Swati’s Travelogue: 8 दिसंबर 2020 दिसंबर पहाड़ और पर्वत: यायावरी के कुछ और आयाम ३
सूपि, मुक्तेश्वर में हमारी दूसरी सुबह 5.57 पर होने के बाद दिन का कार्यक्रम तय हुआ , पहले कैंप पर स्काई लाइन एक्विटी, फिर भालू गाड़ वॉटर फॉल का मज़ा और भीमताल में पैरा ग्लाइडिंग; कुल मिलाकर हमें इन गतिविधियों में केवल दर्शक बनना था क्योंकि एडवेंचर से अपना छत्तीस का आंकडा है!
हमने लज़ीज़ छोले पूडी का नाश्ता धूप में बैठकर किया। नाश्ता दीवान जी यानि नानु ने बनाया था, चपटे ठेठ पहाड़ी चेहरे वाले नानु, कृष्णा के सहपाठी रहे हैं और अब camp में कुकिंग संभालते हैं। साथ में योगा मास्टर इनका साथी राजकुमार मेहता यानि राजू भी कैंप का पार्टनर है।
तो नाश्ता हुआ और फिर सबने ज़िप लाइन के लिए कमर कसी। पहाड़ पर एक छोर से दूसरे छोर पर रस्सी बांधकर उसपर लटककर घाटी पार करने की इस गतिविधि को बच्चों और पतिदेव ने बड़े उत्साह से किया। राजू जो हमें गाइड कर रहे थे उन्होंने बड़ी स्वभाविकता से पिछले साल की एक घटना साझा करी।
2019 जून में छात्रों के समूह को रॉक क्लाइम्बिंग सिखाते हुए राजू के पैर से पत्थर टकरा गया था और वे 25-30 फीट की ऊँचाई से सीधे नीचे जा गिरे थे। “फ़िर? हमने हतप्रभ होकर पूछा तो वे खिलखिलाए, “फिर क्या मैं तो हँसने लगा कि मैं जिंदा रह गया यही गनीमत है! पैर से खून तेज़ी से बह रहा था,बांये पैर का घुटना दो हिस्से हो गया था बाकी कहीं चोट नहीं थी। डेढ़ महीने में चलने लगा और आज फिर आपके सामने वही सब कर रहा हूँ!” Daring! यही सोचा हमने और राजू ने कहा, अजी हमे तो काम यही आता है, मज़ा भी इसीमें है, इसके सिवा कुछ सोचना भी नही है!! ”
सूपि गाँव में 550 परिवार हैं, अपने अपने पैत्रक खेतों के बीच घर बनाकर रहते यहाँ के युवाओ की आँखों में चमक है, व्यवहार में केवल अपनापन है, हाड़ तोड़ मेहनती हैं, अपने देश मिट्टी के लिए गर्व है,लेकिन लालच, महत्वाकांशा लेश मात्र नहीं है।
आप आइये, रहिए, खाइए ,पीजीए,
लेकिन पहाड़ को गंद मत करिये, ये इनकी अपेक्षा रहती है हमसे, बस और कुछ भी नही!
सुपी गाँव से पलायन नहीं है, ये अपने खेतों, जानवरों, तीज, त्योहारों, शादी, ब्याह, गाँव के लोगों की तीमारदारी में मस्त रहते हैं और यही इनका जीवन है। जीने की जिसे हम जिजीविषा कहते हैं, कहाँ से आती है- ये प्रश्न उठा मेरे मन में! इसका उत्तर हमें जब मिला आपको उसी समय बताते चलेंगे, अभी तो ये मेरी जिज्ञासा थी!
तो हम पहुँच गए भीमताल! स्थान तो बहुत सुंदर है ही लेकिन commercialisation ने लोगों की प्रकृति को दुनियादार बना दिया है। Gliding वाला 24-25 साला स्थानीय लड़का नकुल इसकी मिसाल था।
उड़ चुकने के बाद वापसी में देर हो जाने के कारण सीधे camp आ गए हम। इस बार चाय, पकोड़ों के साथ बोन फायर का मज़ा लिया। ये हमारी Camp Craft में इस बार आखिरी रात थी, बच्चों ने नींद को हड़ताल पर भेज दिया था, हमें तो आज वैसे ही सब कुछ सहेजना था।
हमने आग तापते हुए अपने कैंप परिवार के राजू भैया को घेर लिया। हमें सब जानना था, यहाँ के त्यौहार, यहाँ के भूत, यहाँ की लोक कथाएँ!
राजू का पिटारा बहुत बड़ा था, या शायद सुपी का! और राजू के दिलचस्प किस्से, राजू की ही ज़ुबानी सुनी जाए तो दोगुना आनंद आएगा।
“गुरु गोरखनाथ हमारे कुल देवता हुए और सैम देवता हमारे देव, ” राजू बता रहा था और हम मंत्र मुग्ध से केवल उसको सुन रहे थे और बीच- बीच में अपने प्रश्न दागते जा रहे थे।
“तो सैम देवता योद्धा होते थे, वो एक बार जख्मी हालत में पहाड़ के गाँवों में आए। सेवा के बदले उन्होंने सबको वरदान मांगने को कहा, किसी गाँव ने रुपया-पैसा माँगा, किसी ने खेत- पात लेकिन हम सुपी वाले बहुत शातिर थे, हमने कहा आप हमारे गाँव में रह जाओ। तो फिर हर साल देवता हमारे गाँव में किसी एक आदमी में आते हैं और आते जरूर हैं! वो आदमी फिर, चाहे कभी स्कूल भी न गया हो वेद पुराण सब सुनाने लग जाता है।
इस बार एक आर्मी का जवान है गाँव में,छुट्टियों में घर को आया था,उसपर आ गए देवता। हमारे यहाँ सबसे पहले एक दो साल हर लड़का आर्मी ट्राई करता है,फिर न हो तो यही अपनी खेती तो है ही चाहो तो अपना कोई धंधा जमा लो लेकिन बाहर नहीं,यहाँ पर ही। बाहर जाने वाले का तो जी हमारे यहाँ बहोत मजाक बनता है,अपने घर गिलास नही उठाया और दूसरों का जूठा धोने बाहर चल दिया पैसे की खातिर। सो गए भी बाहर तो मजबूरी में,लेकिन लौटके यहीं को आना है।”
” तो राक्षस तो सब जगह होते हैं लेकिन यहाँ हमारे यहाँ देव खुद ही रहते हैं सो इसको देवभूमि भी कहते हैं। ”
मेरे बच्चों की बड़ी बड़ी हो आई आँखों में मेरे मन की जिज्ञासाएं ही झलक रही थी। “तो भैया भूत देखा कभी आपने यहाँ? ” उन्होंने पूछा तो राजू फट से बोला, “न मैंने तो नही देखा लेकिन जब रात को मांस लेकर गाँव का कोई शमशान के पास से निकलता है न तो ‘वो’ मांस को खा लेता है , बिना किसी को दिखाई दिए।
मैंने तो लेपर्ड देखा है दो बार। एक बार कृष्णा के साथ bike से हम आ रहे थे और वो सामने से सड़क पार कर रहा था। कोई फरक नही पड़ा उसे, आराम से हमें घूरते हुए सामने से निकला और हम एकदम चुप्प!
दूसरी बार मैं घर को ऊपर जा रहा था, करीब 10-20 मीटर पहले ही रास्ते में मेरा पालतू कुत्ता मेरे पास पहुँचा और वहीं वो लेपर्ड आया पीछे से। मैंने फ़ौरन चेन से कुत्ते को उठा लिया और चिल्लाने लग गया तो वो वापस को चला गया! ”
कहानियाँ चलती जा रही थी। सितारों से भर आए अपने बचपन वाले आकाश को देखते हुए हमने सच में पुकारा सैम देवता को, हमें भी बुला लो न यहाँ!
और जवाब मिल गया उस प्रश्न का कि लोग यहाँ किस जिजीविषा के कारण जीते हैं! हम विदेश तक रह आए, हमेशा लगता रहा यहाँ अपना कोई नही, कुछ हो जाए तो? सूपि में सब कोई अपना है! किसी को डोली पर डालकर नीचे डॉक्टर के पास ले जाना हो तो गाँव में सबकी जिम्मेदारी है। घर में शादी हो सब लड़के ऊपर टेंट बर्तन, सब्जी, अनाज पहुंचाने से लेकर घर की सफाई, खाना बनाना सब मिलकर करते हैं। खेत की गुड़ाई, जुताई सारे दोस्त एक एक के खेत में बारी बारी मिलकर कर डालते हैं। यहाँ तक कि घर की लिंटर भी सब खुद ही डाल लेते हैं! बचपन में पढ़ा ‘एकता में बल’ का पाठ आज व्यवहारिक रूप में समझा।
पाईन की सूखी लकड़ियाँ जल कर भस्म हो चुकी थी, बच्चों को रजाई कंबलों में लपेटकर हम एक अंतिम मुक्त श्वास के लिए खुले आसमान के नीचे आ बैठे थे। बार बार राजू का एक ही वाक्य याद आ रहा था, “पता नहीं बाहर हमें शक़ की नज़रों से क्यों देखा जात है? ”
राजू ये केवल इसलिए क्योंकि हम सब हैं आधे अधूरे, insecure और तुम हो पूरे, सच्चे और बहुत प्यारे!! सैम देवता तुम्हें हमेशा ऐसा ही बनाए रखे ! सूपि में रात की सांय सांय एक दम साफ सुनाई दे रही थी।
स्वाति ये रचना व चित्र मौलिक हैं, इनका अन्यत्र प्रयोग दंडनीय होगा