घर में शादी, मुंडन, जनेऊ संस्कार हो या गृह प्रेवश, यहां तक कि गाड़ी खरीदने से लेकर कारोबारी फैसले लेने तक में शुभ मुहूर्त का विचार किया जाता है। मगर कभी सोचा है कि शुभ मुहूर्त क्या होता है और इसमें किन बातों का ध्यान दिया जाता है। दरअसल, शुभ मुहूर्त उस खास समय को कहते हैं जब कोई विशेष काम किया जाता है। कहते हैं उस खास समय में संसार की सारी शक्तियां एकजुट होकर काम के अच्छे से संपन्न होने का आशीर्वाद देती हैं। शुभ मुहूर्त देखते समय शुक्र और गुरु ग्रह की अवस्था, तिथियों का योग, भद्रा काल, राहु काल, अधिकमास, और खरमास का विचार खासतौर से किया जाता है। आइए जानते हैं इनके बारे में।
गुरु और शुक्र ग्रह की अवस्था
हिंदू धर्म और ज्योतिष में बृहस्पति और शुक्र ग्रह का अहम स्थान माना गया है। गुरु जहां धन, स्वास्थ्य और संपन्नता का प्रतीक हैं तो शुक्र सौंदर्य और वैभव का। शुभ मुहूर्त निकालते समय इन दोनों ही ग्रहों की अवस्था देखी जाती है। इनके उदय अवस्था में होने पर ही धार्मिक और मांग्लिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त बनता है।
जानें क्या है तिथियों का नियम
हमारे धर्म शास्त्रों में पंचांग की कुछ तिथियां बतार्इ गर्इ हैं, जिनका विचार शुभ मुहूर्त देखते समय किया जाता है। इनमें 1,6,11 की तिथि को नंदा कहते हैं। इसी तरह 2,7,12वीं तिथि को भद्रा, 3,8 और 13 तिथि जया कहलाती है। वहीं 4,9 और 14 तिथि रिक्ता और 5,10, 15 तिथि पूर्णा तिथि होती है। मंगलवार को जया तिथि, शुक्रवार को नंदा, बुधवार को भद्रा, गुरुवार को पूर्णा और शनिवार को रिक्ता तिथि होने पर सिद्ध योग बनता है।
अधिकमास और खरमास में भी नहीं किए जाते शुभ काम
हमारे धर्म शास्त्रों में खरमास और अधिकमास दोनों ही समय में शुभ काम करने की मनाही है। लिहाजा शुभ मुहूर्त देखते समय इनका विचार किया जाता है। कहते हैं दो अमावस्या के बीच अगर सूर्य संक्रांति नहीं आ रही है तो यह अधिमास माना जाता है। इस दौरान शुभ काम नहीं किए जाते हैं।
भद्रा काल और राहु काल हैं वर्जित
शुभ मुहूर्त निकालते समय भद्रा काल और राहु काल का विचार करना बेहद जरूरी होता है। भद्रा में यात्रा, शादी, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं। पूरे दिन में एक बार राहु काल जरूर होता है और इसमें भी शुभ काम नहीं करते हैं।
अपराजिता श्रीवास्तव