ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष को वट सावित्री का व्रत सुहागनों को सौभाग्य देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायक व्रत के रूप में जाना जाता है. इस वर्ष यह तिथि 15 मई को है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करना और उस पूजन सामग्री चने का होना बेहद जरूरी है. वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा और सावित्री-सत्यवान की कथा के विधान के कारण से इस व्रत को वट सावित्री के नाम से जाना जाता है.
ऐसी मान्यता है कि जब सत्यवान कि मृत्यु हो गई थी तब यमराज ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण सावित्री को पुनः सौंपे थे. इस चने को लेकर सावित्री सत्यवान के शव के पास आई और सत्यवान के मुंह में रखकर मुंह में फूंक दिया. जिससे सत्यवान जीवित हो गए. तभी से वट सावित्री के पूजन में चना पूजन का नियम है साथ ही वट वृक्ष को दूध और जल दोनों से सींचना चाहिए.
इसी दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी. सावित्री को भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है.ग्रंथों में सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है. विवाह समपण की विधि में भी सावित्री और उसके पति सत्यवान का ज़िक्र किया जाता है.