आपने अक्सर देखा होगा कि कोई भी पूजा शुरू करने से पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। हिंदू धर्म में इसे मांगलिक चिह्न माना जाता है। शादी, मुंडन, गृह प्रवेश या कोई भी शुभ काम हो स्वास्तिक का चिह्न जरूर बनाया जाता है। इस चिह्न का वास्तुशास्त्र और ज्योतिष दोनों में बड़ा महत्व है। माना जाता है यह चिह्न घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है स्वास्तिक
स्वास्तिक शब्द संस्कृत के दो शब्दों स्व और अस्ति से मिलकर बना है। इसमें स्व का मतलब है शुभ और अस्ति के मायने होना से है। दोनों को साथ में जोड़ दें तो पूरा मतलब बनता है शुभ हो, कल्याण हो। खास बात यह है कि शुभता प्रदान करने वाले इस चिह्न को कहीं से भी देखिए, यह एक जैसा ही दिखता है। स्वास्तिक बेहद शुभ फल देने वाला होता है, इसे बनाते समय दो बातों का ध्यान रखना चाहिए कि इसे बाथरूम या वॉशरूम के आसपास नहीं बनाना चाहिए। इसके अलावा इसे बनाते समय इसकी भुजाएं सही दिशा में होनी चाहिए। उल्टा स्वास्तिक घर में कलेश और रोगों का कारण बन सकता है।
वास्तु दोष निवारण का सटीक उपाय है स्वास्तिक
वास्तु शास्त्र में मान्यता है कि घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ स्वास्तिक का निशान बनाने से वास्तु दोष का असर खत्म हो जाता है। यूं तो आप रोली, हल्दी या नारंगी सिंदूर से स्वास्तिक बना सकते हैं। मगर वास्तु के नजरिए से यह मांगलिक चिह्न घर के मुख्य द्वार पर अंकित कर रहे हैं, तो बेहतर होगा कि दरवाजे के दोनों ओर अष्ट धातु का स्वास्तिक लगाएं और ऊपर की तरफ तांबे का।
बुरी नजर से बचाता है ये खास स्वास्तिक
कभी अगर किसी जगह पर आप काला रंग से बना हुआ स्वास्तिक का चिह्न देखें तो हैरान न हों। इस तरह का स्वास्तिक बुरी नजर से बचाने के लिए बनाया जाता है। कोयले से बना स्वास्तिक घर में नकारात्मक ऊर्जा को प्रवेश करने से भी रोकता है।
स्वास्तिक बनाने का सही तरीका
स्वास्तिक बनाने के लिए सबसे पहले प्लस का निशान बनाएं। इसके बाद ऊपर के छोर से दाहिने हाथ की तरफ बाहर की तरफ एक भुजा बनाएं, फिर नीचे के छोर से बायें हाथ की तरफ भुजा निकालें। प्लस के निशान के दाहिने छोर से एक लकीर नीचे की ओर और बायें छोर से ऊपर की ओर लकीर खींचें। चारों भाग में टीका लगाएं और बन गया आपका स्वास्तिक। इस मांगलिक चिह्न को हमेशा रोली, कुमकुम, अष्टगंध या सिंदूर से ही बनाना चाहिए।
अपराजिता श्रीवास्तव