हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया को हमारे घर में शुभ मना किया है। हिंदू पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया अक्षय तृतीया वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है यह पर्व तृतीया तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक कथा के मुताबिक इस दिन जो भी कार्य किए जाते हैं उन्हें शुभ फल प्राप्त होता है। स्थिति को बेहद शुभ माना जाता है और इस दिन दान पूर्ण करने से उसका फल भी अनुवांशिक मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सोना खरीदने से पीढ़ियों में के साथ बढ़ता जाता है। बता दें कि इस बार अक्षय तृतीया 14 मई को मनाई जाएगी।
कैसे किया जाता है इसका व्रत
अक्षय तृतीया को पूजा विधान का महत्व है। इस दिन महिलाएं व्रत धारण करती हैं। व्रत धारण करने से परिवार में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है। हर पूजा-अर्चना से पहले सुबह शुभ मुहूर्त में स्नान करना चाहिए और भगवान विष्णु साथ में माता लक्ष्मी की प्रतिमा को अक्षत चढ़ाकर उनकी आराधना करनी चाहिए। माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को शांत भाव से श्वेत कमल और वेद गुलाब के पुष्प अर्पित करें साथ में धूप अगरबत्ती और चंदन के साथ उनकी पूजा आराधना करें।
क्या है शुभ मुहूर्त
इस बार 14 मई को अक्षय तृतीया पर्व मनाने का शुभ मुहूर्त शुभम 5:38 पर शुरू होगा और 15 मई की सुबह 7:59 तक यह शुभ मुहूर्त रहेगा।
अक्षय तृतीया से संबंधित है यह पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री कृष्ण और सुदामा से संबंधित कथा प्रचलित है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अपने बचपन के मित्र सुदामा से अति प्रेम करते थे। अक्षय तृतीया के दिन है सुदामा अपने परम प्रिय मित्र श्री कृष्ण से मिलने उनके द्वार गए थे जिससे उनके आर्थिक सहायता हो सके। हालांकि सुदामा अपने मित्र से सहायता मांगने के लिए नहीं जा रहे थे लेकिन उनकी पत्नी ने उन पर जोर बनाया और सुदामा को श्री कृष्ण से मिलने के लिए उनके दरबार भेजा। सुदामा नित्यस्वरूप केवल एक मुट्ठी भर चावल लेकर श्री कृष्ण से मिलने पहुंचे थे। लेकिन संकोच वश सुदामा श्री कृष्ण को चावल नहीं दे पा रहे थे लेकिन श्री कृष्ण भगवान सब कुछ जानते थे उन्होंने झट से सुदामा के हाथों से मुट्ठी भर चावल छीन लिए और उन्हें बड़े चाव से खा लिया। सुदामा श्री कृष्ण के अतिथि थे कृष्ण सुदामा का आदर सत्कार पूरे सम्मान के साथ दिया जिससे उनके सप्ताह से सुदामा बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन जिस कारण हेतु सुदामा की पत्नी ने उन्हें श्री कृष्ण के पास भेजा था वह बात कहने में सुदामा हिचकीचा रहे थे। वह बिना कुछ कहे वहां से चल पड़े जब सुदामा अपने घर पहुंचे तो दंग रह गए उनकी टूटी फूटी झोपड़ी आज महल में बदल गई थी। उनके बच्चे और पत्नी के जो वस्त्र से वह राजसी हो गए थे। सुदामा ने समझ लिया कि सारा गुस्सा किया हुआ है।
तब से ही अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाने लगा। अक्षय तृतीया को धन और संपदा से जोड़ा जाता है।