजनीतिक हस्तक्षेप से पूरी तरह मुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंतत: समुचित संस्थागत प्रणाली, सख्त नियामकीय व्यवस्था और नियामकीय निगरानी से सरकारी बैंकों की सफलता तय होगी।
निजीकरण के भी हैं समर्थक
इन्फोसिस के ही एक अन्य पूर्व सीएफओ टीवी मोहनदास पई ने हालांकि नीति आयोग के पूर्व वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया से सहमति जताई, जिन्होंने एसबीआई को छोड़कर अन्य सरकारी बैंकों के निजीकरण की वकालत की है। पई ने कहा कि हां, मैं पनगढ़िया के साथ सहमत हूं। सरकारी बैंकों को संचालन की आजादी चाहिए। अभी की समस्या है मालिक, जो उन्हें पूरी क्षमता से काम नहीं करने देता।
दक्ष और फुर्तीली संरचना की जरूरत
एक बड़े सरकारी बैंक के एक सेवानिवृत्त चेयरमैन तथा एमडी ने सुझाव दिया कि सरकारी बैंकों के बोर्डों की ताकत बढ़ाई जानी चाहिए और उन्हें इस सेक्टर की कार्यप्रणाली में बड़ा सुधार करने के लिए नेतृत्व का चयन करने तथा अच्छे मानव संसाधन को नियुक्त करने की आजादी मिलनी चहिए।
उन्होंने कहा कि तेजी से बदल रही दुनिया में सरकारी बैंकों को अनेक तकनीक अपनाने होंगे और उन्हें अपनी संरचना को तेज और फुर्तीला बनाना होगा। उन्होंने कहा कि बोर्ड को सशक्त करने की जरूरत है, क्योंकि उसका समय बैंक के साथ अधिक गुजरता है। उन्हें नेतृत्व और रणनीति पर फैसला करने की आजादी दी जानी चाहिए।
मंत्रालय द्वारा लिया जाने वाला साक्षात्कार काफी नहीं
उन्होंने कहा कि बोर्ड को सशक्त करने, सही परंपरा, आपदा प्रबंधन प्रक्रिया, निगरानी और सही समाधान अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बोर्ड को नेतृत्व (चेयरमैन, कार्यकारी निदेशक) तय करना चाहिए, उसे यह तय करना चाहिए कि कैसे नियुक्ति हो, कौन-कौन से लोग वहां होने चाहिएं। फैसला उन्हें लेने चाहिए, न कि मंत्रालय आपको हर वक्त निर्देश दे।
पूर्व अधिकारी ने कहा कि आज वित्त मंत्रालय अगले तीन साल तक बैंक के प्रमुख को नियुक्त करने के लिए 45 मिनट का साक्षात्कार लेता है। कुछ लोग बात करने में कुशल होते हैं और संभव है कि वे काम करने में कुशल न हों। आप यह एक छोटे से साक्षात्कार में तय नहीं कर सकते हैं।