बीते वर्षों में उत्तराखंड ने पलायन का दंश झेला। हाल के वर्षों में करीब तीन हजार गांव पूरी तरह मानवविहीन हो चुके थे। जबकि सैकड़ों गांवों की आबादी 50 फीसद रह गई। पलायन करने वाले करीब दो लाख लोग कोरोना काल में लौट आए हैं। जिन हालात में ये पलायन को विवश हुए थे, हालात अब भी वही हैं। कठिन भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण पहाड़ी, पथरीली, उबड़खाबड़, परती जमीन, ऊपर से बुनियादी सुविधाओं का अभाव। किंतु अब इन्हीं प्रतिकूलताओं को मात देकर परती पर भविष्य उपजाने में जुट गए हैं। सफल होंगे, तो इनका पुरुषार्थ अमर हो जाएगा और आने वाली पीढ़ियां इनका गौरवगान करेंगी। तब कोई भी यहां से पलायन को बाध्य नहीं होगा। पढ़े और शेयर करें देहरादून से केदार दत्त और अल्मोड़ा से दीप सिंह बोरा की रिपोर्ट।
जिन हालात में लाखों लोग उत्तराखंड से पलायन को विवश हुए थे, हालात अब भी वही हैं। कठिन भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण पहाड़ी, पथरीली, परती जमीन और बुनियादी सुविधाओं का अभाव। किंतु अब इन्हीं प्रतिकूलताओं को मात देकर परती पर भविष्य उपजाने में जुट गए हैं। उत्तरकाशी जिले के थाती-धनारी निवासी मनोज शाह बीते 16 मार्च को गांव लौटे हैं। लॉकडाउन में सबसे पहले उन्होंने अपने परती पड़े खेतों की दशा सुधारी और फिर उनमें धान, मंडुवा और दाल की बुआई की। सब्जियों के लिए भी घर के पास ही क्यारियां तैयार की हैं। मशरूम उत्पादन के अलावा गांव के पास ही दुकान खोलने की तैयारी भी कर रहे हैं। ताकि गांव के अन्य युवाओं को भी रोजगार से जोड़ सकें।
गांव में ही स्वरोजगार शुरू
उत्तरकाशी जिले के ग्राम ठांडी कमद निवासी टीकाराम पंवार दुबई और फिर वर्ष 2018 से अब तक बेंगलुरु के एक होटल में शेफ रहे। लॉकडाउन हुआ तो डेढ़ माह वहीं फंसे रह गए और बीती 12 मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से वापस गांव लौटे। क्वारंटाइन रहने के बाद 28 मई से उन्होंने गांव में ही स्वरोजगार शुरू कर दिया है। इन दिनों वह लेंगड़ा (जंगली सब्जी) का अचार बना रहे हैं और भविष्य में गांव में ही रहकर पहाड़ी उत्पादों को नए रूप में लोगों तक पहुंचाने का विचार है। ताकि यहां के पारंपरिक फूड को नई पहचान और युवाओं को रोजगार मिल सके। नैनीताल जिले के हवालबाग ब्लॉक स्थित ग्राम सिलानी निवासी पूरन सिंह करीब दस वर्ष पूर्व रोजगार की तलाश में अपने भाई के साथ गुरुग्राम चले गए थे। दोनों को वहां एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई। इस बीच वह बारी-बारी से एक-एक वर्ष के अंतराल में गांव भी आते रहे।
फिलहाल सब्जियां उगाने की तैयारी
लॉकडाउन के बाद रोजगार छिना तो दोनों भाई हमेशा के लिए गांव लौट आए। गांव में अपनी परती पड़ी 20 नाली भूमि को खेती योग्य बनाया और अब धान, झंगोरा और मंडुवे की खेती की तैयारी कर रहे हैं। हवालबाग ब्लॉक के ही ग्राम रिखे निवासी प्रदीप सिंह भी बीते आठ वर्षों से दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहे थे। गांव में मां, भाई व भाभी रहते हैं। लेकिन, बुनियादी सुविधाओं के अभाव में गांव की करीब 18 नाली कृषि भूमि परती हो गई। अब इसे सुधार रहे हैं। फिलहाल सब्जियां उगाने की तैयारी है, बाद में गेहूं, आलू और दाल की योजना बनाएंगे। इसके अलावा एक हिस्से में बागवानी की भी योजना है…। यही हाल उत्तराखंड के उन ढाई-तीन हजार गांवों का है, जो पलायन के कारण या तो निर्जन हो गए थे या जहां कुछ ही परिवार पीछे छूट गए थे।
परती के दिन भी फिरने लगे
पलायन की पीड़ा झेल रहे उत्तराखंड में बीते दो दशक के दौरान खेती का रकबा लगातार घटा। राज्य गठन के समय प्रदेश में 7.70 लाख हेक्टेयर भूमि में खेती होती थी, जो 6.72 लाख हेक्टेयर रह गई। इसमें भी करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर परती भूमि है, जिसमें कभी फसलें लहलहाया करती थीं। अब जबकि कोराना संकट के चलते प्रवासियों की वापसी हो रही तो परती के दिन भी फिरने लगे हैं। उम्मीद जगी है कि बेकार पड़ी गैर आबाद कृषि भूमि में फिर से फसलें लहलहाएंगी। फिलवक्त 2.03 लाख प्रवासी विभिन्न राज्यों से उत्तराखंड लौट चुके हैं। खेती के अलावा जहां इनके पास भी फिलहाल कोई बेहतर विकल्प नहीं है, वहीं सरकार भी इन्हें खेती-किसानी से जोड़ पलायन का चक्कर हमेशा के लिए खत्म करने की योजना बना रही है।
मेहनत कर अपने खेतों को उपजाऊ बनाने में जुटे
अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में पहाड़ से शुरू हुआ पलायन उत्तराखंड बनने के बाद भी जारी रहा। पलायन आयोग के अनुसार राज्य में 1702 गांव निर्जन हुए, जबकि सैकड़ों गांवों में पलायन के चलते 50 फीसद से अधिक आबादी घट गई। इसका असर खेती पर भी पड़ा है। अब बदली परिस्थितियों में प्रवासियों की निरंतर वापसी से खेती, विशेषकर परती भूमि के दिन बहुरने की आस जगी है। प्रदेश में वर्तमान परती भूमि करीब 61 हजार 885 हेक्टेयर है। इसमें झाड़-झंकाड़ उग आया है। इसके अलावा 88 हजार 132 हेक्टेयर भूमि करीब-करीब बंजर हो चुकी है। प्रवासी अब मेहनत कर अपने खेतों को उपजाऊ बनाने में जुटे हुए हैं।
खेती, बागवानी, दुग्ध उत्पादन और जड़ी-बूटी उत्पादन पर जोर
पुस्तैनी जमीनों को आबाद करने के लिए युवा जज्बा दिखाते हुए इसी में भविष्य की संभावना भी देख रहे हैं। आइआइएम (भारतीय प्रबंध संस्थान) काशीपुर भी मान रहा है कि राज्य में खासकर पर्वतीय जिलों में खेती ही एकमात्र बड़ा जरिया है, जिस पर बेहतर काम हो सकता है। हाल में रानीखेत के बिल्लेख गांव निवासी गोपाल उप्रेती ने छह फिट से अधिक ऊंचाई वाला जैविक धनिया उगाकर इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज कराया है। वहीं मुनस्यारी और पिथौरागढ़ में ट्यूलिप गार्डन की भी तारीफ हुई। हालांकि गांवों में बुनियादी सुविधाएं मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार का कोई जरिया न होना भी पलायन का बड़ा कारण है। लेकिन अब पर्वतीय जिलों में खेती, बागवानी, दुग्ध उत्पादन और जड़ी-बूटी उत्पादन पर लोगों का और सरकार का भी पूरा जोर है।
परती भूमि (हेक्टेयर में)
जिला, अन्य परती, वर्तमान परती
पौड़ी 26974, 17490
देहरादून 12827, 6227
चंपावत 10027, 5644
टिहरी 8858, 10311
अल्मोड़ा 6547, 2872
पिथौरागढ़ 5890, 3065
ऊधमसिंहनगर 4743, 6902
हरिद्वार 3880, 5613
नैनीताल 3214, 1994
उत्तरकाशी 2507, 826
बागेश्वर 1560, 461
चमोली 1034, 252
रुद्रप्रयाग 72, 228
गांव लौटे प्रवासी (सात जून तक)
जिला, संख्या
अल्मोड़ा, 36076
पौड़ी, 36825
टिहरी, 28087
हरिद्वार, 22335
नैनीताल, 16152
बागेश्वर, 14020
देहरादून, 14273
चंपावत, 8336
रुद्रप्रयाग, 6566
पिथौरागढ़, 5756
उत्तरकाशी, 5256
ऊधमसिंहनगर, 4385
चमोली, 5034
उत्तराखंड के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि गांव लौट रहे प्रवासियों के लिए कृषि, बागवानी, पशुपालन, बकरी पालन जैसी कृषि आधारित गतिविधियां फायदेमंद होंगी। प्रवासी खेती की तरफ उन्मुख हों, इसके लिए मनरेगा को खेती से जोड़ने के अलावा क्लस्टर आधारित खेती, कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग, सगंध खेती, बीजों पर 75 फीसद अनुदान जैसे कई कदम उठाए जा रहे हैं।
आइआइएम काशीपुर के फाउंडेशन ऑफ इनोवेशन इंटरप्रोन्योरशिप डेवलपमेंट (फीड) के निदेशक सफल बत्रा ने कहा कि भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) काशीपुर केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सहयोग से सक्षम और साहस नामक दो कार्यक्रम चला रहा है। इसके तहत विभिन्न प्रोजेक्ट्स के लिए 25 लाख से एक करोड़ रुपये तक की फंडिंग का प्राविधान किया गया है। इन दोनों योजनाओं में युवाओं से आवेदन मांगे गए हैं। एग्रीकल्चर, हार्टीकल्चर, फूड प्रोसेसिंग, दुग्ध उत्पादन, जड़ी-बूटी उत्पादन समेत अन्य क्षेत्रों से बेहतर आइडिया वाले 100 स्टार्टअप चुने जाएंगे और उनकी स्थापना में आइआइएम मदद करेगा, ताकि हजारों हाथों को काम मिले।