चैत्र मास की अभी नवरात्रि चल रही है। माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा घर-घर में हो रही है। लेकिन दुर्गा पूजा के साथ भगवान कार्तिकेय की आराधना का पर्व भी इसी समय पड़ रहा है। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी छठे दिन एक व्रत की परंपरा है। इस दिन महादेव के पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा लोग करते हैं और व्रत रखते हैं।

कब है शुभ मुहूर्त
भगवान कार्तिकेय को स्कंद के नाम से भी जानते हैं इसलिए चैत्र मास की षष्ठी को स्कंद षष्ठी भी कहते हैं। यह संतान षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है और लोग संतान की प्राप्ति के लिए षष्ठी का व्रत करते हैं। इस बार यह व्रत सात अप्रैल को रखा जाएगा। वैसे चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि छह अप्रैल से शुरू हो रही है। यह शाम को 6 बजकर 4 मिनट पर शुरू होगा और समापन 7 अप्रैल को शाम को 8:32 हो जाएगा। हालांकि उदया तिथि में ही व्रत शुरू होता है इसलिए व्रत 7 अप्रैल को सुबह रखा जाएगा।
व्रत की विधि
स्कंद षष्ठी का व्रत सुबह करने के लिए सुबह सबसे पहले उठकर स्नान करें और भगवान कार्तिकेय का ध्यान करें। फिर व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करें। इसके बाद भगवान कार्तिकेय की पूजा करें और उनको जल चढ़ाएं। फूल, प्रसाद, रोली लगाएं। धूप और दीप दिखाएं और कार्तिकेय के मंत्र देव सेनापते स्कंद का उच्चारण करें। संतान से जुड़ी समस्या के लिए और करियर की समस्या पर भी यह व्रत काफी फायदेमंद है। कार्तिकेय को मोर का पंख जरूर चढ़ाना चाहिए। शिव परिवार के मंदिर में नारियल भी चढ़ाएं।
GB Singh
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