Swati’s Travelogue 2020 दिसंबर पहाड़ और पर्वत: यायावरी के कुछ और आयाम ४
सुबह पहाड़ी सीटी से हमारी नींद खुली, शायद रसोई में नानु बजा रहा था। हमने बोला था हम 9 बजे तक खा पीकर निकल जाएंगे सो वो तैयारी में लग गया था।
एक नाम जिसका ज़िक्र यहाँ रह गया था वो है Yogesh Mehta का। वे यहीं के वासी हैं और हमारी यात्रा की पल पल की व्यवस्था फोन और व्यक्तिग रूप से वे ही करा रहे थे।
उनके घर से उनकी ईजा यानि माँ ने हमें गहत और राजमा दिया। अगली बार अपने घर रुकने के वादे के साथ उन्होंने पतिदेव के साथ फ़ोटो भी कराई। हम उनके घर नहीं जा सके। लेकिन उनके पुत्र भोले भाले चारु से हम मिले, जिसने बताया उसे अपने बुबु यानी दादा सबसे प्रिय हैं।
नाश्ता, गरम पानी की पैकिंग के बाद हम लैस हो गए।
आने जाने का वादा हो रहा था, लगा अपनों से दूर जा रहे हैं। कभी सुना है, जिस कैंप में रुकने गए हों वहाँ से जाने में आप भावुक हो जाएं।
फिर भी जाना तो था ही। राजू की शादी में अगले साल आने के निमंत्रण, मेरे घर आने के पक्के वादे के बाद हम विदा हो लिए। बच्चे भी बिल्कुल चुप थे।
दायीं ओर सैम देवता ने केवल हमारे लिए बर्फ़ीली चोटियों के पोस्टर पुनः फैला दिये थे।
फिर हम कैंची धाम की ओर बढे जिसके बाद हमें ऋषिकेश एक विवाह मे जाना था।
नैनीताल की माल रोड, फ्लैट, हाई कोर्ट सब देखते हुए हम आगे बढे तो बीच घाटी से बादल उड़कर ऊपर आते दिखाई दिए। हम तो एक के बाद एक पर्वतों के अथाह सौंदर्य से चमत्कृत थे।
शाम होते होते हम आ गए कैंची धाम, न आस्था न अनास्था , केवल प्रेम में बहते यहाँ चले आए थे। लेकिन अंदर आश्रम में बहुत ही अच्छा लगा- बाबा नीम करौरी की बालसुलभ हंसी वाली मूर्ति, मूर्तिकार ने प्रतिमा ऐसी गढ़ी थी कि सामने कंबल ओढ़े निश्छल बाबा साक्षात उतर आए हों। हमने कंबल चढ़ाया तो पुजारी जी ने पट दो क्षण के लिए बंद करके फूलों के साथ कंबल वापस कर दिया, बहुत कहने पर भी रखा नहीं। फिर हम आश्रम के करता धारता जोशी जी से मिले। व्हील चेयर पर बैठे जोशी जी ऐसे अपने लगे कि 5 मिनट की मुलाक़ात में हमने उनसे लड्डू भी मांगे और आशीर्वाद भी। उन्होंने प्रचलित किन्वदंतियों के अलग बाबा के साथ स्टीव जॉब्स और मार्क ज़ुकेरबर्ग की असली कथाएँ बताईं, जोशी जी स्वयं 12 वीं कक्षा के बाद से बाबा के सानिध्य में रह रहे हैं और अब समस्त दारोमदार उनपर ही है। हमें तो जोशी जी की हंसी एक दम बाबा के ठप्पे वाली लगी.
जोशी जी के अनुसार स्टीव जॉब्स वास्तव कभी बाबा के सशरीर रहते उनसे मिले ही नहीं थे, उनके देहावसान के दो महीने बाद जॉब्स यहाँ आए तो लगभग ४ माह सर घुटा, धोती पहन आश्रम के सामने ही रहे। जोशी जी कह रहे थे, “स्टीव की कोई खास मांगे नहीं होती थी, जो बनता वो खाता बस यहीं बैठकर ध्यान करता रहता था। फिर ज़ुकेरबर्ग को भी उसने ही यहाँ भेजा। जुकरबर्ग जब फेसबुक में हुए नुकसान से तंग आकर उसे बेचने की सोच रहा था तब स्टीव ने उसे अपने ‘मास्टर’ यानि बाबा की शरण में भेजा।
फिर फेसबुक का क्या हुआ बच्चा बच्चा जानता है। आप लोग कहते हैं चमत्कार, हम तो कहते हैं बाबा की कृपा! ”
जोशी जी की बातों में बहुत सार था, कृपा ही तो थी बाबा की कि कमर के नीचे के अंग में इतनी तकलीफ और लगातार व्हील चेयर पर बैठने वाले जोशी जी ही आश्रम में आने वाले हज़ारों लाखों श्रद्धालुओं का दायित्व बखूबी निभाते हैं। हमारा नमन🙏🙏
कैंची से हम ऋषिकेश की ओर एक विवाह में सम्मिलित होने आगे बढ़े। वहाँ की कहानी तो खैर किसी का व्यक्तिगत मामला है लेकिन उसके बाद ऋषिकेश के अपने छोटे से पड़ाव को आपके साथ ज़रूर साझा करेंगे।
फ़िलहाल कैंची से थोड़ा ही आगे हम खाना खाने रुके। वही कुमावनी छोटा सा रंग बिरंगा एक दम साफ़ सुथरा ढाबा अकेला सा खड़ा हमें बुला रहा था। अरहर की दाल, भात, गोभी आलू की सब्ज़ी, भांग के बीजों की चटनी, मीठी मीठी मुलियां और पीली ककड़ी वाला पीला ठेठ पहाड़ी रायता। नवीन नेगी जी के ढाबे के हम 5 लोगों ने पेट भरकर खाया और कुल जमा 500 रुपये का बिल भरा।
गाड़ी में बैठने के पहले देखा, नीचे घाटी में पहाड़ी औरतें अपने अपने खेतों को गोड़ रही थी। आपको पहाड़ी औरतें एक जगह खड़ी होकर जेवर, कपड़ों, सास, बहू के प्रपंच करती नहीं दिखेंगी। उनके पास हज़ारों काम होते हैं। पुरुष भी बहुत श्रम करते हैं लेकिन मद्य का कुटेव है इनमें भी। इसी लिए वे खुद कहते हैं ‘सूर्य अस्त, पहाड़ मस्त! ‘
रात के अंतिम पहर हम ऋषिकेश में प्रवेश कर रहे थे। नदी किनारे नीलकंठ रोड पर आज रात की हमारी सराय थी। 2 बजे ठिकाने पर पहुंचे, शरीर थकान से टूट रहा था। बिस्तर की खोज में बढ़ते हुए कानों में नदी के स्वर पड़े, सम्मोहित से हम नदी की ओर चल पड़े।
स्वाति श्रीवास्तव ariesswati@gmail.com
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