भारत में जहां जाओगे समोसा पाओगे, वो बात अलग है कि समोसे में कहीं आलू मिलेगा तो कहीं स्टफिंग के रूप में कुछ और। समोसे के कारोबार से किंग बने ‘समोसा सिंह’ के निधि और शेखर का यह स्टार्टअप इतनी जल्दी बुलंदियों पर चढ़ जाएगा इन्होंने खुद नहीं सोचा था।  मार्केटिंग की सही रणनीति और काम करने से जज्बे ने दोनों के आगे खूब मौके दिए और उन्होंने मौके को हाथ से जाने नहीं दिया, यही कारण है कि उनकी समोसा खिलाने वाली कंपनी कारपोरेट कंपनी बन गई जिसमें 19 करोड़ का निवेश भी हुआ। आइए जानते हैं हैदराबाद, बंगलुरु के बाद अन्य जगह इस अनोखे समोसे को परोसने वाले दो लोगों की कहानी।
मार्केटिंग की सही रणनीति और काम करने से जज्बे ने दोनों के आगे खूब मौके दिए और उन्होंने मौके को हाथ से जाने नहीं दिया, यही कारण है कि उनकी समोसा खिलाने वाली कंपनी कारपोरेट कंपनी बन गई जिसमें 19 करोड़ का निवेश भी हुआ। आइए जानते हैं हैदराबाद, बंगलुरु के बाद अन्य जगह इस अनोखे समोसे को परोसने वाले दो लोगों की कहानी।
कैसे साथ आए निधि और शिखर
निधि सिंह और शिखर सिंह दोनों कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में बायोटेक्नोलॉजी के विद्यार्थी रहे हैं। दोनों की मुलाकात उसी विवि में हुई। तब निधि को लगता था कि उनका इंटरेस्ट बायो टेक्नोलॉजी से ज्यादा मार्केटिंग और सेल्स में है। तब उन्होंने इस ओर अपना ध्यान लगाया। आगे सीखने के लिए 2007 में उन्होंने स्नातक करने के बाद अमेरिका की एक फार्मा कंपनी जो दिल्ली में थी उसकी बिजनेस डेवलेपमेंट के रूप में नौकरी शुरू की। शिखर को बायोटेक पसंद था तो वह हैदराबाद के स्कूल आफ लाइफ साइंसेज में पढ़ाई करने चले गए। शिखर को भारतीय स्नैक्स का ख्याल वहीं आया और उन्होंने निधि से इस बारे में बात की। निधि को उन्होंने बताया कि साफ–सफाई  के साथ कहां कोई स्नैक्स परोस पाता है और समोसा तो सबसे खास है जो पूरे देश में खाया जाता है। यही सोचकर दोनों समोसा सिंह के लिए आगे बढ़े। दोनों ने समोसे की कीमतों को कम रखा है। 50 रुपए से भी कम रुपए में आपको आलू वाले दो समोसे और चिकन मखनी समोसे के दो पीस भी सौ रुपए से कम में मिल जाएंगे।
काफी मुश्किलें उठाकर पाया बिजनेस
शुरुआत में दोनों को बिजनेस पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। निधि और शिखर दोनों ने स्टार्टअप के लिए नौकरी छोड़ दी। यह उनका सपना था तो इसके लिए उन्होंने जी जान लगा डाला। निधि की सेल्स और मार्केटिंग में पकड़ होने की वजह से उन्होेंने कापोर्रेट्स तक पहुंच बनाने की ठानी। जर्मन इंजीनियरिंग की एक कंपनी ने उनको एक दिन में 8,000 समोसे तैयार करने को कहा। निधि और शिखर ने समय मांगा क्योंकि इसके लिए कर्मचारियों और बड़े किचन की जरूरत थी। उनको ज्यादा  ब्याज पर रिस्क कैपिटल मिल सकता था लेकिन तब उन्होंने 2016 में अपना फ्लैट बेचकर एख बड़ा रसोईघर बनाया। यह फ्लैट बंगलुरु के उपनगर येलहांका में था। इसके बाद उन्होंने दोबारा से उस कारपोरेट आफिस से संपर्क कर बताया कि 8,000 समोसे दो हफ्ते में तैयार करके देंगे, जबकि उन्होंने  उन समोसे को कैसे सुरक्षित रख सकेंगे इस बारे में कोई रिसर्च तक नहीं की थी। उन्होंने पैसों से वोकनस्टोव फूडवर्क्स प्राइवेट  लिमिटेड का काम भी शुरू किया।
कंपनी ने निवेश भी जुटाया
स्टार्टअप समोसा सिंह ने सीरीज ए फंडिंग में 2.7 मिलियन डॉलर यानी करीब 19 करोड़ रुपए का निवेश जुटाने में सफलता पाई। यह निवेश शी कैपिटल के नेतृत्व में हुआ है, जबकि इसमें फायरसाइड वेंचर्स और अन्य ने भी हिस्सा लिया था।
बेंगलुरु की इस कंपनी में जापान आधारित एईटी फंड और एएल ट्रस्ट ने भी निवेश में हिस्सा लिया। कंपनी इससे उत्पादन और कई शहरों में कारोबार को लेकर जाएगी। कंपनी तेज डिलीवरी भी देगी। समोसा सिंह एक दिन में 25 हजार आर्डर सर्व करती है। इसे और ज्यादा बढ़ाया जा रहा है। देश में बड़े मल्टीप्लेक्स के साथ भी समोसा सिंह ने समझौता किया है। एयरपोर्ट पर भी यह बिकता है।
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