रिजर्व बैंक (RBI) के रेट-सेटिंग पैनल के भीतर नीतिगत ब्याज दरों में कटौती के सुर उठ रहे हैं। इस पैनल के मेंबर जयंत आर वर्मा लंबे वक्त से ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट कटौती की वकालत कर रहे हैं। अब उन्हें एक एक्सटर्नल मेंबर आशिमा गोयल का भी साथ मिल गया है।
6 सदस्यों की है आरबीआई की कमेटी
आज रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) के चार सदस्यों ने रेपो रेट (Repo Rate) में कोई बदलाव न करने के पक्ष में वोट दिया। वहीं, दो सदस्यों- आशिमा और जयंत का मत इसके विपरात था। उनका मानना था कि अब करीब डेढ़ बाद ब्याज में कटौती करने की जरूरत है। 6 सदस्यों वाली आरबीआई की कमेटी रेट कट पर बहुमत के आधार पर फैसला लेती है।
केंद्रीय बैंक के मौद्रिक नीति बयान के मुताबिक, ‘डॉक्टर शशांक भिडे, डॉक्टर राजीव रंजन, डॉक्टर माइकल देबब्रत पात्रा और श्री शशिकांत दास ने पॉलिसी रेपो रेट को 6.5 फीसदी पर जस का तस रखने के पक्ष में वोट दिया। वहीं, डॉक्टर आशिमा गोयल और प्रोफेसर जयंत आर वर्मा ने पॉलिसी रेपो रेट को 25 बेसिस प्वाइंट घटाने के लिए वोटिंग की।’
ब्याज दरों में कटौती की वकालत
आशिमा, जयंत और शशांक MPC के एक्सटर्नल मेंबर हैं। वहीं, रंजन, पात्रा और दास आरबीआई के अधिकारी हैं। जयंत वर्मा ने इससे पहले भी दिसंबर 2023 और फरवरी 2024 की MPC मीटिंग में बेंचमार्क इंटरेस्ट रेट को 25 बेसिस प्वाइंट घटाने की मांग की थी। इस बार आशिमा गोयल ने भी उनका साथ दिया और रेट कट के लिए वोटिंग की।
RBI कमेटी के दो मेंबर ने ऐसे वक्त में रेट कट की वकालत की है, जब स्विटजरलैंड, स्वीडन, कनाडा और यूरोपीय क्षेत्र की कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने पहले ही 2024 के दौरान ब्याज दरों में रियायत देने का सिलसिला शुरू कर दिया है। दूसरी ओर अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें कम हो गई हैं, जो पहले अधिक थीं।
आरबीआई गवर्नर ने क्या कहा?
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मॉनिटरी पॉलिसी का फैसला सुनाते कहा कि एक राय यह है कि मौद्रिक नीति के मामले में बैंक का सिद्धांत ही यही है कि ‘फॉलो द फेड’ यानी अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के फैसलों के हिसाब से चलो। लेकिन, असल में ऐसा है नहीं।
आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘हम बेशक नजर रखते हैं कि बाकी दुनिया और खासकर विकसित बाजारों में क्या हो रहा है। लेकिन, हम स्थानीय मौसम और पिच की स्थितियों के अनुसार खेल खेलते हैं। अगर आसान शब्दों में कहूं, तो हम विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मौद्रिक नीति का भारतीय बाजारों पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार कर लेते हैं। लेकिन, हमारा फैसला मुख्य तौर पर घरेलू विकास दर और मुद्रास्फीति की स्थिति जैसी चीजों से तय होता है।’