भारतीय महिला हाॅकी टीम की निक्की प्रधान का हाल इन दिनों काफी बेहाल है। दरअसल उनको खेल के मैदान तक नसीब नहीं हो रहे। वे कीचड़ में खेल कर अपने खेल को बेहतर बनाने में लगी हुई हैं। खास बात ये है कि वे इस बार के ओलंपिक में दूसरी बार सेलेक्ट हुई हैं पर प्रैक्टिस के लिए सरकार उन्हें मैदान तक मुहैया नहीं करा पा रही है। बता दें कि उनके गांव का नाम मुरहू है। इस गांव में करीब 60 घर हैं और रिपोर्ट्स की मानें तो इस गांव ने देश को 26 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व ओलंपिक खिलाड़ी दिए हैं। बता दें कि इस गांव की 13 महिला हॉकी खिलाड़ी सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं। हालांकि जानते हैं कि निक्की के हालात इतने बुरे कैसे हुए और क्यों उन्हें खेलने के लिए मैदान तक मुहैया नहीं कराया जा रहा है।
गांव में एक भी हॉकी का मैदान नहीं, कीचड़ में खेलने को मजबूर
निक्की के पिता से एक ऑनलाइन पोर्टल ने बेटी की उपलब्धियों को लेकर कुछ सवाल पूछे तो निक्की के पिता का दर्द साफ-साफ छलक रहा था। उनके पिता की मानें तो इस गांव ने भले ही देश को बड़े-बड़े खिलाड़ी दिए हों पर इस गांव में अब भी खिलाड़ियों के घर कच्चे ही हैं। इस गांव में शायद ही एक नाली हो जिस वजह से चारों ओर गंदगी का अंबार लगा रहता है। इस वजह से खिलाड़ियों को सरकार इस गांव में खेलने के लिए मैदान तक नहीं दे पा रही है। निक्की के पिता ने कहा, ‘सरकार को भूलना नहीं चाहिए कि राष्ट्रीय खेल में नाम रौशन करने वाले इस गांव में एक भी हॉकी का मैदान नहीं है। ऐसे में गांव की टैलेंटेड बेटियों पर गांव का पिछड़ा होना और एक भी मैदान न होना भारी पड़ रहा है।’
गांव ने 26 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए
इस गांव की बेटियों ने हॉकी के खेल में खूब नाम कमाया है। इस गांव ने निक्की प्रधान, पुष्पा प्रधान, शशि प्रधान, अनिमा सोरेंग, जसुमति तिडू, दुलारी पूर्ति व हेलेन सोय जैसे कई खिलाड़ी दिए हैं। इस गांव ने देश को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 26 खिलाड़ी दिए हैं और ये बेटियां इस गांव की पहचान भी बन गई हैं। लगातार अब भी इस गांव की बेटियां मैदान न होने के बावजूद राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अपने खेल को सुधारने और अपनी जगह बनाने की कोशिश में लगी हुई हैं। ऐसे में गांव में एक भी हॉकी का मैदान न होना खिलाड़ियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।
ऋषभ वर्मा