संध्या एक रेड-लाइट एरिया में पैदा हुई लड़की है | रेड-लाइट एरिया यानी ऐसा मोहल्ला, जहां जिस्म का धंधा होता है, आम लोगों के लिए एक ‘गन्दी जगह’. इतना भी काफी था हमारे समाज द्वारा उसे ‘अछूत’ बनाने के लिए. संध्या की मां के मुंबई के सबसे पुराने रेड-लाइट एरिया, कमाथीपुरा में रहती थी | संध्या काली है, इस बात ने तो उसे लोगों के लिए और भी घृणित बना दिया. उसे बदसूरत कहा गया, बचपन में बच्चे उसे ‘काला कौवा’ कह कर चिढ़ाते थे, क्योंकि हमारे समाज में ‘सुन्दर’ की परिभाषा ही ‘Fair & Lovely’ होना है|

संध्या का बचपन में कोई नहीं था दोस्त..
10 साल की होने तक स्कूल में उसके रंग और बैकग्राउंड के कारण उसका कोई दोस्त नहीं था, वो अकेली ही रहती थी. इस बात का फायदा उठा कर स्कूल के एक टीचर ने उसका रेप किया.
पर ये सबकुछ उसे आगे बढ़ने से रोक नहीं सका. हालात तो जन्म से बुरे थे ही, बस एक चीज़ संध्या के हाथ में थी, और वो था आगे बढ़ने का जूनून | आज थिएटर के ज़रिये संध्या को अपनी पहचान मिली और अब वो उसे पीछे खींचते रहने वाले समाज को ठेंगा दिखाकर आगे बढ़ती जा रही है.
Humans of Bombay संध्या की कहानी को दुनिया के सामने लेकर आया है. संध्या की कहानी अपने आप में एक मिसाल है |
संध्या अपने रंग और बैकग्राउंड को लेकर अकेले रहने पर मजबूर थी, उसके टीचर ने उसका रेप किया और बड़े होने तक वो समझ तक नहीं पायी थी कि जो उसके साथ हुआ उसे रेप कहते है | एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर पांच में से दो बच्चों के साथ बचपन में यौन शोषण होता है |
हमारी शिक्षा व्यवस्था में सेक्स एजुकेशन को कोई जगह नहीं है, घरों में भी बच्चों को ‘Good Touch’ और ‘Bad Touch’ के बीच अंतर नहीं समझाया जाता क्योंकि सेक्स के बारे में बात करना यहां एक Taboo है | कितनी अजीब बात है कि हम सिर्फ़ इस मानसिकता के चलते बच्चों का रेप होने देते हैं, पर उन्हें ये सब समझाने से झिझकते है|
कमाथीपुरा के लोग मानते है बेटी..
संध्या आज भी कमाथीपुरा के रेड लाइट एरिया में ही रहती है, जबकि उसके मां-बाप केरल लौट चुके है | संध्या कहती है कि ये मेरा घर है, यहां की औरतें एक इंसान के तौर पर उन सभी लोगों से कहीं ज़्यादा खूबसूरत हैं, जो उसे ताने देते रहे. जिस जगह को लोग ‘गन्दी जगह’ कहते हैं, वहां कभी उसे किसी ने गलत तरह से नहीं छुआ, कभी उसके साथ गलत नहीं किया है |

अब संध्या “क्रांति” नाम के एक स्ट्रीट प्ले ग्रुप का हिस्सा बन चुकी है, जो सेक्स, महावारी जैसे अनछुए मुद्दों के बारे में लोगों को शिक्षित और जागरुक करता है| आज संध्या कमाथीपुरा की गलियों से उठकर अमेरिका तक पहुंच गयी है | और अपना खुद का नाम कमा चुकी है | संध्या की कहानी हर उस लड़की की कहानी है, जिसे अपने रंग के कारण इस इज्जतदार समाज के लोगो के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है |
हर कोई यहां ज़्यादा गोरा होना चाहता है…
भारत में लोगों की त्वचा का प्राकृतिक रंग गोरा नहीं होता, फिर भी यहां गोरेपन को लेकर ऐसा जुनून है कि हज़ारों कॉस्मेटिक की कंपनियां सिर्फ लोगों को गोरा बना देने का वादा कर के यहां करोड़ों का कारोबार कर रही है | कहीं न कहीं हर इंसान यहां जैसा भी है, उससे ज़्यादा गोरा होना चाहता है. इसके पीछे सिर्फ ये मानसिकता है कि ‘गोरा’ सुन्दर होता है, और ‘काला’ गन्दा होता है. यहाँ तक बच्चे भी यही समझते हैं, इसलिए उनके लिए संध्या ‘गन्दी’ थी|
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