हवन करते समय क्यों कहते हैं स्वाहा, जुड़ी है पौराणिक ये कथा

किसी भी पूजा पाठ या विधान में हवन को अहम स्थान दिया गया है। हवन में जब तक की पूर्णाहुति नहीं होती तब तक वह फलदाई नहीं होता। लेकिन पर क्या आप जानते हैं हवन में स्वाहा क्यों कहते हैं। क्या कभी आपने जानने की कोशिश की कि आखिर इस शब्द का उच्चारण क्यों करते हैं हवन में। जहां बात नवरात्रि की आती है तो नवरात्रि के समापन में हवन का महत्व है जिसमें माता के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं। जब उपवास पूरा होता है तो हवन करने के बाद आपका मनोवांछित फल प्राप्त होता है। इस के संदर्भ में देवी भागवत पुराण में एक कथा का वर्णन किया गया है। कथा हम आपको सुनाते हैं।

देवी भागवत पुराण के मुताबिक एक बार नारद जी ने धार्मिक कर्मों में हवन के समय स्वाहा देवी श्राद्ध कर्म में स्वधा देवी और यज्ञ आदि में दक्षिणा देवी को महत्व बताया गया है। नारद जी कहते हैं कि जब सृष्टि निर्माण हुआ था तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और अपने आहार के लिए उनसे प्रार्थना करने लगे जिसके बाद उस समय ब्राह्मणों द्वारा अग्नि में जो हवी प्रदान की जाती हैं उस दौरान यह हावी देवता प्राप्त नहीं कर पाते थे आहार नहीं मिल पाता था।

*स्वाहा से देवता करते हैं भोजन* 

जब यज्ञ आदि कार्यक्रम होते हैं तब जो हम स्वाहा बोलते हैं और हवन में पूर्णाहुति डालते हैं तो वह स्वाहा में दिया हुआ हवन सामग्री स्वयं भगवान और देवता गण लेते हैं उनसे वह अपना आहार बनाते हैं।

*क्या है कथा* 

नारद जी का कहना है कि सभी धार्मिक कार्य में हवन की समय स्वाहा देवी स्वास्थ्य कर्मी स्वधा देवी और यज्ञ में दक्षिणा देवी को प्रशस्त स्थान दिया गया है।

जब देवता गण ब्रह्मा जी के पास अपनी व्यथा लेकर पहुंचे कि उन्हें भोजन नहीं मिल रहा है तब देवताओं की प्रार्थना को सुनकर ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण भगवान को सुमिरन किया और उनसे कहा कि मूल प्रकृति भगवती की आराधना की जाए जिसके फलस्वरूप स्वाहा देवी मूल प्रकृति की कला से प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने स्वाहा देवी से प्रार्थना की कि वह याग्निक की परम सुंदर दा ही खा सकती हो जाए उसका यह भी कारण है क्योंकि अग्निदेव आहुति को भस्म करने में असमर्थ हैं।

तब स्वाहा देवी ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और श्रीकृष्ण की उपासना में लीन हो गए। सहदेवी की प्रार्थना सुनकर श्री कृष्ण भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने वहां वाराह कल्प में तो मेरी भारिया बनोगी ऐसा आशीर्वाद दिया। श्री कृष्ण भगवान ने स्वाहा देवी से कहा कि इस समय आप दहाई का शक्ति के स्वरूप में अग्नि देव के मनोहर पत्नी के रूप में उनके साथ जाएं तो इस प्रकार से स्वाहा देवी का पाणिग्रहण अग्नि देव से हो गया।

मंत्रोच्चारण के बाद जब आहुति दी जाती है तो उसमें आखिरी में स्वाहा बोलते हैं। इस शब्द के मंत्रोच्चारण से देवताओं को आहुति मिलती है और वह इस से संतुष्ट होते हैं।

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