अभी-अभी: CM योगी को लगा बड़ा झटका, सरकार के एक मंत्री को देना होगा इस्तीफा....

अभी-अभी: CM योगी को लगा बड़ा झटका, सरकार के एक मंत्री को देना होगा इस्तीफा….

योगी आदित्यनाथ सरकार के एक मंत्री को अब इस्तीफा देना होगा, क्योंकि विधान परिषद की चार सीटों पर ही उपचुनाव होने जा रहा है। दो रिक्त सीटें ऐसी हैं जिनका कार्यकाल एक साल से कम बचा है। चुनाव आयोग इन सीटों के लिए उपचुनाव नहीं कराएगा। ऐसे में ठाकुर जयवीर सिंह व अंबिका चौधरी की रिक्त सीटें फिलहाल योगी सरकार के काम नहीं आएंगी।अभी-अभी: CM योगी को लगा बड़ा झटका, सरकार के एक मंत्री को देना होगा इस्तीफा....पेशी के लिए राम रहीम पंचकूला हुए रवाना, सेक्शुअल हैरेसमेंट के केस में आज होगा फैसला 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा, राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार स्वतंत्रदेव सिंह व राज्यमंत्री मोहसिन रजा इस समय किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। योगी सरकार ने 19 मार्च 2017 को शपथ ली थी। ऐसे में इन पांचों का शपथ ग्रहण के छह महीने के भीतर यानी 18 सितंबर 2017 तक विधानसभा या विधान परिषद में से किसी एक सदन का सदस्य बनना जरूरी है।

इसके लिए भाजपा के रणनीतिकारों ने विधान परिषद की छह सीटें खाली करा लीं, लेकिन उन्होंने यह नहीं देखा कि इनमें से दो का कार्यकाल एक साल से कम बचा है। बसपा के जयवीर सिंह व सपा छोड़ बसपा में गए अंबिका चौधरी का कार्यकाल पांच मई 2018 तक ही था।

विधान परिषद में जयवीर सिंह की सीट की रिक्ति 29 जुलाई 2017 को घोषित की गई है, जबकि अंबिका चौधरी की सीट की रिक्ति की अधिसूचना नौ अगस्त 2017 को हुई है। ऐसे में चुनाव आयोग इन दोनों ही सीटों पर उपचुनाव नहीं कराएगा।

क्या कहता है लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 151 के अनुसार किसी भी सीट पर रिक्ति होने की तारीख से छह महीने के अंदर उपचुनाव कराया जाएगा। लेकिन यदि किसी सदस्य का शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम है तो उपचुनाव नहीं कराया जाएगा। जयवीर सिंह के मामले में रिक्ति घोषित होने के बाद उनका शेष कार्यकाल केवल नौ महीने पांच दिन बचा है। जबकि अंबिका चौधरी की सीट का कार्यकाल नौ महीने से भी कम बचा है। इसलिए आयोग ने यहां चुनाव कराने की घोषणा नहीं की है।

जयवीर के साथ इस्तीफा देने वालों की सीटों पर उपचुनाव की घोषणा
चुनाव आयोग ने ठाकुर जयवीर सिंह के साथ इस्तीफा देने वाले सपा के यशवंत व बुक्कल नवाब की सीटों पर उपचुनाव की घोषणा कर दी है। इन तीनों ने ही 29 जुलाई को विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दिया था।

चूंकि यशवंत व बुक्कल नवाब का कार्यकाल करीब पांच साल बचा था, इसलिए इन दोनों की सीट के लिए उपचुनाव घोषित हो गया है। डॉ. सरोजिनी अग्रवाल ने चार अगस्त व अशोक वाजपेयी ने नौ अगस्त को इस्तीफा दिया था। इन दोनों का ही कार्यकाल 30 जनवरी 2021 तक था। इसलिए इनकी सीटों के उपचुनाव की भी घोषणा हो गई।

मोहसिन रजा व स्वतंत्रदेव में से एक की बचेगी कुर्सी
विधान परिषद की चार रिक्त सीटों के उपचुनाव की घोषणा के साथ ही अब योगी मंत्रिमंडल से एक मंत्री को इस्तीफा देना होगा। ऐसे में परिवहन, प्रोटोकॉल व ऊर्जा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वतंत्रदेव सिंह एवं मुस्लिम वक्फ, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री मोहसिन रजा में से किसी एक को इस्तीफा देना पड़ सकता है। इस्तीफा कौन देगा, यह भाजपा संगठन को तय करना है।

क्या कहती हैं मुख्य निर्वाचन अधिकारी
इस पर प्रभारी मुख्य निर्वाचन अधिकारी अमृता सोनी का कहना है कि हमने विधान परिषद की सभी छह रिक्त सीटों की अधिसूचना भारत निर्वाचन आयोग को भेज दी थी। आयोग ने केवल चार सीटों के उपचुनाव की ही घोषणा की है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में एक साल से कम के कार्यकाल वाली सीटों पर उपचुनाव कराने की बाध्यता नहीं होती है। हालांकि इस पर निर्णय चुनाव आयोग को ही करना होता है।

सीएम व दोनों डिप्टी सीएम बनेंगे विधान परिषद सदस्य
इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तथा डॉ. दिनेश शर्मा के अब उच्च सदन विधान परिषद के जरिये विधान मंडल सदस्य बनने के आसार बढ़ गए हैं। बावजूद इसके भाजपा की मुसीबत कम नहीं हुई है। कारण, भाजपा को इन तीनों के अलावा दो राज्यमंत्रियों स्वतंत्र देव सिंह व मोहसिन रजा की भी कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए 18 सितंबर से पहले उन्हें विधान मंडल का सदस्य बनाना जरूरी है जबकि नियमों की बाध्यता के चलते इनमें सिर्फ चार चेहरे ही परिषद में पहुंच पाएंगे।

परिषद में हालांकि सात सीटें खाली हैं, जिनमें एक स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र कोटे की सीट पर उपचुनाव की अभी घोषणा नहीं हुई है। दो रिक्त सीटों पर नियमों के चलते उपचुनाव नहीं होगा।

चुनाव आयोग ने बृहस्पतिवार को परिषद की चार खाली सीटों पर 15 सितंबर को उपचुनाव कराने का एलान किया है। पूरी चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने की तारीख 18 सितंबर तय की गई है। जाहिर है कि भाजपा के रणनीतिकार अब अगर किसी से त्यागपत्र दिलाकर अपने किसी मंत्री का पद बरकरार रखने की कोशिश भी करें, तो यह संभव नहीं है।

कारण, त्यागपत्र से खाली होने वाली सीट पर इतनी जल्दी अधिसूचना जारी होकर 18 सितंबर से पहले चुनाव संभव नहीं है। ऐसी पेचीदगी सामने आने से भाजपा के रणनीतिकारों की अनुभवहीनता उजागर हो गई है। साथ ही साबित हो गया है कि पूरी प्रक्रिया समझे बिना ही सीटें खाली करा ली गईं। बदायूं स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र की खाली सीट पर भी 18 सितंबर से पहले किसी का चुना जाना संभव नहीं है।

विधानसभा का भी दरवाजा बंद

हालांकि विधानसभा में भी एक सीट खाली है। यह सीट कानपुर के सिकंदरा से भाजपा विधायक मथुरा पाल के निधन से रिक्त हुई है, पर इसके उपचुनाव की अभी तक अधिसूचना जारी नहीं हुई है।

विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने में अमूमन लगने वाले एक महीने के वक्त और राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए मुख्यमंत्री, दोनों उप मुख्यमंत्रियों और दोनों राज्यमंत्रियों में से किसी के भीइस सीट से चुनाव लड़कर विधानमंडल में पहुंचने की संभावना खत्म हो गई है। फिर, भाजपा यहां से किसी को लड़ाकर कानपुर से आगरा के बीच बड़ी संख्या में मौजूद इस बिरादरी को नाराज नहीं करना चाहेगी। साफ है कि भाजपा के रणनीतिकारों के लिए मुख्यमंत्री योगी सहित दो उप मुख्यमंत्रियों और दो राज्यमंत्रियों का 18 सितंबर तक विधानमंडल पहुंचाना काफी मुश्किल है।

क्या हैं विकल्प
मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए भाजपा के पास सीमित विकल्प बचे हैं। पहला, वह इनमें से किसी को दुबारा मंत्री बनाने का आश्वासन देकर फिलहाल त्यागपत्र दिलवाए और आगे उसके विधानमंडल की सदस्यता का प्रबंध करके फिर मंत्रिपरिषद में ले।

दूसरा, किसी एक की कोई नई भूमिका तय कर उसका समायोजन करे। जैसे केशव मौर्य को उत्तर प्रदेश से हटाकर केंद्रीय मंत्रिपरिषद में प्रभावी भूमिका में समायोजित करे और फिर यहां चार लोगों का समायोजन करा ले। इसके अलावा एक विकल्प यह भी है कि किसी से एक दिन के लिए त्यागपत्र दिलाकर अगले दिन फिर शपथ दिलाकर काम चलाया जाए।

हालांकि एक दिन त्यागपत्र और उसके अगले दिन शपथ को कुछ मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने अच्छा नहीं माना है। संविधान विशेषज्ञ डॉ. सुभाष कश्यप के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय राजनीतिक दलों से ऐसा न करने की अपेक्षा कर चुका है। कह चुका है कि त्यागपत्र दिलाकर फिर संबंधित मंत्री की नियुक्ति अनैतिक व औचित्य के विरुद्ध है। बावजूद इसके इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं है।

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