देवभूमि हिमाचल प्रदेश में भगवान शिव के बहुत सारे मंदिर स्थित हैं। उनमें से एक कांगड़ा जिले के इंदौरा उपमंडल में काठगढ़ महादेव का मंदिर है। भारत में बसा है मिनी इस्राइल, हर मोड़ पर मिलेंगे खूबसूरत नजारे
यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है। शिवलिंग मां पार्वती और भगवान शिव के दो विभिन्न रूपों में बंटा है।
शिवलिंग के दोनों भागों के बीच में दूरियां ग्रह नक्षत्रों के अनुसार अपने आप घटती बढ़ती है। ग्रीष्म ऋतु में यह स्वरूप दो भागों में बंट जाता है और शीत ऋतु में पुन: एक स्वरूप धारण कर लेता है।
शिवलिंग के दोनों भागों में शिव स्वरूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 7 से 8 फीट है और पार्वती के स्वरूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई 5 से 6 फीट है।
शिवरात्रि के दिन शिवलिंग के दोनों भाग मिलकर एक हो जाते हैं। शिवरात्रि के बाद इनमें धीरे-धीरे अंतर बढ़ने लगता है।
शिव पुराण की विधेश्वर संहिता के अनुसार पद्म कल्प के प्रारंभ में एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता का विवाद उत्पन्न हो गया और दोनों दिव्यास्त्र लेकर युद्ध के लिए तैयार हो उठे।
यह भयंकर स्थिति देख शिव सहसा वहां आदि अनंत ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए। जिससे दोनों देवताओं के दिव्यास्त्र खुद ही शांत हो गए।
ब्रह्मा और विष्णु दोनों उस स्तंभ के आदि से अंत का मूल जानने के लिए जुट गए। विष्णु शुक्र का रूप धरकर पाताल गए लेकिन अंत न पा सके।
ब्रह्मा आकाश से केतकी का फूल लेकर विष्णु के पास पहुंचे और बोले कि मैं स्तंभ का अंत खोज आया हूं। जिसके ऊपर यह केतकी का फूल है।
ब्रह्मा का यह छल देखकर शंकर वहां प्रगट हो गए और विष्णु ने उनके चरण पकड़ लिए। तब शंकर ने कहा कि आप दोनों समान हैं। यही अग्नि के समान स्तंभ, काठगढ़ के रूप में जाना जाने लगा।