Swati’s Travelogue :2020 दिसंबर पहाड़ और पर्वत: यायावरी के कुछ और आयाम ५
जगह अच्छी सी थी लेकिन सूपि के बाद तमाम सुविधाओं से लैस इस उद्यम में हमें वैसा ही लग रहा था जैसा माँ की छाती से लगे नवजात को अचानक कोई सुंदर नर्स गोद में ले ले! फिल्हाल शादी ब्याह का माहौल था सो नए लोगों से मिलना मिलाना भी एक शगल था। खाना, नाचना सब सामान्य रूप से चलता रहा जब तक अगले दिन हम ऋषिकेश स्थित ब्याह के दूसरे वेन्यू नहीं पहुँच गए।
परमार्थ निकेतन के करीब ही हमारा ठौर था। मौसम सूपि से काफी गरम था। हम जैसे जैसे ऋषिकेश प्रवेश करते गए, मन धक्क धक्क करते हाय करके रह गया। ये तो वो ऋषिकेश नहीं था जो अब तक हमारे सपनों में बसा था। बाजारीकरण ने सब पर झाड़ू मार दी थी। वो परमार्थ के पीछे का जंगल जहाँ से एक बार और गुज़रने का सपना संजोए बैठे थे, वो आलीशान घरों में बदल चुका था। मन रोने को हो आया! लक्ष्मण झूला, जानकी झूला, राम झूला सब देख लिए, गलियों से झांकती नन्ही दुकानों से अजर बजार सामान भी खरीद डाले लेकिन शांति मिली तो घाट पर माँ गंगा की गोद में।
हरा हरा किल किल करता जल जैसे उछल उछल कर फिर हमें बुला रहा था, “आओ न , मैं हूँ यहीं! ” बर्फ़ से ठंडा था पानी लेकिन पैर डालकर निकाला तो लगा ऐक्यू प्रेशर कराया है।
और जहाँ राम सीता सी जोड़ी नए बंधन में बंध रही थी, माँ गंगा ने अपने आंगन में हमें भी कई नए प्रेम डोरों में बांध दिया। कई दोस्त बन गए लेकिन एक खास सा संबंध बना जिसे हिमालय की इस यात्रा के प्रसाद सा सहेजा है हमने। ये सुंदर, प्यारे, एक दम हमारे जैसे मस्तीखोर युगल सुकृत और अनुप्रिया हमें रिटर्न गिफ्ट में मिले। लगा कब से जानते हैं हम सब एक दूसरे को। नागिन डांस से लेकर साथ घूमना,खाना, रात भर जाग जाग कर डंब शेराज़ खेलना सब याद रहेगा। ऐसा होता है कहीं, मिले और ऐसे अपने हो गए कि हमेशा से साथ ही थे।
अब निकलने की बारी थी।
चीला डैम के बीच घने जंगलों से होते हुए हम बाहर निकले। इस रोड पर राजा नेशनल पार्क। यहाँ आपको पानी पीते हाथियों के झुंड दिख सकते हैं। पिछली बार मिले थे हमें । अगर एक हाथी भी मिल जाए तो आपको पीछे खिसकने के सिवा कोई रास्ता नहीं सूझता, हम भी पीछे हो लिए थे। लेकिन पानी पीने आते हाथियों के राजसी दल को देखना भव्य मालूम होता है, आपको कुछ नहीं समझता ये विशाल जीव, ये इनका जंगल है!
आप यहाँ सफ़ारी भी कर सकते हैं। वन विभाग ने हाथियों के पानी पीने के रास्तों को यथावत छोड़ रखा है, जहाँ बड़े बड़े बोर्ड लगे हैं, ” ये हाथियों के आने जाने का मार्ग है,सावधान रहें। ”
मन हलका था, हिमालय का असर यूँही नहीं जाता।
यायावरी के पड़ाव कहीं भी हों, हमें सौग़ातें दे ही जाते हैं। बस हम नए के स्वागत के लिए तैयार हों, पूर्वाग्रहों से मुक्त हों और उन्मुक्त से खुले आयामों में उड़ना चाहते हों तो आकाश अपार है, विस्तृत है…….
स्वाति arieswati31@gmail.com ये लेख व चित्र मौलिक और व्यक्तिगत हैं, इनका अन्यत्र प्रयोग वर्जित है