भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाने में माना गया कि शिक्षा मित्र भी अहम भूमिका में रहे लेकिन समायोजन रद्द होने से भाजपा को शिक्षा मित्रों के कोप का भाजन बनना पड़ रहा है। पार्टी को अभी निकाय चुनाव लड़ना है। पार्टी मतदाता सूची से लेकर परिसीमन तक दुरुस्त करा रही है। इस काम को भी शिक्षा मित्र बीएलओ बनकर निपटा रहे हैं।
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शिक्षा मित्र प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने के साथ ही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में लाभार्थियों के सत्यापन का भी काम करते हैं। 90 फीसदी शिक्षामित्र ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात हैं। ऐसे में एक ग्राम पंचायत में आधा दर्जन शिक्षा मित्र हैं तो उनके परिवारजन और शुभचिंतकों की संख्या 100 तक पहुंचती है। इसीलिए सपा-बसपा की सरकारें उन्हें लुभाने में लगी रहीं लेकिन भाजपा सरकार के सामने शिक्षा मित्र अब नई समस्या बन कर खड़े हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट में ढंग से सरकार द्वारा पैरवी न करने के कारण पौने दो लाख शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द होने के आरोपों से भाजपा चिंतित हो गई है। 2019 में लोकसभा की 80 सीटों को फतह करने के लक्ष्य को लेकर चल रही भाजपा का संगठन सरकार से शिक्षा मित्रों को राहत देने की उम्मीद लगाए हुए है।
पार्टी का मानना है कि गांव-गांव तक फैले ये पौने दो लाख शिक्षामित्र लोकसभा चुनाव तक संतुष्ट नहीं हुए तो उसके मंसूबों पर पानी फिर सकता है। यही नहीं ये शिक्षा मित्र निकाय चुनाव और सहकारिता चुनावों में भी भाजपा के लिए सिरदर्द बन जाएं तो हैरत नहीं।
तीन माह में समस्या सुलझाने का किया था वादा: भाजपा सूत्रों के अनुसार सपा सरकार को शिक्षा मित्रों के समायोजन के मामले में हाईकोर्ट की ओर से गलत ठहराने के बाद प्रधानमंत्री ने 19 सितंबर 2015 को बनारस में ‘शिक्षा मित्रों की जिम्मेदारी अब हमारी’ कहकर राहत दी थी। इसके बाद भी चुनाव के दौरान भाजपा के बड़े नेता अपने चुनावी दौरे में सरकार बनने पर शिक्षा मित्रों की समस्या सुलझाने का वादा कर रहे थे। विधानसभा चुनाव में शिक्षा मित्रों की अहम भूमिका के कारण ही भाजपा को लोक कल्याण संकल्प पत्र में यह वादा करना पड़ा था कि उनकी समस्या को तीन महीनों में सुलझाया जाएगा।
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