ज्योतिष शास्त्र में राहु की बड़ी अहमियत है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है एक सम्पूर्ण ग्रह न होकर भी इसे ग्रह का दर्जा प्राप्त है। यह कुंडली में किसी न किसी ग्रह के साथ रहता है। केतू की तरह राहु को भी पाप और क्रूर ग्रह के रूप में जाना जाता है। जिस जातक की कुंडली में यह होता है वह कठोर वाणी वाले होते हैं।
ऐसे लोग जुआ खेलना, बुरे कर्म करना, त्वचा रोग के शिकार और धार्मिक यात्रां करते हैं। किसी जातक की कुंडली में राहु जिस राशि में होता है, उसके स्वामी अथवा भाव के हिसाब से फल देता है।
ज्योतिष में राहु ग्रह का अपना कोई स्थान नहीं होता है। अगर यह कमजोर स्थान पर है या किसी दूसरे ग्रह के प्रभाव से ग्रस्त है तो उसी के अनुसार फल देता है। राहु के लिए ज्योतिष में कोर्इ चिह्न भी नहीं है। मगर इतना जरूर है कि यह ग्रह मिथुन राशि में उच्च का होता है और धनु राशि में नीच का होता है। राहु को 27 में से आद्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्रों का स्वामी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु जिस जातक की कुंडली में उच्च स्थान का होता है वह देखने में सुंदर और आकर्षक होता है। इस तरह के जातक रोमांच से कभी पीछे नहीं हटते और जोखिम लेने वाले होते हैं। समाज में ऐसे व्यक्ति प्रभावशाली होते हैं और उनकी काफी इज्जत होती है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि राहु के फल और प्रभाव लग्न में मौजूद राशि पर निर्भर करते हैं। माना जाता है कि उच्च स्थान के राहु की वजह से जातक की शादीशुदा जिंदगी में उथल-पुथल बनी रहती है।
जैसा कि हम जान चुके हैं कुंडली में राहु अपनी स्थिति के मुताबिक फल देता है। उच्च स्थान पर बैठे राहु के प्रभाव से जातक रंक से राजा हो जाता है। उसके पास नाम, शौहरत, पैसा और आध्यात्म सबकुछ होता है। इसके विपरीत नीच स्थान पर बैठा राहु राजा को रंक बना सकता है। ऐसा शख्स न केवल धर्म के रास्ते से हट जाता है, बल्कि गबन और धोखाधड़ी के काम भी करने लगता है। आइए जानते हैं कुंडली में किन भावों में बैठा राहु देता है शुभ फल :
– राहु अगर आठवें भाव में हो और केंद्र में गुरु ग्रह होता है, तो जातक की कुंडली में अष्टलक्ष्मी योग बनता है। इस योग में राहु अपना पाप पूर्ण स्वभाव छोड़कर गुरु के प्रभाव से शुभ फल देने लगता है। ऐसे व्यक्ति के ऊपर लक्ष्मी जी की अपार कृपा रहती है। वह शांत और धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। उन्हें यश और मान-सम्मान भी मिलता है।
– कुंडली के राहु के अच्छे स्थान के फलस्वरूप लग्न कारक योग भी बनता है। इस योग वाले जातक को राहु की अशुभता का सामना नहीं करना पड़ता है। इनके लिए राहु शुभ फल देने वाला होता है। इनकी आर्थिक स्थिति और सेहत अच्छी रहती है। दुर्घटना की आशंका कम रहती है और यह सुखी जीवन जीते हैं। यह योग मेष, वृष और कर्क लग्न वालों की कुंडली में तब बनता है जब राहु नौवें अथवा दसवें भाव में नहीं होता है।
– कुंडली में राहु की स्थिति के फलस्वरूप एक और शुभ योग बनता है परिभाषा योग। इस योग के प्रभाव से जातक राहु के कोप से मुक्त रहता है। यह योग व्यक्ति को आर्थिक लाभ देता है, सेहत अच्छी रखता है और उनके काम आसानी से बन जाते हैं। यह योग जन्मपत्री में तब बनता है जब राहु लग्न में हो या तीसरे, छठे या 11वें भाव में हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो।
अपराजिता श्रीवास्तव
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