टोक्यो ओलंपिक में ज्यादातर पदक महिलाएं ही देश में ला रही हैं। वहीं भारतीय महिला हाॅकी टीम ने भी देश को उसका महिला हॉकी में पहला ब्रॉन्ज़ मेडल हासिल करने का मौका होगा । वहीं ओलंपिक में हाॅकी की पुरुष टीम ने पहले ही ब्राॅन्ज मेडल अपने नाम कर लिया है। टीम ने 41 साल के मेडल के सूखे को खत्म किया है। दरअसल 41 सालों से ओलंपिक में भारत को हाॅकी में एक भी मेडल नहीं मिला था जबकि हाॅकी देश का राष्ट्रीय खेल है। वहीं अब महिला हाॅकी टीम ब्रॉन्ज़ मेडल मैच के लिए बिल्कुल तैयार है।
रानी की हॉकी स्टिक की हुई पूजा
ऐसे में भारतीय महिला टीम की कप्तान रानी रामपाल ने जिस हॉकी स्टिक से ओलंपिक में खेल कर देश का नाम रोशन किया है, अब उसी हॉकी स्टिक की पूजा की जा रही है। बता दे हरियाणा के कुरुक्षेत्र की रहने वाली रानी के परिवार वालों ने देश की महिला हॉकी टीम की क्वार्टर फाइनल की जीत पर पूजा की थी । उन्होंने पूजा के दौरान रानी की हॉकी स्टिक की भी पूजा की। वो कहते हैं न कि अपने प्रोफेशन और उससे जुड़ी चीजों की पूजा करने से इंसान सफल होता है। शायद यही वजह रही कि उनके परिवार वालों ने उनकी ओलंपिक में इस्तेमाल की गई हॉकी स्टिक की पूजा की।
टूटी हॉकी स्टिक से खेल कर बनाया करियर
रानी ने बताया कि वे कैसे गरीबी को मात दे कर इस मुकाम तक पहुंची हैं। रानी ने टूटी हाॅकी स्टिक से खेल कर अपना रास्ता बनाया। अब वे अपनी टीम के साथ ओलंपिक के हाॅकी का ब्रॉन्ज़ मेडल मैच खेलने को बिल्कुल तैयार हैं। रानी की मां ने पूजा की और टीम के सभी सदस्यों को मेडल जीतने के लिए शुभकामनाएं भी दीं।
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पिता तांगा चला कर कमाते थे दिन का 80 रुपये
रानी ने पहले एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता तांगा चला कर परिवार का पेट पालते थे। वहीं माता घर-घर जा कर काम करती थी। पिता की दिन की कमाई 80 रुपए हुआ करती थी। उनका एक भाई किराना स्टोर मे वहीं दूसरा भाई बढ़ई की दुकान पर काम करता हैं। सब मिल कर घर का खर्च चलाते थे। रानी दूसरे की टूटी हॉकी स्टिक से हॉकी का खेल सीखीं और इस मुकाम तक पहुंची हैं। खास बात तो ये है कि घर में दूध नहीं होता था तो थोड़े से दूध में पानी मिल कर पीती थीं तब खेल की प्रेक्टिस करती थीं।
ऋषभ वर्मा