Travelogue: 2020 दिसंबर पहाड़ और पर्वत: यायावरी के कुछ और आयाम भाग १
6 दिसंबर
अगर पहाड़ आपको प्रिय हैं तो हल्द्वानी से पर्वत दिखते ही मन हुलसने लगेगा, हमें तो nostalgia हो आया। लगा कितने दिन लगा दिए इस बार!
और फिर भीमताल चढ़ने लगे। पहली बार ऑफ सीज़न में आए हैं सो इतने कम यात्री देखने को अनअभ्यस्त आँखों को सुकून मिला।
शाम के 5 बजने को थे, अभी भीमताल से मुक्तेश्वर पहुँचने में कुछ समय था। 5 साल में आज ये रास्ता काफी विकसित और प्रकाशमय हो गया था। फिर भी जो लोग यहाँ आये हैं उन्हें पहाड़ के संकरे मोड़ों का घुमावदार कटाव मालूम होगा, एक लापरवाही और गहरी खाई ! जगह जगह पहाड़ से प्राकृतिक झरने रिसते मिल जाएंगे, यही है शुध्ध्तम मिनरल वाटर। चुल्लू लगाइए और आराम से पीजिए।
अंधेरा गहरा रहा था। पतिदेव गूगल बाबा और फोन की मदद से धाना चूली तक मज़े मज़े में गाड़ी खींच लाए। बताते चलें इस रास्ते पर 1km पार करने में 3-4 मिनट आराम से लगा।
Camp Craft पहुंचना था हमें, मुक्तेश्वर से कुछ पहले ही।
गाड़ी पहुंची, मेज़बान लड़के खड़े थे एक डेड एंड पर। हमें परिचय देकर बहुत इत्मिनान से उन्होंने कुडकुड़ाती रात मे हमारा समान लादा और हमें अपने पीछे आने को कहा।
50 मीटर की सीधी चढ़ाई के बाद जो दृश्य दिखा वो न लिखा जा सकता है न उसकी तस्वीर उतर सकती है, उसे महसूसना होगा! पत्थर से कटे सीढ़ियों के बीच छोटी छोटी लाल झोपड़ियाँ, कई रंगों के झिलमिलाते बल्ब, हरी लाल पगदंडियाँ , टेंट, धीमा संगीत और गिरजे की घंटियों जैसी मीठी विंड चाइमस्! लगा धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है!
हम फ्रेश होने टेंट में आये तो मुँह खुला रह गया, साफ़ सुथरा बिस्तर, पानी गरम करने की केटली, जग, सोलर गीज़र, सब आधुनिक सुविधाओं से लैस टेंट में चप्पल ले जाना मना था,भीतर एक जोड़ी चप्पल थी। स्वच्छता के लिए ये जतन हमें बहुत अच्छा लगा।
हमारे लिए मेज़बान ने बोन फायर जला दी और मिला गरमा गरम चाय का प्याला! आग तापते हुए पता चला इन पहाड़ी लड़कों ने ये कैंप खुद ही बनाया और सजाया है केवल एक वेल्डिंग और चुनाई का काम छोड़कर सीढियाँ, फर्श बनाना और पूरा इंटीरियर और आर्किटेक्चर इन्हीं का है। हम तो हतप्रभ रह गए।
फिर स्वादिष्ट दाल मखनी, शाही पनीर के साथ पहाड़ी मिर्चों का स्वाद लिया, सच आनंद आ गया।
अब पहाड़ पर रात सांय सांय कर रही है, हाथ में दो दिन और हैं मुक्तेश्वर के लिए। फिलहाल आँखें बंद हो रही हैं, कल देखते हैं क्या क्या कर पाते हैं!
लेखिका: स्वाति श्रीवास्तव
फोटो: व्यक्तिगत
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