हिंदू धर्म में प्रकृति की पूजा का भी विशेष महत्व और प्रथा है। लोग सूर्य के साथ ही पेड़ पौधों और पशुओं की भी पूजा करते हैं। उनसे आशीर्वाद लेते हैं। ऐसे में किसी भी तरह के व्रत को करने में इनसे भी प्रार्थना की जाती है। ज्येष्ठ माह में ऐसा ही एक व्रत आ रहा है जिसे वट सावित्री व्रत कहते हैं। वैसे यह व्रत पति की लंबी आयु के लिए होता है लेकिन सुहागिन महिलाएं इस वट की पूजा भी करती हैं। आइए जानते हैं व्रत के बारे में।
कब है व्रत
वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष को अमावस्या से तीन दिन पहले ही वट सावित्री का व्रत शुरू होता है। इस बार यह व्रत 30 मई को सोमवार के दिन ही पड़ रहा है और इसी दिन सोमवती अमावस्या भी है। कहा जाता है कि महिलाएं सुबह उठकर स्नान कर पूजा के लिए तैयार होती हैं। इसके बाद वट वृक्ष की पूजा करती हैं। यहां सत्यवान और सावित्री की कथा होती है और सौभाग्यवती का आशीर्वाद महिलाएं मांगती हैं।
कैसे करें पूजा
वट सावित्री व्रत जैसा कि नाम से ही जान सकते हैं कि यह पूजा वट और सावित्री को लेकर की जाती है। वट का वृक्ष काफी विशाल और मजबूत होता है। वह लंबे समय तक जीने वाला वृक्ष होता है जो मजबूती का प्रतीक है। इसमें सभी देवों का वास है। अमावस्या के दिन वट सावित्री की पूजा के लिए वट वृक्ष के पास जाकर उनको जल चढ़ाएं और तने पर रोली लगाएं। अब गुड़ चना, घी को वृक्ष के पास चढ़ाएं। दीपक जलाएं और पेड़ के पत्तियों की माला पहनें और कथा सुनें। वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करके धागा वृक्ष को लपेटते जाएं। इससे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मिलता है। इस दौरान मंत्र भी पढ़ा जा सकता है। यह रोगों से भी रक्षा करता है। वट वृक्ष की पूजा करना मतलब पर्यावरण के लिए सचेत रहना भी है। इसमें आप पेड़ों की रक्षा का भी वचन ले सकते हैं। एक पौराणिक कथा भी इससे जुड़ी हुई है जिसमें भगवान राम ने वट वृक्ष के पत्ते पर मार्कंडेय ऋषि को दर्शन दिया था। वही भगवान राम ने पंचवटी में रहकर भी वट वृक्ष की गरिमा बढ़ाई थी। यह पंचवटी नाशिक के पास है।
GB Singh