महालया यानी महा आलय। इस दिन का पश्चिम बंगाल में लोग काफी इंतजार करते हैं। महालया को दुर्गा पूजा के आगमन के तौर पर मनाया जाता है। यह पितृ पक्ष के अंतिम दिन होता है। इस दिन से ही माता के आगमन की तैयारी शुरू होती है और दूसरी तरफ पितरों को विदा किया जाता है। दुर्गा पूजा से महालया सूचक है कि मां आ रही हैं। इस दिन मूर्तिकार माता की आंख में रंग भरता है और उसे जीवंत बनाता है। पश्चिम बंगाल में इसे मनाने का विशेष तरीका है। महालया को लोग खास तौर पर मनाते हैं। आइए इसके बारे में और जानते हैं।
महालया पर विशेष पाठ
वैसे तो पितृ पक्ष के दौरान देवी देवताओं की पूजा कम होती है लेकिन महालया के दिन का रिवाज अलग है। पितृ पक्ष और महालया एक ही दिन मनाया जाता है। यह नवरात्र तो वैसे सात अक्तूबर से शुरू हो रहा है लेकिन महालया छह अक्तूबर को ही मनाया गया है। मां दुर्गा पंडालों में 11 अक्तूबर से विराजेंगी। उनका विसर्जन 15 अक्तूबर को विजय दशमी के दिन होगा। महालया के दिन सभी घरों में विशेष पाठ होता है। पश्चिम बंगाल में तो रेडियो में इस दिन विशेष कार्यक्रम सुबह साढ़े 3 बजे से ही शुरू हो जाता है। लोग सुबह उठकर इसे सुनना शुभ मानते हैं।
धरती पर आएंगी माता
कहा जाता है कि नवरात्र के दिनों में षष्ठी के दिन से ही दुर्गा माता धरती पर आती हैं। उनके साथ होते हैं माता लक्ष्मी और सरस्वती और गणेश व कार्तिकेय। कहा जाता है कि मां अपने बच्चों के साथ मायके आती हैं। यहां उनकी आवभगत होती है। उनको अच्छे से चार दिनों के लिए रखा जाता है। खुशियां मनाई जाती हैं। यह उनका मायका है। इसके बाद उन्हें विदा दी जाती है। बंगालियों में महालया का खास महत्व होता है। वे इसकी तैयारियों में जुट जाते हैं। माता कैलाश पर्वत छोड़कर धरती पर आती हैं। उनका आह्वान किया जाता है। हर साल माता के आने का वाहन अलग होता है। इस बार माता डोली पर बैठकर आ रही है। मान्यता है कि यह अच्छा सूचक नहीं है। डोली का चलना और हिलना जैसे होता है वैसे ही धरती पर भी स्थिति डांवाडोल होती है। स्थापित सत्ता का परिवर्तन होता है।
GB Singh