कोरोना संक्रमण काल में शादी के सात फेरे ऐसे उलझे हैं कि आम जनता घनचक्कर हो गई और जिम्मेदार अधिकारी पूरी तरह बेफिक्र बने हुए हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले जिन दो शासनादेशों में शादी-समारोह संबंधी जिक्र है, उसके आधार पर अनुमति जारी रहने या न रहने पर शासन की चुप्पी है। हालत कुछ ऐसी है कि शादियों पर रोक है या छूट, असमंजस की स्थित बनी हुई है। आपके घर में शादी है तो आपका रिस्क है और बाकी पुलिस-प्रशासन की मर्जी चलेगी।
उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण से आज जो हालात हैं, उनका अंदाजा न आमजन को था, न ही शासन को। बेशक, स्थितियां ऐसी हैं कि सार्वजनिक समारोह न किए जाएं। यथासंभव हर आयोजन टाल दिया जाए। शारीरिक दूरी बेहद जरूरी है, क्योंकि संक्रमण बहुत तेजी से फैल रहा है। मृत्यु दर भी बहुत अधिक है। इस सबसे इतर कुछ परिवारों की मजबूरी ऐसी है कि बेटे-बेटियों की शादी तय हो चुकी है। अब शायद उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि वह उसे स्थगित कर सकें। ऐसे में उनकी उलझन बढ़ गई है।
वह असमंजस में हैं, क्योंकि संक्रमण की दूसरी लहर का प्रभाव बढ़ने पर शासनादेश जारी हुआ था, जिसमें उल्लेख था कि शादी-समारोह खुले स्थान पर करने पर उस क्षेत्रफल की निर्धारित क्षमता का पचास फीसद और अधिकतम सौ व्यक्ति, जबकि बंद स्थान, हाल आदि में अधिकतम पचास व्यक्तियों के शामिल होने की अनुमति होगी। आमजन ने उसी शासनादेश के आधार पर होटल-मैरिज हाउस आदि की बुकिंग कराई। फिर 16 अप्रैल को जारी हुए शासनादेश में कहा गया कि शनिवार रात से सोमवार सुबह तक कोरोना कर्फ्यू रहेगा।
कोरोना कर्फ्यू की इस अवधि में आवश्यक सेवाओं को ही अनुमति रहेगी। इसमें शादी-समारोह का कोई जिक्र नहीं किया गया। फिर 29 अप्रैल को एक शासनादेश जारी हुआ, जिसमें संपूर्ण जिला, वार्ड, कस्बा आदि को कंटेनमेंट जोन बनाए जाने की शर्तें थीं। उसमें शादी-समारोह में अधिकतम पचास व्यक्ति और अंतिम संस्कार में अधिकतम बीस व्यक्तियों के शामिल होने का उल्लेख था।