SWati’s TRAVELOGUE: 2020 दिसंबर पहाड़ और पर्वत: यायावरी के कुछ और आयाम २

Swati’s Travelogue:

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2020 दिसंबर पहाड़ और पर्वत: यायावरी के कुछ और आयाम २

7 दिसंबर, 2020 पहाड़ पर हमारी पहली सुबह थी। आदतन प्रातः 5.30 पर आँख खुल गई लेकिन ऐसी कड़कड़ाती ठंड में बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। किसी तरह 6 बजे तक इंतज़ार किया फिर नहीं रहा गया, बेटा जी अलख के साथ टेंट से बाहर निकले सामने हिमालय पर सूरज ने हलका हलका सोना बिखेरना शुरू ही किया था , आस पास कहीं पेड़ पर लंबी पूँछ वाली चिडिया सुरीला तान छेड़ रही थी।
हम कैंप के योग वाली ground में पहुंचे, एक सफ़ेद झबरीला कुत्ता वहाँ खेतों में घूम रहा था। बच्चों के खेलने की आवाज़ें इधर उधर से सुनाई दे रही थी। अपने नियमित योग के बाद हमने एक गरम चाय पी। सुबह के आलोक में हमारा ठौर स्पष्ट और सुंदर दिखाई दे रहा था। लगा सब जी भरकर आँखों में भर लूँ!
कुछ देर बाद दही के साथ आलू के परांठे जीम्हे, तृप्ति हो आई! सोलर गीज़र के पानी से नहाकर निकले तो एकदम तरो ताज़ा हो गए। हम सबने तय किया पहले भटेलिया मार्केट जाने का क्योंकि बिटिया ने जूतों वाला बैग घर पर ही छोड़ दिया था। बिना जूतों के अपने आज के गंतव्य ठकुर टॉप की ट्रैकिंग असंभव थी।
कृष्णा ने शाम को अपने ननिहाल की शादी में हमें आमंत्रित किया तो भूखे भिक्षुक की तरह हमने झट हाँ कर दी।
लेकिन सबसे पहले आज की शुरुआत करी गई बच्चों के 5 इन वन एडवेंचर गेम से। रस्सी पर चलने लटकने वाले इस खेल में कृष्णा ने ट्रेनिंग ली है और उनकी कुशल देखरेख में बच्चों ने डरते साहस दिखाते खूब मज़ा किया। बिटिया को करते देख कर लगा ये बंदरिया हमेशा से ही ये सब करती आई है। लड़कों ने भी अपने पापा के ‘डर के आगे जीत है’और गिर कर फिर चल देने वाले सबक अच्छे से याद किए थे।

करतब करते बच्चों को भूख लग आई सो पहाड़ी भट्ट की दाल और चावल खाया हमने, ये दाल स्वादिष्ट तो होती ही है आपको खूब गर्मी भी देती है।
आज की घुमाई के लिए सब तैयार थे।
रास्ते में हमारे साथियों ने सूपी गाँव, जहाँ हम ठहरे थे उसके छोर पर गाड़ी के बाहर दाहिनी ओर देखने को कहा। वो क्षण अदभुत था, हमारा एक हिस्सा मन अब भी वहीं रह गया है! सामने नंदा देवी की बर्फ़ीली रुपहली चोटियाँ फ़ैली थी, बेटे ने पूछा माँ ये पोस्टर है क्या? सच महादेव ने हरी भरी पहाड़ियों के पीछे चांदी के पर्वतों के पोस्टर ही तो लगा दिए थे! अलौकिक सौंदर्य था एक दम अद्भुत!

आगे बढ़ते एक से एक पहाड़ी बागों के मुरब्बे दिखे, आड़ू, सेब, खुबानी सबकी प्रुनिंग् हुई थी, , 10-12 दिनों में बर्फ़ गिरने लगेगी। इसी सबके बीच हमें nature call के लिए छत की ज़रूरत लगी, रास्ते के एक घर में कृष्णा ने आवाज़ लगाई ‘भाऊ’! हमें तो बड़ा अजीब लगा लेकिन पतिदेव ने एकदम आत्मविश्वास से हमें घर की मालकिन के पीछे जाने को कहा। वो धुले गुलाब से गालों वाली पहाड़ी महिला हेमा, हमें अपने घर के भीतर बने स्वच्छ शौचालय पर छोड़कर निश्चिंत भीतर चली गई। बेटी कह रही थी,” माँ this is insane but it’s happening! ” सच में ये पागल पन ही तो था हमारे समाज में, हम तो किसीको झांकने भी न दें अपनी खिड़की के अंदर! हेमा का पूरा घर खुला पड़ा था, नीची छतों वाले झक झक साफ़ कमरे, बड़े बड़े आंगन, बिना रेलिंग की सीमेंट वाली सीडियाँ और बीच अलगनी पर फैले बच्चों के कपड़े। हम अभी अपनी मेज़बान के ‘पागलपन’ से अभिभूत हुए ही थे कि वो कहने लगी, “जी चाय पी के जाओ, सबको बुला लो भीतर चाय पी लो थोड़ी थोड़ी!” ये कौन सा गृह था, हम अनुग्रहित हो गए!
यहाँ कुछ सवाल ज़रूर उठे मेरे ज़ेहन में! इतना कठिन जीवन, सुविधाओं के नाम पर शून्य फिर भी इतने संतुष्ट और सहृदय कैसे हैं ये देव भूमि वाले? क्या प्रकृति के करीब रहना इनके अतुल सौंदर्य का राज़ है? जो भी हो दिल तो इन सबका ही बहुत बड़ा है!
जूते चप्पल खरीदने हमारे साथ कैंप के owner कृष्णा और दोस्त योगेश जी का जाना निश्चित हुआ, स्थानीय बाज़ार की जानकारी हमे थोड़े ही न थी। यहाँ नीची छतों वाली छोटी छोटी दुकानों से हमने सामान ख़रीदे तो शाम होने को थी। बच्चों ने कहा चाय पकौड़े खायेंगे। यहाँ सब खाया पिया आराम से पच रहा था, उन्हें भूख लगना वाजिब था। तो बाज़ार के रेस्तरां में हमने भांग के बीजों की चटनी के साथ कई तरह के पकौड़े खाए। चटनी हलके भूरे रंग की थी और बेहद स्वादिष्ट थी। बताते चलें, आज भी पहाड़ी घरों में भांग के बीजों को भूनकर नींबू में सानकर खाया जाता है, ये बेहद गरम और गजब स्वादिष्ट होता है।
फिल्हाल हम कैंप लौटे तो तय हुआ कृष्णा के ननिहाल की शादी में चला जाए शेष चीजें कल कर लेंगे। शादी वाले घर तक पैदल ही जा सकते थे और बस 1.5 km की ही दूरी थी। बच्चे और हमारा शहरी सभ्य दिमाग कह रहा था यूँही अंजाने से किसी के घर की शादी में जाना , क्या उनको बुरा नहीं लगेगा। कृष्णा ने हमें उबारा, “आप देखना आपको देखकर सब कितने खुश हो जाएंगे!”
शादी वाले घर में आज संगीत था और कल बारात आनी था। जब हम चले तो अंधेरा गहरा चुका था , शाम के सात बजे थे। तय हुआ लौटकर रात का खाना कैंप में ही होगा, बच्चों को बोन फायर में गोश्त खाना था!
बहरहाल बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना वाले अब्दुल्ला बने हम सब 3-4 स्वेटर डाले अंधेरी राह पर बढे। घरों के बीच से रास्ते पार हो रहे थे और सारे घर एक दूसरे से काफी दूर दूर थे, corona का यहाँ न पहुँच पाना यही कारण था। जिस घर के सामने से हम निकलते देखते बाहर से कुंडी चढ़ी है, न ताला न कोई आस पास! योगेश और कृष्णा ने बताया ये सब उसी शादी में नाचने गए हैं और ताले तो यहाँ कभी नहीं लटकते!
वो डेढ़ किलो मीटर द्रौपदी के चीर सा था, इतनी खड़ी चढ़ाई और खतरनाक पथरीले संकरे रास्तों से एक डंडे, साथियो की हौसला अफ़ज़ाही और पतिदेव के हाथ के सहारे बढ़ते हुए पसीने में टोपी उतर गई हमारी! इन रास्तों पर यहाँ के लोगों का आना जाना 10-15 मिनट में आम बात है और यहाँ लेपर्ड और भालू का भी मिल जाना आम ही बात है- हमारे सारथी हमें बता रहे थे! हर वाकये और मोड़ पर हमारे मुँह खुले जा रहे थे और तब ही DJ की थाप की आवाज़ सुनाई देने लगी।
शादी वाला घर बगल में था लेकिन बीच में पहाड़ी होने से कुछ भी नही दिख रहा था! फिर दिखा नीली गुलाबी रोशनी से सजा पत्थर की सीढ़ियों वाला घर जहाँ सब नाच रहे थे, लड़के लड़कियाँ, बड़े, बच्चे। नीची झुकी छत पर बैठे लोग उन्हे देख रहे थे! कोई टीम झाम नहीं सब जमीन पर ही बैठे थे।सबने सामान्य कपड़े पहने थे। हमारे पहुँचते ही हमारा स्वागत होने लगा, सभी घर के लग रहे थे। कुर्सी लगाने वाले पड़ोसी, चाय लाने वाली दुल्हन की बुआ सब जिम्मेदारी निभा रहे थे! हमें गुड़ के साथ छोटे गिलासों में चाय मिली। हमने पूछा दुल्हन कहाँ है, क्या आप मानेंगे एक ठेठ पहाड़ी गाँव में दुल्हन पीले सूट और लाल कारडीगन में पहाड़ी गानों पर सबके साथ नाच रही थी। ये थी रंगा! गाने भी सब पहाड़ी, बॉलीवुड गानों के पहाड़ी versions पर सुल्टा पल्ला मारे दुल्हन की माँ भी नाच रही थी, ” ले फोटु ले फोटु! ” एकाधे ठुमके हमने भी लगाए पतिदेव के साथ और निहाल होकर वापस हो लिए।
पहाड़ी से उतार थकाने वाला नहीं था लेकिन बेहद खड़ा और खतरनाक।
कैंप के बोन फायर में हमने दिल अज़ीज़ पनीर किसी तरह निपटाया क्योंकि आलस्य की आदी शरीर की हड्डियाँ कराह रही थी, पहली बार इतनी मेहनत जो की थी। बिस्तर पर आकर 10 बजे कब पड़े कब सो गए, कुछ नहीं पता।
सुबह नींद खुली है 5.57 पर, पहाड़ की दुल्हन का अल्हड़ रूप, रात की गजब ट्रैकिंग और हेमा की मेजबानी सब कहानी जैसा लग रहा है। महादेव के पोस्टर देखने का चाव अभी बहुत बचा है। देखते हैं आज देवभूमि ने हमारे लिए क्या क्या surprise gift छुपा रखे हैं!

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