योगी आदित्यनाथ प्रदेश के सातवें ऐसे राजनेता होंगे जो उच्च सदन यानी विधान परिषद के जरिये मुख्यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखेंगे। उनसे पहले छह नेता इस कुर्सी को बरकरार रखने के लिए उच्च सदन की राह पर चल चुके हैं। कुछ नेता पहले से ही उच्च सदन के सदस्य रहे। इनमें चंद्रभानु गुप्त, नारायण दत्त तिवारी और विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे राजनेता शामिल हैं।बड़ी खबर: योगी आदित्यनाथ ने किया बड़ा ऐलान, कहा- राज्य में बनेंगी दो दर्जन से ज्यादा गौशालाएं
हालांकि, ये महीने-दो महीने ही परिषद से सदस्य रहे। मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा का चुनाव लड़े और कुर्सी बरकार रखी। भाजपा की बात करें तो योगी आदित्यनाथ इस पार्टी के दूसरे ऐसे नेता होंगे जो मुख्यमंत्री पद बरकरार रखने के लिए विधान परिषद की राह चुनेंगे।
दस साल से एमएलसी ही बन रहे सीएम
योगी लगातार ऐसे तीसरे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने बतौर सांसद सीएम पद की शपथ ली। अब वह विधान परिषद के रास्ते विधानमंडल का सदस्य बनकर अपना पद बरकरार रखेंगे। योगी से पहले मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने बतौर सांसद ही मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। बाद में वह विधान परिषद के सदस्य बने।
वर्ष 2007 में मायावती ने भी बतौर सांसद बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बाद में विधान परिषद के रास्ते विधानमंडल का सदस्य बनकर इस पद को संभालती रहीं।
रामप्रकाश गुप्त भी रहे एमएलसी
भाजपा में योगी से पहले 2002 में जब रामप्रकाश गुप्त ने मुख्यमंत्री पद संभाला तो वह किसी सदन के सदस्य नहीं थे। बाद में उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए विधान परिषद की सदस्यता दिलाई गई। गुप्त हालांकि एक वर्ष ही मुख्यमंत्री रहे। बाद में केंद्र सरकार में मंत्री राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री बनाकर गुप्त की जगह लाया गया।
ये पूर्व सीएम भी रहे विधान परिषद सदस्य
-चंद्रभानु गुप्त 7 दिसंबर 1960 को पहली बार मुख्यमंत्री बनाए गए। दिसंबर 1960 से मार्च 1961 तक वह विधान परिषद सदस्य रहे। 1961 में विधानसभा का चुनाव लड़े और जीतकर विधानमंडल पहुंचे।
-नारायण दत्त तिवारी दूसरी बार 3 अगस्त 1984 को मुख्यमंत्री बने और 10 मार्च 1985 तक रहे। इस दौरान वह जनवरी 1985 से मार्च 1985 के बीच विधान परिषद सदस्य रहे। बाद में वह 25 जून 1988 से 4 दिसंबर 1989 तक फिर मुख्यमंत्री रहे। उस दौरान भी वह नवंबर 1988 से विधान परिषद के ही सदस्य रहे।
-विश्वनाथ प्रताप सिंह 9 जून 1980 से 19 जुलाई 1982 तक मुख्यमंत्री रहे। उन्हें 21 नवंबर 1980 को विधान परिषद सदस्य बनाया गया। हालांकि, उन्होंने 1981 में विधानसभा का चुनाव लड़ने का फैसला किया और विधानसभा का सदस्य बनकर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली।